दुनिया में भूख बढ़ रही है, मदद घट रही है
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अगले साल 11.7 करोड़ लोग ऐसे होंगे जिनके पास समय पर भोजन और मदद नहीं पहुंच पाएगी. अमीर देशों से मिलने वाली मदद लगातार घट रही है. भारत और चीन की भी आलोचना हो रही है.दुनिया भर में भुखमरी और संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन अमीर देशों से संयुक्त राष्ट्र को मिलने वाली मानवीय सहायता घट रही है. इसका असर यह हो रहा है कि भूखे लोगों को बचाने के लिए राहत एजेंसियों को मुश्किल फैसले लेने पड़ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2025 तक कम से कम 11.7 करोड़ लोग ऐसे होंगे, जिन तक सही समय पर मदद नहीं पहुंच पाएगी.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2025 में 30.7 करोड़ लोगों को मानवीय सहायता की जरूरत होगी. लेकिन वह सिर्फ 60 फीसदी जरूरतमंदों तक ही मदद पहुंचा पाएगा. इसका सीधा मतलब है कि 11.7 करोड़ लोगों के पास भोजन और अन्य जरूरी मदद नहीं पहुंचेगी. यूएन की हालिय रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक दुनिया से भुखमरी का खात्मा करने का लक्ष्य हासिल करना असंभव हो गया है.

2024 में भी हालात अच्छे नहीं थे. संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक मानवीय सहायता के लिए 49.6 अरब डॉलर की अपील की थी, लेकिन उसे सिर्फ 46 फीसदी फंड ही मिल सका. यह लगातार दूसरा साल है जब उसे अपने लक्ष्य का आधा भी फंड नहीं मिला. इस फंड की कमी ने मानवीय एजेंसियों को भूखे लोगों के लिए राशन कम करने और सहायता के योग्य लोगों की संख्या घटाने पर मजबूर कर दिया.

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) में असिस्टेंट एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर रानिया डागाश-कमारा ने कहा, "हम इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि हमें भूखों से खाना लेकर भुखमरी के कगार पर पहुंचे लोगों को खिलाना पड़ रहा है." उन्होंने यह भी बताया कि डब्ल्यूएफपी का सीरिया में 60 लाख लोगों तक भोजन पहुंचाने का लक्ष्य था, लेकिन फंड की कमी के कारण इसे घटाकर 10 लाख करना पड़ा.

जर्मनी और अमेरिका से झटका

संयुक्त राष्ट्र के बड़े दानदाताओं में से एक जर्मनी ने 2023 से 2024 के बीच 50 करोड़ डॉलर की कटौती की. अब 2025 के लिए एक अरब डॉलर कम करने की योजना बनाई गई है. जर्मनी की नई संसद फरवरी में होने वाले चुनाव के बाद 2025 का बजट तय करेगी.

मानवीय संगठनों को अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल को लेकर भी चिंता है. उनके पहले कार्यकाल में उन्होंने विदेशी सहायता में कटौती करने की कोशिश की थी. उनके सलाहकारों ने संकेत दिया है कि विदेशी सहायता में और कमी की जा सकती है.

अमेरिका ने पिछले पांच साल में 64.5 अरब डॉलर की मानवीय सहायता प्रदान की है, जो कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्राप्त कुल सहायता का 38 फीसदी है.

चीन और भारत का योगदान

दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल चीन और भारत ने मानवीय सहायता में बहुत कम योगदान दिया है. चीन ने 2023 में सिर्फ 1.15 करोड़ डॉलर और भारत ने 64 लाख डॉलर की मदद दी.

2003 से 2006 तक संयुक्त राष्ट्र के मानवीय प्रमुख रहे यान एगेलैंड अब नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल के प्रमुख हैं. भारत और चीन की आलोचना करते हुए वह कहते हैं, "यह पागलपन है कि एक छोटा देश जैसे नॉर्वे शीर्ष दानदाताओं में शामिल है. ये देश अब विकासशील देश नहीं हैं. ये ओलंपिक कर रहे हैं, अंतरिक्ष मिशन चला रहे हैं. लेकिन भूखे बच्चों की मदद करने में कोई रुचि नहीं है."

भारत दुनिया में भुखमरी से सबसे ज्यादा पीड़ित देशों में शामिल है. हालांकि उसने अंतरराष्ट्रीय आकलन पर सवाल उठाए हैं. चीन के वॉशिंगटन स्थित दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयू ने कहा, "चीन ने हमेशा डब्ल्यूएफपी का समर्थन किया है. हम 1.4 अरब लोगों को अपने देश के भीतर खिलाते हैं. यह अपने आप में वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा योगदान है."

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि मौजूदा फंडिंग मॉडल में बदलाव की सख्त जरूरत है. जून में संयुक्त राष्ट्र के मानवीय राहत प्रमुख का पद छोड़ने वाले मार्टिन ग्रिफिथ्स कहते हैं, "हमें फंडिंग के लिए एक अलग स्रोत की जरूरत है."

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने 2014 में सुझाव दिया था कि सदस्य देशों से मानवीय सहायता के लिए शुल्क लिया जाए. लेकिन दान करने वाले देशों ने इसे खारिज कर दिया और वर्तमान मॉडल को प्राथमिकता दी.

मानवीय संकट और संघर्ष

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भूख के पीछे मुख्य कारण संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता हैं. युद्धग्रस्त क्षेत्रों में भोजन की जरूरतें बढ़ रही हैं, लेकिन मदद पहुंचाने में बाधाएं बनी रहती हैं. इसके अलावा, बड़े दानी देशों की सहायता में देरी और शर्तों की वजह से राहत एजेंसियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट की निदेशक जूलिया स्टेट्स कहती हैं, "सहायता तब आती है जब जानवर मर चुके होते हैं, लोग पलायन कर रहे होते हैं और बच्चे कुपोषण का शिकार हो चुके होते हैं." उन्होंने यह भी बताया कि सहायता में देरी के कारण बच्चों में गंभीर कुपोषण और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ते हैं.

संयुक्त राष्ट्र अब अपने दानकर्ताओं के आधार को विस्तारित करने की कोशिश कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता येन्स लार्के ने कहा, "हम सिर्फ उन्हीं दानियों पर निर्भर नहीं रह सकते जो बार-बार मदद कर रहे हैं. हमें नए दानकर्ताओं की जरूरत है."

वीके/एए (रॉयटर्स)