सैनिक द्वारा चुनौतियों को पीठ दिखाना ‘कायरता’ के समान है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Photo Credit- IANS)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने कहा है कि एक सैनिक को देश की अखंडता की रक्षा के प्रत्येक अवसर पर आगे बढ़ना चाहिए और यदि वह ‘गंभीर स्थिति’ में चुनौती से मुंह मोड़ता है तो निश्चित ही यह कायरता कहलायेगा. न्यायलाय ने कहा कि वह ‘अतीत के गौरव’’ के आधार पर जिंदा नहीं रह सकता क्योंकि देश की रक्षा करने के लिये उस पर भरोसा जताया गया है. शीर्ष अदालत ने एक सैनिक की सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली याचिका अस्वीकार करते हुये यह टिप्पणी की। इस सैनिक को 2006 में जम्मू कश्मीर में एक अभियान के दौरान उसकी चौकी पर जब उग्रवादियों ने गोलियां बरसायीं तो जवाबी कार्रवाई करने के बजाये चौकी से भाग जाने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। इस हमले में सैनिक का एक साथी मारा गया था.

इस सैनिक पर अपनी एके-47 राइफल और पिस्तौल का इस्तेमाल करने में विफल रहने का आरोप लगाया गया था क्योंकि इस वजह से उग्रवादियों ने घेराबंदी तोड़ दी थी और एक सैनिक की जान लेने के साथ ही हल्की मशीन गन लेकर फरार हो गये थे. न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि एक जवान को जवाबी कार्रवाई करने और राष्ट्र की अखंडता की रक्षा करने के लिये हमलावरों के साथ संघर्ष करने के मकसद से प्रशिक्षित करने पर देश के संसाधन खर्च किये जाते है। अगर इस तरह की चुनौती भरी स्थिति में सिपाही पीठ दिखाकर भागता है तो निश्चित ही यह कायरता होगी.

शीर्ष अदालत ने इस सैनिक की ओर से वकील द्वारा पेश दलीलों पर गौर किया जिसने फौरी कोर्ट मार्शल कार्यवाही के दौरान कुछ गवाहों के बयानों का हवाला दिया था और कहा था कि बर्खास्त जवान ‘अच्छा सैनिक’ था और वह किसी भी अभियान में हिस्सा लेने से डरता नहीं था.

पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता के वकील ने गवाहों से हुयी जिरह का हवाला देने का अनुरोध किया था जिससे पता चलता है कि उसने सीमा की रक्षा के लिये पहले अनेक अभियानों में हिस्सा लिया था और गवाहों ने उसे एक अच्छा सैनिक बताया था। पीठ ने कहा कि एक सैनिक अपने अतीत के गौरव पर जिंदा नहीं रह सकता है और उसे देश की अखंडता की रक्षा करने के लिये हर अवसर पर तैयार रहना चाहिए.

इस बर्खास्त सैनिक ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण, चंडीगढ़ के अगस्त 2011 के आदेश को चुनौती दी थी जिसने उसे बर्खास्त करने के कोर्ट मार्शल के फैसले को बरकरार रखा था. शीर्ष अदालत ने उसे सेवा से बर्खास्त करने का आदेश बरकरार रखा परंतु उसकी जेल की सजा यह कहते हुये निरस्त कर दी कि मौजूदा मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में हमने यह पाया कि अपीलकर्ता ने हालांकि कायरता का परिचय दिया लेकिन वह भी इस घटना में गोली लगने से जख्मी हो गया था. यह सैनिक 2006 में 3 राष्ट्रीय राइफल बटालियन में तैनात था।