VIDEO: 1500 KM का सफर, 14 दिन का संघर्ष! कैसे तिब्बत से बाहर निकले दलाई लामा, लोबसंग सांगे ने खोले चीन के काले राज
(Photo : ANI/X)

How Dalai Lama Escaped Tibet After China's invasion: स्मिता प्रकाश के साथ ANI पॉडकास्ट में तिब्बत के निर्वासित प्रधानमंत्री लोबसांग सांगे ने चीन द्वारा तिब्बत पर आक्रमण और 14वें दलाई लामा को भारत में शरण लेने के लिए मजबूर करने का विवरण दिया. लोबसांग सांगे ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है, जो दलाई लामा के निर्वासन की यात्रा के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह से बदल सकता है. 1959 में जब कम्युनिस्ट चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया, तब 14वें दलाई लामा सिर्फ 24 साल के थे. उन्हें अपने धर्म और संस्कृति को बचाने के लिए तिब्बत छोड़कर निर्वासन में जाने का कठिन निर्णय लेना पड़ा. यह निर्णय लेने के बाद से लेकर भारत पहुंचने तक का सफर बेहद कठिन और खतरनाक था.

लोबसांग सांगे ने अपने खुलासे में बताया कि तिब्बत छोड़ने के बाद दलाई लामा का सफर करीब 1500 किलोमीटर लंबा था और यह 14 दिनों तक चला. इस दौरान उन्हें बर्फीले पहाड़ों, खतरनाक दर्रों और चीनी सैनिकों की लगातार निगरानी से पार पाना पड़ा. रात को खुले आसमान के नीचे सोना पड़ता था और दिन में भूखे-प्यासे चलना पड़ता था.

सांगे ने बताया कि दलाई लामा के साथ सिर्फ कुछ भरोसेमंद साथी थे, जो उनके बचपन के दोस्त और उनके सुरक्षा गार्ड थे. रास्ते में उन्हें स्थानीय लोगों से भी मदद मिली, जिन्होंने उन्हें खाने-पीने का सामान और चीनी सैनिकों से बचने के लिए गुप्त रास्ते बताए. इस यात्रा के दौरान दलाई लामा को कई बार चीनी सैनिकों से बाल-बाल बचना पड़ा.

जब भारत पहुंचे दलाई लामा

आखिरकार 14 दिनों के संघर्ष के बाद दलाई लामा भारत की सीमा पर पहुंच गए. भारत सरकार ने उन्हें शरण दी और धर्मशाला में तिब्बती शरणार्थियों के लिए एक आश्रय स्थल बनाने की अनुमति दी.

तिब्बत ने भारत से सहायता मांगी थी

सांगे चीन को एक विस्तारवादी देश के रूप में चित्रित करते हैं और बताते हैं कि कैसे चीन के आक्रमण से पहले तिब्बत ने भारत से सहायता मांगी थी. वह उन तिब्बतियों की भूमिका पर भी प्रकाश डालते हैं जो भारतीय विशेष बलों में शामिल होकर चीन से लोहा ले रहे हैं.

ताइवान पर हमला करेगा चीन! 

सांगे अपने माता-पिता के अस्तित्व के संघर्ष और चीन के तिब्बत पर कब्जे के बीच भारत में शरण लेने की उनकी यात्रा को याद करते हैं. वह चीन की एकमात्र महाशक्ति बनने की रणनीति और क्षेत्रों पर दावा करने की उसकी रणनीति के बारे में भी बात करते हैं. वह भविष्यवाणी करते हैं कि शी जिनपिंग के शासन के तहत 2024 में ताइवान चीन के संभावित हमले का शिकार हो सकता है.