सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार के दोषी पाए गए अपराधियों को समय से पहले मिली रिहाई को निरस्त कर दिया है. अब सभी 11 अभियुक्तों को दो हफ्तों के अंदर वापस जेल लौटना पड़ेगा.सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 अभियुक्तों को समय से पहली मिली रिहाई को तकनीकी कारण से निरस्त किया. अदालत ने कहा कि चूंकि अभियुक्तों को सजा महाराष्ट्र में मिली थी, इसलिए उनकी रिहाई का फैसला लेने का अधिकार भी महाराष्ट्र सरकार को ही है, ना कि गुजरात सरकार को.
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और उज्जल भुयान की पीठ ने इन अभियुक्तों को दो हफ्तों के अंदर जेल अधिकारियों के पास पहुंच जाने का भी आदेश दिया. फैसला इन अभियुक्तों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ दायर की गई कई याचिकाओं पर चल रही सम्मिलित सुनवाई पर आया.
क्या है मामला
2008 में मुंबई में एक ट्रायल कोर्ट ने इन लोगों को गुजरात में हुए 2002 के गोधरा दंगों में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या का दोषी पाया था.
बाद में इन 11 अभियुक्तों में से एक राधेश्याम भगवानदास शाह ने गुजरात हाई कोर्ट से समय से पहले रिहाई की अपील की थी. उस समय गुजरात हाई कोर्ट ने उसकी याचिका को यह कर ठुकरा दिया था कि इस फैसले का अधिकार उसी राज्य के पास जहां अभियुक्त को सजा दी गई थी.
इसके बाद शाह ने महाराष्ट्र में अपील दायर की जिसे ठुकरा दिया गया. उसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वह गुजरात सरकार को आदेश दे. सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में गुजरात सरकार को आदेश दिया कि वो समय से पहले रिहाई की याचिका पर विचार करे.
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना ही फैसला
इसके बाद गुजरात सरकार ने शाह समेत सभी 11 अभियुक्तों को रिहा कर दिया. रिहाई के बाद उन सब का जेल के बाहर स्वागत और अभिनंदन किया गया. लेकिन खुद बिलकिस बानो, कुछ एक्टिविस्टों और कुछ राजनेताओं ने इस रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया. दिलचस्प है कि ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में दिए अपने ही फैसले को गलत ठहराया है. लेकिन अदालत ने कहा कि वह फैसला धोखे से सुप्रीम कोर्ट से लिया गया. हालांकि ये सवाल अब भी बना हुआ है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के साथ ऐसा धोखा हुआ कैसे.