Chanakya Niti: जरूरत से ज्यादा सीधा-सरल इंसान ही क्यों संकट भोगता है? जानें चाणक्य नीति क्या कहती है!
सीधा एवं सरल होना बुरा नहीं, मगर जरूरत से ज्यादा सीधा-साधा व्यक्ति समाज में आये दिन कष्ट भोगता है. आचार्य चाणक्य द्वारा मानव स्वभाव पर उल्लेखित इस तरह की नीतियां कुछ लोगों को भले ही बुरी और कठोर लग सकती है, लेकिन उनकी नीतियों का पालन करके ही मनुष्य मानव समाज के बीच मान-सम्मान हासिल कर पाता है.
सीधा एवं सरल होना बुरा नहीं, मगर जरूरत से ज्यादा सीधा-साधा व्यक्ति समाज में आये दिन कष्ट भोगता है. आचार्य चाणक्य द्वारा मानव स्वभाव पर उल्लेखित इस तरह की नीतियां कुछ लोगों को भले ही बुरी और कठोर लग सकती है, लेकिन उनकी नीतियों का पालन करके ही मनुष्य मानव समाज के बीच मान-सम्मान हासिल कर पाता है. आचार्य चाणक्य ने निम्न श्लोक के माध्यम से यही बताने की कोशिश की है, कि किस तरह के व्यक्ति को जीवन में सबसे ज्यादा पीड़ा भोगनी पड़ती है.
नात्यन्तं सरलेन भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्। यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2023: क्यों किया जाता है श्राद्ध कर्म? जानें क्या है श्राद्ध, पिण्डदान, तर्पण और कब हुई इस परंपरा की शुरुआत?
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः
आचार्य के उपरोक्त श्लोक में स्पष्ट उल्लेखित है कि किसी भी मनुष्य को जरूरत से ज्यादा सीधा-साधा अथवा सरल नहीं होना चाहिए. उन्होंने इसका उदाहरण भी दिया है कि जंगल में सबसे पहले सीधी पेड़ों पर ही आरियां चलती हैं, जबकि टेढ़े-मेढ़े वृक्षों पर आरियां चलाने से लोग बचते हैं कि पता नहीं ऐसे पेड़ किस दिशा में गिरें. आचार्य चाणक्य के अनुसार हर व्यक्ति जन्म से अत्यंत सरल एवं सहज होता है, समय और साथी-समाज के बीच उसमें बदलाव आते हैं, औऱ वह छल-कपट का पुतला बन जाता है. अपने प्रयोजन पूरे करने हेतु वह किसी भी हद तक गिर सकता है. ज्यादातर सीधे-सरल व्यक्ति ही उसका शिकार बनते हैं.
आचार्य चाणक्य स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि सीधे-सादे व्यक्ति का जीवन अत्यंत कठिन होता है, शातिर और दुष्ट प्रकृति के लोग अपनी कार्य सिद्धी हेतु सबसे ज्यादा सज्जन व्यक्ति की तलाश कर उसका इस्तेमाल करते हैं, उसके भोलेपन और सहजता का गलत तरीके से फायदा उठाते हैं. उसका जीना मुश्किल कर देते हैं. व्यक्ति को समय और समाज के अनुरूप खुद में आवश्यक बदलाव लाना चाहिए. ऐसे व्यक्ति को ना मूर्ख बनाया जा सकता है और ना ही उसका गलत इस्तेमाल कर उसे अनावश्यक प्रताड़िता किया जा सकता है. इंसान को अपने सद्गुणों की सुरक्षा एवं संरक्षण करते हुए टेढ़े-मेड़े पेड़ की ही तरह रहना चाहिए. वह चतुर बनकर रहेगा, तभी इस समाज में आराम के साथ जीवन जी सकेगा.
आचार्य चाणक्य ने मनुष्य की इस प्रवृत्ति पर एक दोहा भी लिखा है..
अतिहि सरल नहिं होइये, देखहु जा बनमाहिं।
तरु सीधे छेदत तिनहिं, बांके तरु रहि जाहि।।
अर्थात
जिन लोगों का स्वभाव अत्यधिक सीधा-साधा होता है, ऐसे व्यक्ति को ऐसा होने से कदाचित बचना चाहिए, यह उनके के लिए घातक होता है. जंगल में हम देख सकते हैं, जो भी पेड़ सीधे होते हैं, सबसे पहले काटने के लिए उन्हें ही चुना जाता है.