डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए पहली पसंद बना 'त्रियुगीनारायण' मंदिर, एक साल में सैकड़ों देशी-विदेशी जोड़े बंधे विवाह बंधन में
आजकल देश-विदेश में शादियों का डेस्टिनेशन वेडिंग का नया ट्रेंड चल चुका है. समय और लाइफस्टाइल बदलने के साथ अधिकांश कपल डेस्टिनेशन वेडिंग की ओर रुख कर रहे हैं. डेस्टिनेशन वेडिंग में कपल अपनी मर्जी से किसी खास जगह की चुनाव करके अपने वहां अपने अनुसार शादी के बंधन में बंधते हैं.
देहरादून, 30 जनवरी : आजकल देश-विदेश में शादियों का डेस्टिनेशन वेडिंग का नया ट्रेंड चल चुका है. समय और लाइफस्टाइल बदलने के साथ अधिकांश कपल डेस्टिनेशन वेडिंग की ओर रुख कर रहे हैं. डेस्टिनेशन वेडिंग में कपल अपनी मर्जी से किसी खास जगह की चुनाव करके अपने वहां अपने अनुसार शादी के बंधन में बंधते हैं. वैडिंग डेस्टिनेशन के लिए देश के साथ विदेशी जोड़ों की 'शिव व पार्वती' त्रियुगीनारायण मंदिर पहली पसंद बन रहा है. त्रियुगीनारायण मंदिर में ही हुआ था 'शिव पार्वती का शुभविवाह' माना जाता है कि यही वह जगह है जहां साक्षात भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. उत्तराखंड का त्रियुगीनारायण मंदिर ही वह पवित्र और विशेष पौराणिक मंदिर है. इस मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि जल रही है. शिव-पार्वती जी ने इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था. यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक भाग है. त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में ही कहा जाता है कि यह भगवान शिवजी और माता पार्वती का शुभ विवाह स्थल है. मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि कई युगों से जल रही है, इसलिए इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी अग्नि, जो तीन युर्गों से जल रही है.
त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी. यहां शिवपार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था. जब कि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे. उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था. विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहमशिला कहा जाता है जोकि मंदिर के ठीक सामने स्थित है. इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है. विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्रकुंड, विष्णुकुंड और ब्रह्माकुंड कहते हैं. इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है. सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्रकुंड, विष्णुकुंड और ब्रह्माकुंड कहते हैं . ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतान हीनता से मुक्ति मिल जाती है. यह भी पढ़ें : उत्तर प्रदेश मे कैदियों को चरस सप्लाई में मददगार चार पुलिसकर्मी बर्खास्त
कहा जाता है कि भारत में मौजूद इस मंदिर में यह ज्वाला तीन युगों से जल रही है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. इस मंदिर में जल रही अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव और पार्वती ने विवाह किया था और तब से यह अग्नि इस मंदिर में प्रज्जवलित हो रही है. त्रियुगी नारायण मंदिर में मौजूद अखंड धुनी के चारों ओर भगवान शवि ने पार्वती के संग फेरे लिए थे. माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे. वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है. जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापर युग में स्थापित हुए. यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन देवता का अवतार लिया था.
पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रासन पाने के लिए राजा बलि को सौ यज्ञ करने थे, इनमें से बलि 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर रोक दिया जिससे कि बलिका यज्ञ भंग हो गया. यहां विष्णु भगवान वामन देवता के रूप में पूजे जाते हैं.
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित शिव और पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण मंदिर वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में काफी लोकप्रिय हो रहा है. यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग यहां आकर शादियां कर रहे हैं. बीते एक साल के आंकड़ों पर नजर डाले तो करीब सैकड़ों देशी-विदेशी जोड़े मंदिर में विवाह के बंधन में बंधे.
हिमालयी प्रदेश उत्तराखंड आदिकाल से पवित्र रहा है. देश व दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री, पर्यटक और मुसाफिर शांति और अध्यात्म के लिए इस सुरम्य प्रदेश के मंदिरों व तीर्थस्थानों पर आते रहे हैं. इन पवित्र स्थानों के प्रति लोगों की भक्ति और विश्वास इतने प्रगाढ़ हैं कि जन्म से लेकर मृत्यु तक तमाम धार्मिक संस्कारों/क्रियाओं के लिए वे उत्तराखंड की धरती पर आते रहते हैं.
पर्यटन सचिव, दिलीप जावलकर का कहना है, " त्रियुगीनारायण मंदिर प्रदेश के अहम धार्मिक स्थलों में से एक है. यह दशार्ता है कि उत्तराखंड पर भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों का ही आशीर्वाद है. यहां आकर विवाह करने की युवा दंपतियों में बढ़ती दिलचस्पी से साबित होता है कि हमारी नई पीढ़ी पुरातन परम्पराओं में विश्वास रखती है." त्रियुगीनारायण मंदिर जिसे त्रिजुगी नारायण भी कहते हैं. मंदिर तक रुद्रप्रयाग जिले के सोनप्रयाग से सड़क मार्ग से 12 किलोमीटर का सफर तय करके पहुंचा जा सकता है. 1980 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह प्रकृति मनोहर मंदिर गढ़वाल मंडल के बर्फ से ढके पर्वतों का भव्य मंजर पेश करता है. यहां पहुंचने के लिए एक ट्रैक भी है. सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर लंबे गुट्टूर-केदारनाथ पथ पर घने जंगलों के बीच से होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है. केदारनाथ मंदिर से त्रियुगीनारायण तक की ट्रैकिंग दूरी 25 किलोमीटर है.
त्रियुगी नारायण की बनावट केदारनाथ मंदिर की संरचना जैसे लगती है. मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ-साथ माता लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा भी सुशोभित हैं. मंदिर के समक्ष मौजूद ब्रह्मशिला विवाह के सटीक स्थल की पहचान है. इस मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की चांदी की बनी मूर्ति है. उनके साथ में भगवान बद्रीनारायण, माता सीता-भगवान रामचंद्र और कुबेर की भी मूर्तियां स्थित हैं. इस मंदिर परिसर में चार पवित्र कुंड भी हैं- रुद्र कुंड स्नान के लिए, विष्णु कुंड प्रक्षालन हेतु, ब्रह्म कुंड आचमन के लिए और सरस्वती कुंड तर्पण के लिए. मान्यता है कि जो दंपति यहां विवाह संपन्न करते हैं उनका बंधन सात जन्मों के लिए जुड़ जाता है. देहरादून निवासी सौरभ गुसाईं भी यहां विवाह करने की ख्वाहिश रखते हैं. उनका कहना है कि वो प्राकृतिक सुदंरता से हमेशा मंत्रमुग्ध हुए हैं. वो कहते हैं, '' हमने त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में बहुत सुना है और हमारा विश्वास है कि इस दिव्य स्थल पर नए जीवन की शुरूआत करना हमारे लिए बहुत ही कल्याणकारी सिद्ध होगा.''