अब छात्र स्कूल में नहीं कर सकेंगे नक़ल, लॉन्च हुआ सॉफ्टवेयर
पहचान का प्रमाणन और सत्यापन करने वाली प्लेटफार्म वैरिफिशियंट टेक्नोलॉजी ने छात्रों द्वारा परीक्षा में किए जाने वाले नकल को रोकने के लिए भारतीय बाजार में 'प्रोक्टरट्रैक' सॉफ्टवेयर लांच किया है.
नई दिल्ली : पहचान का प्रमाणन और सत्यापन करने वाली प्लेटफार्म वैरिफिशियंट टेक्नोलॉजी ने छात्रों द्वारा परीक्षा में किए जाने वाले नकल को रोकने के लिए भारतीय बाजार में 'प्रोक्टरट्रैक' सॉफ्टवेयर लांच किया है. कंपनी ने एक बयान में कहा कि 'प्रोक्टरट्रैक' एक पेटेंटेड और इकलौता फुली-ऑटोमेटेड रिमोट प्रोक्टरिंग सॉल्युशन है, जो ऑनलाइन टेस्ट देने वालों की आइडेंटिटी को सत्यापित करता है. यह टेस्ट में भाग ले रहे यूजर के लिए मानवरहित माहौल बनाता है ताकि निरंतर निगरानी का उसका डर हटाया जा सके. लेकिन वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल कर उन्हें धोखाधड़ी करने से रोकता है.
वैरिफिशियंट टेक्नोलॉजी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक टिम दत्ता ने कहा, "हमने इन कार्यक्रमों में न केवल ईमानदारी लाने में मदद की है, बल्कि उन्हें कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लैस करने में मदद भी की है. इस तकनीक की विशेषता यह भी है कि यह इनविजिलेटर्स के काम-काज की गलतियों को हाइलाइट करती है, जिसमें उम्मीदवारों के कम्प्यूटर और पर्सनल स्पेस की गोपनीयता में घुसपैठ शामिल है."
उन्होंने कहा कि परीक्षाओं में भाग लेने के दौरान छात्रों में अनुचित साधनों के इस्तेमाल का चलन बढ़ा है. वे मोबाइल फोन, स्मार्ट वॉच, छिपे हुए ईयरपीस और कुछ अन्य स्मार्ट डिवाइस जैसे अनुचित साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे चेक करना ऑथोरिटी के लिए आसान नहीं होता. हाल ही में सामूहिक चीटिंग के कई मामले सामने आए हैं और आंकड़े तो चौंकाने वाले हैं. इस तरह के मामले सामने आने से नतीजों की विश्वसनीयता खतरे में पड़ जाती है क्योंकि धोखाधड़ी के मामले सिर्फ स्कूल में ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा से जुड़ी परीक्षाओं और सरकारी परीक्षाओं में भी बढ़ रहे हैं.
बयान में कहा गया कि 'प्रोक्टरट्रैक' निरंतर और भरोसेमंद नतीजे हासिल करने के लिए मानवीय मौजूदगी की आवश्यकता को खत्म करता है, इस वजह से कई प्रोक्टर्ड टेस्ट किसी भी समय, किसी भी जगह, ऑन डिमांड लिए जा सकते हैं. यह ऑनलाइन प्रोग्राम और एजुकेशनल इंस्टिट्यूशंस की ईमानदारी को बनाए रखने में मदद करते हैं.