'PM मोदी के खिलाफ असंसदीय शब्द अपमानजनक थे, लेकिन राजद्रोह नहीं', HC ने रद्द की FIR

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक स्कूल प्रबंधन के खिलाफ राजद्रोह का मामला रद्द करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के खिलाफ इस्तेमाल किए गए असंसदीय शब्द अपमानजनक और गैरजिम्मेदाराना थे, लेकिन ये राजद्रोह के दायरे में नहीं आते.

'PM मोदी के खिलाफ असंसदीय शब्द अपमानजनक थे, लेकिन राजद्रोह नहीं', HC ने रद्द की FIR
कोर्ट (Photo Credits: Twitter/TOI)

बेंगलुरु,7 जुलाई: कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक स्कूल प्रबंधन के खिलाफ राजद्रोह का मामला रद्द करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के खिलाफ इस्तेमाल किए गए असंसदीय शब्द अपमानजनक और गैरजिम्मेदाराना थे, लेकिन ये राजद्रोह के दायरे में नहीं आते.

उच्च न्यायालय की कलबुर्गी पीठ के न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर ने बीदर के न्यू टाउन पुलिस थाने द्वारा शाहीन स्कूल के प्रबंधन से जुड़े व्यक्तियों अलाउद्दीन, अब्दुल खालेक, मोहम्मद बिलाल इनामदार और मोहम्मद मेहताब के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकियों को रद्द कर दिया. Modi Surname Case: गुजरात हाई कोर्ट ने क्यों नहीं लगाई राहुल गांधी की सजा पर रोक? याचिका खारिज करते हुए कही ये बातें

अदालत ने कहा कि मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (ए)(धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य पैदा करना) के घटक नहीं पाए गए. न्यायमूर्ति चंदनगौदर ने अपने फैसले में कहा,‘‘ ऐसे असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल कि प्रधानमंत्री को चप्पल से पीटा जाना चाहिए, न केवल अपमानजनक है, बल्कि गैरजिम्मेदाराना भी है. सरकार की नीतियों की रचनात्मक अलोचना की अनुमति है, लेकिन नीतिगत निर्णय के लिये संवैधानिक पदाधिकारियों का अपमान नहीं किया जा सकता है, जिसको लेकर लोगों के एक खास वर्ग को आपत्ति हो सकती है.’’

यद्यपि ऐसे आरोप लगाए गए थे कि बच्चों ने जो नाटक का मंचन किया, उसमें सरकार के कई कानूनों की आलोचना की गई और कहा गया, ‘‘ अगर ऐसे कानूनों को लागू किया गया, तो मुसलमानों को देश छोड़ना पड़ सकता है.’’ अदालत ने कहा, ‘‘ नाटक का मंचन स्कूल परिसर के अंदर हुआ. बच्चों द्वारा ऐसे कोई शब्द इस्तेमाल नहीं किए, जो हिंसा के लिए अथवा अव्यवस्था फैलाने के लिए लोगों को भड़काने वाले हों.’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि इस नाटक की जानकारी लोगों को तब हुई, जब एक आरोपी ने इस नाटक का वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया. न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, ‘‘इसलिए दूर-दूर तक इसकी कल्पना नहीं की जा सकती कि याचिकाकर्ताओं ने नाटक का मंचन सरकार के खिलाफ हिंसा के लिए लोगों को भड़काने के वास्ते अथवा सार्वजनिक अव्यवस्था फैलाने के लिए किया.’’

अदालत ने कहा, ‘‘आवश्यक घटकों के अभाव में आईपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह) और धारा 505 (2) के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.’’ स्कूल के कक्षा चार,पांच और छह के छात्रों ने 21 जनवरी 2020 को संशोधित नागरिकता कानून तथा राष्ट्रीय नागरिक पंजी के खिलाफ एक नाटक का मंचन किया था और इसके बाद स्कूल के प्राधिकारियों के खिलाफ राजद्रोह के अपराध के लिये प्राथमिकी दर्ज की गईं.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य नीलेश रकशाला की शिकायत पर चार लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 504 (जानबूझ कर किसी को अपमानित करना),505(2), 124ए (राजद्रोह), 153ए और धारा 34 के मामला दर्ज किया गया था. उच्च न्यायालय ने शुरुआत में आदेश का प्रभावी हिस्सा ही पढ़ा था, विस्तृत फैसले को हाल में अपलोड किया गया. अदालत ने अपने आदेश में स्कूलों को ये भी सुझाव दिया कि वे बच्चों को सरकार की आलोचनाओं से दूर रखें.

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