रुद्रप्रयाग, 4 अप्रैल: कहा जा रहा था कि छह मई को केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) के कपाट खुलने के बाद भी श्रद्धालुओं को लगभग दो-तीन सप्ताह तक बर्फ (Ice Melting) के बीच से ही सफर करना होगा. लेकिन, यहां तो अप्रैल शुरू होते ही बर्फ लगभग गायब हो गई है, जबकि बीते वर्षों में मई आखिर तक भी केदारपुरी में बर्फ (Snow) के दर्शन होते रहे हैं. वर्तमान में लिनचोली से केदारनाथ के बीच सिर्फ चार ग्लेशियर प्वाइंट (Glacier) में ही बर्फ नजर आ रही है. इससे स्थानीय निवासियों के साथ ही विशेषज्ञ भी हैरान हैं.
केदारपुरी में दोपहर का तापमान 28 से 30 डिग्री के बीच
इन दिनों केदारपुरी में दोपहर का तापमान 28 से 30 डिग्री के बीच है. मंदिर और आसपास की बर्फ तेजी से पिघल (Snow Melting) रही है. बता दें कि केदारनाथ पैदल मार्ग पर भीमबली से केदारनाथ के बीच बर्फ हटाने का लक्ष्य 31 मार्च तक रखा था. लेकिन, डीडीएमए ने 24 मार्च तक ही मार्ग को खोल दिया. द्वितीय चरण में मार्ग को दो मीटर चौड़ाई में और खोला जाना था, लेकिन बढ़ते तापमान के कारण बर्फ पिघलने से ऐसी नौबत ही नहीं आ रही. बीते वर्षों में यात्रा शुरू होने के बाद भी कई सप्ताह तक केदारनाथ में बर्फ रहती थी.
इस दिन खुलेंगे कपाट
चारधाम के कपाट की बात करें तो गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट तीन मई को खुलेंगे. इसके अलावा केदारनाथ धाम के कपाट छह मई, बदरीनाथ के आठ मई जबकि 22 मई को हेमकुंड साहिब के कपाट खोले जाएंगे.
केदारनाथ में इस बार टोकन व्यवस्था से होंगे दर्शन
इस बार केदारनाथ आने वाले श्रद्धालुओं को बाबा केदार के दर्शनों के लिए नंगे पांव खड़े होकर लाइन में इंतजार नहीं करना होगा. प्रशासन द्वारा बाबा दर्शनों के लिए टोकन की व्यवस्था लागू की जा रही है.
मार्च और अप्रैल में जो तापमान है वो पश्चिमी विक्षोभ के चलते ऐसा हुआ है. क्यों कि पहाड़ो पर न तो बारिश हो रही है, और न ही कहीं स्नो फॉल हो रहा है. जिससे तापमान लगातार बढ़ रहा है. साथ ही विंटर सीजन में बर्फबारी हुई थी . लेकिन अभी पहाड़ो में बर्फबारी नहीं हुई है. इसी वजह से बर्फ पिघल रही है. ग्लोबल वामिर्ंग के कारण या फिर जो पेड़ कट रहे हैं. इसी वजह से बर्फ पिघल रही है.
मौसम विभाग के निदेशक डॉक्टर विक्रम सिंह का कहना है कि, लगातार जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है. उसके चलते अब सिर्फ मैदान ही नहीं बल्कि पहाड़ों पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वनों की हो रही अंधाधुन कटाई से ग्लोबल वामिर्ंग का खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है और इसका सीधा असर अब हम मैदानी क्षेत्रों के साथ साथ पर्वतीय क्षेत्रों में भी देख रहे हैं.