VIDEO: कैसे हुआ रामलला का सूर्य तिलक? सुधांशु त्रिवेदी बताया इसका रहस्य, प्राचीन विज्ञान का आधुनिक अवतार
डॉ. त्रिवेदी ने समझाया कि जिस वैज्ञानिक विधि से यह सूर्य तिलक किया जा रहा है, उसे आज के आधुनिक युग में भी समझा जा सकता है. उन्होंने बताया कि भारत के कई प्राचीन मंदिरों में सूर्य की किरणों का इसी प्रकार उपयोग किया जाता था.
आज देशभर में रामनवमी की धूम है. अयोध्या के राम मंदिर में आज के दिन विशेष व्यस्था की गई. दोपहर के समय राम लला की मूर्ति के माथे का सूर्य की किरण से अभिषेक किया गया. प्रंदिर प्रबंधन ने विज्ञान का इस्तेमाल कर 5.8 सेंटीमीटर प्रकाश की किरण के साथ रामलला का 'सूर्य तिलक' किया है. इस मौके पर 10 भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम राम मंदिर में तैनात थी.
भारतीय जनता पार्टी के नेता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने रामनवमी के पावन अवसर पर रामलला के मस्तक पर लगने वाले सूर्य तिलक की प्राचीन और वैज्ञानिक परंपरा पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि इस वर्ष की रामनवमी एक अद्भुत और अनोखा अनुभव प्रदान करने वाली है क्योंकि यह भव्य राम मंदिर में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद की पहली रामनवमी है. इस बार श्री रामलला के मस्तक पर सूर्य तिलक की परंपरा की शुरुआत हो रही है.
डॉ. त्रिवेदी ने समझाया कि जिस वैज्ञानिक विधि से यह सूर्य तिलक किया जा रहा है, उसे आज के आधुनिक युग में भी समझा जा सकता है. उन्होंने बताया कि भारत के कई प्राचीन मंदिरों में सूर्य की किरणों का इसी प्रकार उपयोग किया जाता था. इस प्रकार, श्री राम नवमी के पावन पर्व पर श्रद्धा और भक्ति के साथ-साथ, यह भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति और वैज्ञानिक ज्ञान पर गर्व करने का भी अवसर है.
इस परंपरा की विशेषताएं
सूर्य किरणों का उपयोग: इस विधि में विशेष रूप से व्यवस्थित दर्पणों और लेंसों की सहायता से सूर्य की किरणों को एकत्रित करके रामलला के मस्तक पर केंद्रित किया जाता है, जिससे एक तिलक का आकार बनता है.
प्राचीन मंदिरों में उपयोग: कोणार्क सूर्य मंदिर, मोढेरा सूर्य मंदिर, और कई अन्य प्राचीन मंदिरों में इसी प्रकार की तकनीक का उपयोग समय मापने, प्रकाश व्यवस्था और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता था.
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व: यह परंपरा न केवल वैज्ञानिक ज्ञान का प्रमाण है बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. सूर्य को ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत माना जाता है, और इसका तिलक लगाना दिव्य आशीर्वाद और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है.
इस प्रकार, रामलला के सूर्य तिलक की परंपरा हमें भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत की याद दिलाती है और हमें उस पर गर्व करने का अवसर प्रदान करती है.