सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश भर में बढ़ रहे "डिजिटल अरेस्ट" और ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों पर गंभीर चिंता जताई है. कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. यह धोखाधड़ी इतनी खतरनाक है कि इसमें जालसाज सुप्रीम कोर्ट के जजों के फर्जी दस्तखत वाले नकली आदेशों का इस्तेमाल कर लोगों को लूट रहे हैं.
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर खुद संज्ञान लिया (suo motu), जिसका मतलब है कि कोर्ट ने किसी की याचिका का इंतजार नहीं किया, बल्कि खुद ही इस मुद्दे को उठाया. इसकी वजह हरियाणा के अंबाला में रहने वाले एक बुजुर्ग दंपति की शिकायत थी.
इन बुजुर्ग दंपति के साथ 1 से 16 सितंबर के बीच एक बहुत बड़ी ऑनलाइन ठगी हुई, जिसमें उनकी जिंदगी भर की जमा-पूंजी लुट गई. ठगों ने उन्हें वीडियो कॉल और फोन पर खुद को CBI, इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और कोर्ट के अधिकारी बताकर डराया.
धोखाधड़ी का तरीका था बेहद शातिर
जालसाजों ने बुजुर्ग दंपति को डराने के लिए वॉट्सऐप और वीडियो कॉल पर सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेश दिखाए. इन नकली कागजों पर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना के जाली दस्तखत भी थे. इन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर गिरफ्तारी की धमकी देकर, ठगों ने बुजुर्ग दंपति से 1.5 करोड़ रुपए अलग-अलग बैंक खातों में ट्रांसफर करवा लिए.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जयमाला बागची की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, "हम यह देखकर हैरान हैं कि धोखेबाजों ने सुप्रीम कोर्ट के नाम पर कई फर्जी अदालती आदेश बना लिए हैं."
जज ने कहा कि जजों के नकली दस्तखत वाले अदालती आदेश न्यायपालिका में लोगों के भरोसे की नींव पर सीधा हमला है. इसे सिर्फ एक सामान्य धोखाधड़ी या साइबर अपराध नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह कोई अकेला मामला नहीं है, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसी कई घटनाएं सामने आ रही हैं.
किस-किस को नोटिस जारी हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मामले में केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), हरियाणा सरकार और अंबाला की साइबर क्राइम यूनिट को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है. कोर्ट का मानना है कि इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर तुरंत ठोस कदम उठाने की जरूरत है.













QuickLY