Diwali 2019: महापर्व दीपावली पर जानें महत्वपूर्ण पंच पर्वों की तिथियां परंपरा, अनुष्ठान एवं समारोह!

दीपावली रोशनी एवं खुशियों का महापर्व है. झिलमिलाते दीपों मालिकाओं से सजा यह पर्व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापसी की खुशी में मनाया जाता है. दीपावली को महापर्व इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि यह विभिन्न पर्वों से जुड़ा पांच दिनों तक चलने वाला महापर्व है.

दीवाली 2019(Photo Credits: Pixabay)

Diwali 2019: दीपावली रोशनी एवं खुशियों का महापर्व है. झिलमिलाते दीपों मालिकाओं से सजा यह पर्व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापसी की खुशी में मनाया जाता है. दीपावली को महापर्व इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि यह विभिन्न पर्वों से जुड़ा पांच दिनों तक चलने वाला महापर्व है. आइए जानें, इन पांच दिनों तक चलनेवाले विभिन्न पर्व की परंपराओं, अनुष्ठानों एवं संस्कृतियों कों....

दीपावली का मुख्य पर्व कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है. इस दिन हिंदू समाज मिट्टी के जलते दीपों की श्रृंखलाओं से अपने-अपने घरों को सजाते हैं. कुछ लोग दीयों के साथ-साथ मोमबत्तियां भी जलाते हैं. रात्रि में शुभ मुहूर्त पर श्रीलक्ष्मी-गणेश की पूजा कर अपने करीबियों में मिष्ठान एवं उपहारों का आदान प्रदान करते हैं और एक दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं.

दीपावली महोत्सव की महत्वपूर्ण तिथियां

हमेशा की तरह इस वर्ष भी दीपावली का महापर्व पांच दिनों तक मनाया जाएगा. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार दीपावली का मुख्य पर्व 27 अक्टूबर रविवार को पड़ रहा है.

धनतेरस (25 अक्टूबर)

दीपावली का पहला दिन 25 अक्टूबर को धनतेरस के रूप में मनाया जाएगा. वस्तुतः धनतेरस दीवाली त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है. हिंदू धर्म से जुड़े लोग इस दिन सोने, चांदी के आभूषण तथा पीतल के नए बर्तन आदि खरीदते हैं. मान्यतानुसार इस दिन नए बर्तन अथवा कीमती आभूषण इत्यादि खरीदना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. इसी दिन गांवों के किसान अपने मवेशियों को सजाकर परंपरानुसार उनकी पूजा करते हैं. क्योंकि ये मवेशी ही उनके आय के मुख्य स्त्रोत होते हैं.

छोटी दीपावली यानी नरक चतुर्दशी (26 अक्टूबर)

धनतेरस के अगले दिन यानी 26 अक्टूबर को छोटी दीवाली के रूप में मनाई जाती है. इस दिन नरक चतुर्थी भी मनाया जाता है. इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. इसी खुशी को लोग अपने-अपने घरों में दीप जलाते हैं और मुख्य दीपावली की प्रतीक्षा करते हैं. एक पारंपरिक प्रथा के अनुसार इस दिन लोग अपने बदन पर उबटन लगाकर अगले दिन सूर्योदय से पूर्व तेल स्नान करते हैं.

दीपावली का मुख्य पर्व (27 अक्टूबर)

दीपावली महापर्व के तीसरे यानी मुख्य दीपावली के दिन माता लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश जी की पूजा-अर्चना का विधान है. इसीलिए इस दिन को माता लक्ष्मी को समर्पित करते हैं. मान्यता है कि लक्ष्मी पूजा से पूर्व लोग अपने घरों का साफ-सफाई करते हैं, उसे वंदनवारों, विद्युत की लड़ियों और फूलों आदि से सजाते हैं. घर के बाहर और भीतर मंदिर के सामने आकर्षक रंगोली सजाकर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं. सूर्यास्त के पश्चात घरों को जलते दीपों से प्रज्जवलित किया जाता है. लोग अपने करीबी नाते-रिश्तेदारों एवं मित्रों को मिष्ठान एवं उपहारों के साथ दीपावली की शुभकामनाओं का आदान प्रदान करते हैं.

गोवर्धन पूजा-पड़वा (28 अक्टूबर)

दीपावली के चौथे दिन गोवर्धन पूजा मनाया जाता है. इस दिन को पड़वा अथवा वर्ष प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन गोवर्धन पूजा की परंपरा निभाई जाती है. जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन मथुरा और नाथद्वार मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को दूध से स्नान करवा कर उन्हें आकर्षक वस्त्र पहनाएं जाते हैं और कीमती आभूषणों एवं रत्नों से अलंकृत किया जाता है. अंत में श्रीकृष्ण को छप्पन व्यंजनों का भोग लगाया जाता है.

भाई दूज एवं चित्रगुप्त पूजा (29 अक्टूबर)

दीपोत्सवी के पांचवें दिन यानी 29 अक्टूबर को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है. भाई-बहनों के प्यार और स्नेह को समर्पित इस दिन बहन भाई को तिलक लगाकर मिठाई खिलाती है और ईश्वर से उसकी सुरक्षा एवं लंबी आयु की कामना करती है. बदले में भाई बहन को उपहार प्रदान करता है. इसी दिन कायस्थ समाज चित्रगुप्त महाराज की पूजा करता है. इसे कलम-दवात की पूजा के रूप में भी जाना जाता है. चित्रगुप्त महाराज के बारे में कहा जाता है कि वे ब्रह्मा के पुत्र हैं और मृत्यु के पश्चात व्यक्ति के कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं. कायस्थ समाज के लोग इस दिन कलम-दवात की पूजा करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं प्रदान करते हैं.

दीपावली महोत्सवः अनुष्ठान एवं समारोह

केवल हिंदू ही नहीं बल्कि जैन, सिख एवं बौद्ध धर्मों के लोग भी दीपावली के इस पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. जहां तक हिंदू धर्म की बात है तो मान्यता है कि चौदह वर्ष का वनवास काटकर भगवान श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण तथा हनुमान जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे. उनके घर वापसी की खुशी में हिंदू समाज अपने-अपने घरों में दीप जलाकर खुशियों का इजहार करते हैं. जैन धर्म के लोग महावीर भगवान द्वारा अंतिम निर्वाण अथवा ज्ञान प्राप्त करने की खुशी में यह पर्व मनाते हैं. इसी दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अंगीकार किया था. इस उपलक्ष्य में बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन दीपावली मनाते हैं. सिख समाज में भी दीपावली का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इसी दिन गुरू हरगोविंद जी सम्राट जहांगीर की कैद से छूट कर वापस आये थे. इसी खुशी में सिख समाज दीपावली मनाते हैं.

दीपावली के पर्व पर लोग अपने-अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, सजाते हैं और देवी लक्ष्मी का स्वागत करते हैं. इसी खुशी में हिंदू धर्म के लोग आतिशबाजियां छुड़ाते हैं, लक्ष्मी जी की पारंपरिक ढंग से पूजा-अर्चना करते हैं. एक दूसरे को उपहारों का आदान-प्रदान कर खुशिया मनाते हैं.

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इसमें संदेह नहीं कि खुशियों से भरी दीपावली का महापर्व विभिन्न धर्म एवं क्षेत्र के लोगों को एक छत के नीचे एकत्र करता है. संपूर्ण भारत में पांच दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व को बुराई पर अच्छाई एवं अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है.

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