Dhammachakra Pravartan 2022: कब और क्यों मनाते हैं धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस? जानें इसका इतिहास, महत्व और कैसे करते हैं सेलिब्रेशन?
लंबे समय से भारत में जातिवादी व्यवस्था, असमानता, अंधविश्वास एवं पाखंडवाद की नीति बहुत कठोर रही है, जिसका सामना समाज के निचले वर्ग को आये दिन करना पड़ता था. इस कुव्यवस्था से परेशान होकर डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर ने जिस दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा लेते हुए बौद्ध धर्म को स्वीकारा था, उसी क्रांति दिवस यानी 14 अक्टूबर के दिन बौद्ध धर्म को अपनाया था.
लंबे समय से भारत में जातिवादी व्यवस्था, असमानता, अंधविश्वास एवं पाखंडवाद की नीति बहुत कठोर रही है, जिसका सामना समाज के निचले वर्ग को आये दिन करना पड़ता था. इस कुव्यवस्था से परेशान होकर डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर ने जिस दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा लेते हुए बौद्ध धर्म को स्वीकारा था, उसी क्रांति दिवस यानी 14 अक्टूबर के दिन बौद्ध धर्म को अपनाया था. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर द्वारा ली गई यह बुद्ध धम्म दीक्षा देश की सबसे बड़ी रक्त-विहीन क्रांति मानी जाती है. इस धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस को स्वतंत्रता का दिन भी कहते है.
इतिहास
साल 1956 में डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनके अनुयायियों ने नागपुर (महाराष्ट्र) के सुविख्यात बौद्ध पवित्र स्मारक दीक्षाभूमि स्थल पर हिंदू धर्म का परित्याग करते हुए स्वेच्छा से बौद्ध धर्म स्वीकारा था. धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के धर्म परिवर्तन यानी बौद्ध धर्म को अपनाए जाने का प्रतीक माना जाता है. धर्म परिवर्तन की इस प्रक्रिया में डॉ भीमराव अंबेडकर के साथ उनके तीन लाख (कहीं कहीं यह संख्या पांच लाख भी बताई जाती है) से ज्यादा अनुयायी भी शामिल थे. गौरतलब है कि बाबा अंबेडकर देश के तत्कालीन कानून मंत्री थे, उन्होंने देश के लिए संविधान लिखा था. बौद्ध समुदाय के लोग इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. आइये जानें क्या है इस दिवस का इतिहास और महत्व है? यह भी पढ़ें : Karwa Chauth 2022 Messages: करवा चौथ पर ये मैसेजेस HD Wallpapers और GIF Images के जरिए भेजकर दें बधाई
क्यों किया था डॉ अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन?
कहा जाता है कि बौद्ध धर्म स्वीकारते समय बाबा साहब आंबेडकर ने करीब 22 प्रतिज्ञाएँ की थी. जिनमें प्रमुख है, ‘आज मेरा पुनर्जन्म हुआ है. मैं अपने पुराने धर्म, हिंदू धर्म को अस्वीकार करता हूं, जो मानव जाति की समृद्धि के लिए हानिकारक है, और जो मनुष्य-मनुष्य के बीच भेदभाव रखता है और हीन भाव रखता है. डॉक्टर अंबेडकर ने दलितों के खिलाफ जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, अपनी पत्रिका मूकनायक में उन्होंने समाज को एक टावर सरीखा बताते हुए आगे कहा था, जहां हर मंजिल एक विशेष जाति के लिए नामांकित हो जाती है. ध्यान रखने वाली बात यह है कि इस टॉवर में एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. इस टावर में एक व्यक्ति की मृत्यु उसी मंजिल पर होती है, जहां उसका जन्म हुआ होता है. बौद्ध धर्म स्वीकारने के अगले दिन डॉ अंबेडकर ने कहा था, मैं भले ही हिंदू धर्म में पैदा हुआ हूं, लेकिन मैं हिंदू धर्म में मरूंगा नहीं.
कैसे करते हैं धम्म प्रवर्तन पर्व का सेलिब्रेशन
प्रत्येक वर्ष 14 अक्टूबर के दिन बौध के अनुयायी धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के उत्सव को मनाने के लिए इस दिन नागपुर की दीक्षाभूमि पर इकठ्ठा होते हैं. इस दिन यहां लाखों लोग एकजुट होकर एक दूसरे धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस की बधाई देते हैं. हालांकि पिछले दो सालों तक कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के इस उत्सव को प्रतीकात्मक रूप से मनाया गया था. लेकिन इस वर्ष कोरोना वायरस से थोड़ी राहत मिलने से संभव है इस पर्व की मूल पहचान देखने को मिलेगी.