
भारत में रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति एक बार फिर चर्चा में है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली से रोहिंग्या मुसलमानों के संभावित निर्वासन पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया. इसके बाद यह सवाल उठ रहा है कि भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के भविष्य का क्या होगा?
क्या है मामला?
रोहिंग्या मुसलमानों के प्रतिनिधि ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि म्यांमार में जारी हिंसा और नरसंहार के कारण उन्हें भारत में शरण मिलनी चाहिए. उनका कहना था कि उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया जाए ताकि वे भारत में सुरक्षित रह सकें. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर उनकी याचिका पर रोक लगाने से इनकार कर दिया कि भारत के संविधान में केवल भारतीय नागरिकों को ही देश में रहने का अधिकार प्राप्त है.
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत के संविधान के तहत केवल भारतीय नागरिकों को देश में रहने का अधिकार है. विदेशी नागरिकों के मामलों में भारतीय कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी. इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्विस और वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि रोहिंग्या मुसलमानों को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHCR) ने शरणार्थी के रूप में मान्यता दी है और उनके पास शरणार्थी कार्ड भी हैं, इसलिए उन्हें भारत में रहने का अधिकार मिलना चाहिए.
If they are foreigners, they have to be deported: Supreme Court in Rohingya case
Centre said India is not a party to the UN Refugee Convention, and UNHCR cards of the refugees are disputed.
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— Bar and Bench (@barandbench) May 8, 2025
भारत का रुख
भारत सरकार ने इस मामले में अपनी स्थिति साफ की. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारत ने 1951 के यूएन शरणार्थी संधि (UN Refugee Convention) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, और इसलिए UNHCR द्वारा दी गई शरणार्थी मान्यता भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि रोहिंग्या मुसलमान विदेशी नागरिक हैं और भारत का संविधान उन्हें विशेष शरणार्थी अधिकार नहीं देता.
क्या है अगले कदम?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए 31 जुलाई की तारीख तय की है, जहां इस मुद्दे पर और चर्चा की जाएगी. फिलहाल, अदालत ने स्पष्ट किया है कि रोहिंग्या प्रवासियों को 'जीवन का अधिकार' मिल सकता है, लेकिन उनका मामला विदेशी नागरिकों से संबंधित है और उनके खिलाफ विदेशी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी.
इस फैसले के बाद यह सवाल उठता है कि भारत में शरणार्थियों की स्थिति क्या होगी और किस तरह की नीति बनाई जाएगी, जो विदेशी नागरिकों और शरणार्थियों के अधिकारों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को भी ध्यान में रखे.