Adi Guru Shankaracharya Jayanti 2025: आदि गुरु शंकराचार्य जयंती के अवसर पर जानें उनके जीवन के कुछ रोचक प्रसंग!
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी को आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था. हिंदू सम्प्रदाय इस दिन को आदि शंकराचार्य जयंती के रूप में मनाते हैं. उनका जन्म 788 ई पूर्व कलाड़ी (केरल) में हुआ था. आदि शंकराचार्य महान भारतीय दार्शनिक, संन्यासी, और वेदांत के प्रणेता थे.
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी को आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था. हिंदू सम्प्रदाय इस दिन को आदि शंकराचार्य जयंती के रूप में मनाते हैं. उनका जन्म 788 ई पूर्व कलाड़ी (केरल) में हुआ था. आदि शंकराचार्य महान भारतीय दार्शनिक, संन्यासी, और वेदांत के प्रणेता थे. उन्होंने अद्वैत वेदांत दर्शन की स्थापना की और भारत के विभिन्न हिस्सों में चार मठ स्थापित किए. उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को प्रमाणिकता से स्थापित किया तथा उस कठिन दौर में हिंदू संस्कृति को पुनर्जीवित किया, जब हिंदू संस्कृति पतन की ओर अग्रसर थी. 820 ई.पू. में 32 वर्ष की आयु में उन्होंने देह-त्याग दिया. इस अवसर पर आइये जानते हैं शंकराचार्य के जीवन के कुछ रोचक पहलुओं के बारे में..
आदि शंकराचार्य के जीवन के महत्वपूर्ण अंश:
जन्म और प्रारंभिक जीवंन: आदि शंकराचार्य जन्म केरल के कालड़ी गांव में हुआ था. उनके माता-पिता शिवगुरु और आर्यम्बा थे. उन्होंने काफी कम उम्र में संन्यास धारण कर लिया तो बहुत कम उम्र में संन्यासी बन गए थे. यह भी पढ़ें : Gujarat Day 2025: ‘गुजरात किंवदंतियों और दूरदर्शी लोगों की भूमि है.’ अपने करीबियों को ये कोट्स भेजकर इस दिवस को जीवंत बनाएं! यह भी पढ़ें : Gujarat Day 2025: ‘गुजरात किंवदंतियों और दूरदर्शी लोगों की भूमि है.’ अपने करीबियों को ये कोट्स भेजकर इस दिवस को जीवंत बनाएं!
अद्वैत वेदांत की स्थापना: शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत दर्शन की स्थापना की, जो आत्मा और ब्रह्म की एकता पर आधारित है. उन्होंने उपनिषदों, भगवत गीता और ब्रह्मसूत्र पर टीकाएँ लिखी, जो इस दर्शन के मुख्य स्रोत हैं.
मठों की स्थापना: शंकराचार्य ने भारत के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की: श्रृंगेरी, द्वारका, पुरी और ज्योतिर्मठ. इन मठों ने अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रचार और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
यात्राएं और संवाद: शंकराचार्य ने भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की, जहां उन्होंने विभिन्न विद्वानों और संन्यासियों के साथ वाद-विवाद और संवाद किया.
अद्वैत वेदांत का प्रभाव: शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत दर्शन ने भारत के धार्मिक और दार्शनिक विचार पर गहरा प्रभाव डाला. यह दर्शन आज भी भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण है.
संन्यासी: शंकराचार्य ने काफी कम उम्र में संन्यासी का रूप धारण कर लिया था और उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग संन्यासी के रूप में व्यतीत किया.
लेखनः शंकराचार्य ने कनक धारा स्त्रोत, जैसे अनेक स्त्रोत और मंत्र संग्रह की रचना की. 12 ज्योतिर्लिंग और 4 धाम की मान्यता प्रदान की.
अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रमुख सिद्धांत: शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रमुख सिद्धांत हैं: आत्मा और ब्रह्म की एकता, माया का सिद्धांत, और ज्ञान की सर्वोच्चता.
शिष्य: शंकराचार्य के कई शिष्य थे, जिनमें सुरेश्वराचार्य, तोटक, आदि प्रमुख हैं.
मृत्यु: शंकराचार्य ने 820 ईस्वी में 32 वर्ष की अल्पायु में केदारनाथ में संजीवन समाधि ले ली थी.