आचार्य चाणक्य की सुप्रचलित चाणक्य नीति में व्यक्ति के जीवन, शासन और व्यक्तिगत विकास के कई पहलुओं का उल्लेख किया गया है, जिसमें नेतृत्व, शासन, प्रशासन, कूटनीति, युद्ध, अर्थशास्त्र, व्यक्तिगत विकास और सामाजिक आचरण जैसे तमाम विषयों पर चर्चा की गई है. चाणक्य नीति के तहत बताई गई सभी बातें हमारे जीवन को सही दिशा देने में काम आती है. यहां हम चाणक्य नीति के तहत उस श्लोक की बात करेंगे, जिसमें आचार्य ने दिन के समय सोने का विरोध किया है. यहां हम उसी श्लोक के बारे में बात करेंगे, दिन में नहीं सोने के पीछे आचार्य का क्या तर्क है.
‘न दिवा स्वप्नं कुर्यात्, आयुः क्षयी दिवा निद्रा’
अर्थात दिन में स्वप्न नहीं देखना चाहिए, क्योंकि दिन में सोने से जीवन क्रमशः नष्ट होता है.यहां चाणक्य के कहने का आशय यह है कि दिन में सोने से कार्य में हानि होती है, जिसके तहत शरीर में अपच, वायु विकार जैसे दोष हो सकते हैं. चाणक्य के अनुसार दिन में केवल बीमार व्यक्ति एवं बच्चों को ही सोना चाहिए. यह भी पढ़ें : Aaj Ka Panchang 2024: आज 29 सितंबर 2024, रविवार, द्वादशी श्राद्ध एवं पर्व विशेष के मुहूर्त, सूर्योदय और चंद्रोदय काल, शुभ-अशुभ मुहूर्त के साथ कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां!
चाणक्य की इस नीति में यह भी बताया गया है कि दिन में सोने से आयु कम होती है. आचार्य चाणक्य ने इस बात को और स्पष्ट करते हुए बताया है कि जब मनुष्य सोता है तो उसकी सांसे अपेक्षाकृत तेज चलती है, यानी जागते हुए वह जितनी भी सांसे लेता है, नींद की अवस्था में उनकी संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है. चाणक्य कहते हैं कि ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति की सांसें निश्चित कर रखी है, इस वजह से दिन में सोने से हम अपरोक्ष रूप से ज्यादा सांसे लेकर अपनी आयु को कम करते हैं, जिसका हमें भान भी नहीं होता, इसलिए दिन में सिर्फ काम करना चाहिए, और नींद सिर्फ रात में ही लेनी चाहिए.