Chanakya's Niti: चाणक्य के अनुसार मनुष्य को ये तीन कार्य नहीं करना चाहिए! जानें इसके पीछे क्या है चाणक्य का तर्क?
आचार्य चाणक्य मंजे हुए दार्शनिक, अर्थशास्त्री और चतुर राजनीतिज्ञ थे, उनकी विद्वता दुनिया भर में मशहूर थी. आचार्य ने चाणक्य नीति के तहत मानव समाज के तमाम हितों को साधते हुए विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित महत्वपूर्ण बातों को उल्लेखित किया है. चाणक्य नीतियों का अनुसरण करते हुए मनुष्य अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करने में सक्षम रहता है.
आचार्य चाणक्य मंजे हुए दार्शनिक, अर्थशास्त्री और चतुर राजनीतिज्ञ थे, उनकी विद्वता दुनिया भर में मशहूर थी. आचार्य ने चाणक्य नीति के तहत मानव समाज के तमाम हितों को साधते हुए विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित महत्वपूर्ण बातों को उल्लेखित किया है. चाणक्य नीतियों का अनुसरण करते हुए मनुष्य अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करने में सक्षम रहता है. आचार्य ने अपने इस श्लोक में मनुष्य को तीन कार्य करने से बचने की हिदायत देते हुए कहा है कि ये कार्य करके मनुष्य स्वयं अपना नुकसान करता है.
‘नापितस्य गृहे क्षौरं पाषाणे गन्धलेपनम् ।
आत्मरूपं जले पश्यन् शक्रस्यापि श्रियं हरेत्।‘
आचार्य चाणक्य ने उपयुक्त श्लोक के माध्यम से चेताया है कि नाई के घर जाकर बाल कटवाना, शरीर में सुगन्धित गन्ध लगाना और जल में अपने स्वरूप की परछाईं देखना-ये कार्य करने वाले की सम्पत्ति तथा लक्ष्मी नष्ट हो जाती है. यह भी पढ़ें : Chanakya Niti: अधिकांश पत्नियां अपने पति से कुछ बातें छिपा कर क्यों रखती है? जानें वे राज की बातें!
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम कहा है, कि मनुष्य को किन तीन कार्य को करने से बचना चाहिए. उनके अनुसार व्यक्ति को नाई के घर जाकर हजामत अर्थात ना बाल कटवाना चाहिए, और ना ही दाढ़ी बनवाना चाहिए. इसके अलावा आचार्य मनुष्य को पत्थर पर चंदन भी नहीं घिसना चाहिए, ना ही जल में अपनी आकृति देखने की कोशिश करनी चाहिए. इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि जल में अपना चेहरा स्पष्ट नहीं दिखता, जिसकी वजह से उसे तमाम तरह की दुविधाएं होती हैं,
मूर्तिपूजा में मूर्तियों में प्राणप्रतिष्ठा के बाद देवबुद्धि और भावना परस्सर गन्धाक्षत डाला जाता है. केवल पत्थर में गन्धाक्षत लगाने का कोई औचित्य नहीं है. जल में अपना स्पष्ट स्वरूप नहीं दिखने के कारण भ्रम हो सकता है, इसलिए जल में देखा गया स्वरूप प्रमाणिक नहीं होता. अतः इन तीनों कार्यों को करने वाले अप्रामाणिकता के कारण नष्ट हो जाते हैं, जिसकी वजह से मनुष्य बुद्धिहीन होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी कमजोर होता है.