August Kranti Diwas 2019: 9 अगस्त (9th August) के दिन को भारतीय इतिहास में अगस्त क्रांति दिवस (August Kranti Diwas) के रूप में जाना जाता है. दरसअल, द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) में समर्थन लेने के बावजूद जब अंग्रेजी हुकूमत (British Government) भारत को स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुई, तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के रूप में आजादी की आखिरी जंग का ऐलान कर दिया. इस आंदोलन से ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई थी और आखिरकार उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा. 9 अगस्त 1942 में इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी, इसलिए इसे अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है. इस आंदोंलन की शुरुआत मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान से की गई थी.
दरअसल, 8 अगस्त को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति में बम्बई सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया, लेकिन तभी बापू को पुणे के आगा खां पैलेस में कैद कर लिया गया और तकरीबन सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. ऐसे में अरुणा आसिफ अली ने 9 अगस्त को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद किया. द्वितीय विश्व युद्ध से अंग्रेजों की कमर पहले ही टूट चुकी थी और इस आंदोलन के चलते ब्रिटिश सरकार में दहशत फैल गई.
करो या मरो का बापू ने दिया नारा
अंग्रेजों को भारत की सरजमीं से बाहर खदेड़ने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 4 जुलाई 1942 को एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि अगर अंग्रेज भारत नहीं छोड़ते हैं तो उनके खिलाफ व्यापक स्तर पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया जाएगा. हालांकि शुरु में इस प्रस्ताव को लेकर पार्टी में काफी मतभेद थे. प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने पार्टी छोड़ दी, जबकि पंडित जवाहरलाल नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आजाद प्रस्तावित आंदोलन को लेकर शुरुआत में संशय में थे, लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी के कहने पर इसे समर्थन देने का फैसला किया. इस दौरान महात्मा गांधी ने करो या मरो के नारे के साथ सभी देशवासियों से अनुशासन बनाए रखने की अपील की थी.
महात्मा गांधी को किया गया कैद
8 अगस्त को जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति के बम्बई सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ, तभी इस आंदोलन का आगाज होते ही बापू को पुणे के आगा खां पैलेस में कैद कर लिया गया. इसके साथ ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया. इस आंदोलन से घबराई अंग्रेजी सरकार ने कांग्रेस को गैर सरकारी संस्था भी घोषित कर दिया. यह भी पढ़ें: भारत छोड़ो आंदोलन: इस आंदोलन से हिल गई थी अंग्रेज सरकार की नींव, देश छोड़ने पर हो गए थे मजबूर
आंदोलन में गई सैकड़ों लोगों की जान
भारत छोड़ो आंदोलन की खासियत थी कि इसका नेतृत्व किसी एक व्यक्ति के हाथ में नहीं था. गांधीजी अहिंसक आंदोलन के पक्ष में थे, लेकिन अंग्रेजों को भगाने के लिए देशवासियों के दिल में ऐसा जुनून जाग गया था कि गई जगहों पर हिंसक घटनाएं भी हुईं. इस आंदोलन से बौखलाए अंग्रेजों ने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों और निर्दोष लोगों को गोलियों से भून डाला. एक लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था, बावजूद इसके आंदोलन पूरे जोश के साथ चलता रहा. अहिंसा के इस आंदोलन में करीब 940 लोग मारे गए थे, जबकि 1630 लोग घायल हुए थे.
अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हुए सभी देशवासी
अंग्रेजों को भारत से बाहर भगाने के लिए चलाए गए भारत छोड़ो आंदोलन में सभी देशवासी एकजुट हो गए. साल 1943 के आखिर तक पूरा देश संगठित हो गया. उस दौरान जेल में रहने के कारण गांधीजी का स्वास्थ्य खराब होने लगा, बावजूद इसके इस आंदोलन को जारी रखने के लिए उन्होंने 21 दिन की भूख हड़ताल की. आखिरकार 1944 में तबीयत ज्यादा बिगड़ जाने की वजह से गांधीजी को रिहा कर दिया गया.
कहा जाता है कि 1944 की शुरुआत तक अंग्रेजों ने हालात पर काबू पा लिया जिससे कई राष्ट्रवादी निराश हुए. गांधीजी और कांग्रेस को मोहम्मद अली जिन्ना, मुस्लिम लीग, वामपंथियों और दूसरे विरोधियों की आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा, लेकिन यह सच है कि इस आंदोलन ने आखिरकार ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया और अंग्रेजी हुकूमत ने संकेत दिया कि सत्ता हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथों में सौंप दिया जाएगा.