नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए देश के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे में शामिल कर लिया है. संविधान बेंच ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि पारदर्शिता से न्यायिक स्वतंत्रता को कम नहीं होती है. इसलिए चीफ जस्टिस का कार्यालय सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में आं जरुरी है. हालांकि न्यायपालिका की गोपनीयता और स्वतंत्रता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए ही आरटीआई एक्ट लागू होगा.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया. इससे पहले वरिष्ठ जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई पूरी करते हुए 4 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति एन.वी. रमना, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना शामिल रहे. NRC पर सीजेआई रंजन गोगोई का बड़ा बयान, कहा- ये भविष्य का दस्तावेज
'Transparency doesn’t undermine judicial independency', Supreme Court says while upholding the Delhi High Court judgement which ruled that office of Chief Justice comes under the purview of Right to Information Act (RTI). https://t.co/axAjUFzDRr
— ANI (@ANI) November 13, 2019
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सीजेआई का कार्यालय सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में आता है. सुप्रीम कोर्ट के महासचिव द्वारा इस निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की गई थी. अदालत से जुड़ी आरटीआई का जवाब देने का कार्य केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी का होता है.
सुप्रीम कोर्ट के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल ने कहा था कि सीजेआई के कार्यालय के अधीन आने वाले कॉलेजियम से जुड़ी जानकारी को साझा करना जजों और सरकार को शर्मसार करेगा और न्यायिक स्वतंत्रता को नष्ट कर देगा.
(एजेंसी इनपुट के साथ)