किसी ने कैंसर से लड़ी जंग तो कोई हुआ सड़क दुर्घटना का शिकार: साल 2014 से लेकर अब तक बीजेपी खो चुकी है अपने इन बड़े नेताओं को
साल 2014 से बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से पार्टी अपने कई बड़े नेताओं को खो चुकी है. बीजेपी के ये नेता न सिर्फ पार्टी के वफादार नेता थे बल्कि पार्टी की शान थे. इन नेताओं के व्यक्तित्व से पार्टी की पहचान है.
साल 2014 से बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से पार्टी अपने कई बड़े नेताओं को खो चुकी है. बीजेपी के ये नेता न सिर्फ पार्टी के वफादार नेता थे बल्कि पार्टी की शान थे. इन नेताओं के व्यक्तित्व से पार्टी की पहचान है. इन नेताओं ने पार्टी के लिए जमीन स्तर पर काम कर बीजेपी को बुलंदियों तक पहुंचाया लेकिन खुद हमेशा अपनी जड़ों से जुड़े रहे. साधारण व्यक्तिव वाले बीजेपी के ये नेता असाधारण है. इन्होने राजनीति से ऊपर उठकर देश को नया मुकाम दिया.
ईमानदारी और कठिन परिश्रम से देश के उच्च शिखरों पर पहुंचे बीजेपी के इन नेताओं की छवि बेदाग रही. भ्रष्टाचार और निम्न स्तर की राजनीति के आरोप कभी इन नेताओं को छू भी नहीं पाए. यही कारण था कि विपक्ष भी इन नेताओं का मुरीद था. हम आपको बताते हैं बीजेपी सरकार के इस कार्यकाल में पार्टी के किन कद्दावर नेताओं का निधन हुआ.
अटल बिहारी वाजपेयी (25 दिसंबर 1924 - 16 अगस्त 2018)
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) का निधन न सिर्फ पार्टी बल्कि पूरे देश के लिए एक बहुत बड़ा झटका था. अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता थे. उनकी दीवानगी इस कदर थी कि उनके निधन को एक युग का अंत बताया गया. देश के लिए उनका प्रेम किसी से नहीं छुपा है. उनके हर भाषण, हर कविता से उनके निश्छल प्रेम की भावना छलकती थी. साल 2018 में बीजेपी के भीष्म पितामाह कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का लंबी बीमारी के बाद 93 साल की आयु में एम्स में निधन हो गया था.
भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी शख्सियत के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को जाना जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने तीन बार देश के प्रधानमंत्री पद पर रहकर देश सेवा की और भारत को नए मुकाम पर ले गए. साधारण छवि वाले अटल बिहारी वाजपेयी आज भी हमेशा अटल, अडिग रहे. स्वास्थ्य समस्या के चलते उन्होंने बहुत पहले ही राजनीति से सन्यास ले लिया था लेकिन उनका होना मात्र ही देश के लिए एक आधार था.
मनोहर पर्रिकर (13 दिसंबर 1955 - 17 मार्च 2019)
पूर्व रक्षामंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर (Manohar Parrikar) का निधन कल रविवार देर शाम हुआ. पर्रिकर के निधन से पूरे देश में शोक है. पर्रिकर की दीवानगी भी गोवा तक सिमित नहीं थी, बीजेपी के साथ-साथ पूरा विपक्ष उनका कायल था. मनोहर पर्रिकर एक ऐसे व्यक्ति थे, जो लड़ते रहे, संघर्ष करते रहे. उनका निधन न सिर्फ बीजेपी का नुकसान है बल्कि पूरा देश उनकी कमी को नहीं भर पाएगा. पर्रिकर देश के उन नेताओं में से थे, जो अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे. वे देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने आईआईटी से पढ़ाई की थी. यह भी पढ़ें- अलविदा मनोहर पर्रिकर: IIT से सायकिल की सवारी और सीएम से रक्षा मंत्री तक ऐसा था उनका शानदार सफरनामा
कांग्रेस के गढ़ गोवा में बीजेपी की जड़े जमाने का श्रेय पर्रिकर को ही जाता है. वे गोवा में बीजेपी के संकटमोचक बनकर उभरे थे. देश के रक्षामंत्री और गोवा के सीएम रहते हुए उन्होंने कई अद्वितीय कार्य किए. 63 साल के पर्रिकर फरवरी 2018 से अग्नाशय (पैंक्रियाटिक) के कैंसर से जूझ रहे थे. वह अमेरिका, मुंबई और दिल्ली में इलाज करा चुके थे.
अनंत कुमार (22 जुलाई 1959 - 12 नवंबर 2018)
साल 2018 में बीजेपी ने दक्षिण भारत के अपने सबसे मजबूत और अपने सबसे कामयाब नेताओं में शुमार अनंत कुमार (Ananth Kumar) को खोया. अनंत कुमार कैंसर से जूझ रहे थे. 59 वर्ष की उम्र में उन्होंने बेंगलुरु में आखिरी सांस ली. अनंत कुमार साल 1996 से दक्षिणी बेंगलुरु का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते थे. उनके पास दो महत्वपूर्ण मंत्रालय थे और वह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के कद्दावर मंत्रियों में से एक थे.
अनंत कुमार 1996 में पहली बार दक्षिणी बेंगलुरु से लोकसभा के सदस्य बने थे. 1996 में 13 दिन की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें उड्डयन मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. साल 2014 में मोदी सरकार में उन्हें रसायन और उर्वरक मंत्रालय सौंपा गया था. जुलाई 2016 में उनके कार्यक्षेत्र का विस्तार करते हुए उन्हें संसदीय कार्यमंत्री की जिम्मेदारी भी दी गई थी.
गोपीनाथ मुंडे (12 दिसंबर 1949 - 3 जून 2014)
साल 2014 में बीजेपी जब जीत के जश्न में थी उन्ही दिनों पार्टी को गोपीनाथ मुंडे (Gopinath Munde) के निधन के साथ सबसे बड़ा झटका लगा. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिलने के कुछ ही सप्ताह के भीतर दिल्ली में एक सड़क दुर्घटना में गोपीनाथ मुंडे की मौत हो गई थी. मुंडे महाराष्ट्र राजनीति में लंबे समय से सक्रिय थे. जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनका रिश्ता बहुत पुराना था. 34 साल पहले 1980 में ही वह पहली बार विधायक बन गए थे. 1980 से 1985 और 1990 से 2009 तक वह विधायक रहे. इसके बाद वह लोकसभा चले गए.
1992 से 1995 तक वह महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे. 1995 में जब बीजेपी-शिवसेना की सरकार आई तो मुंडे को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. गोपीनाथ मुंडे को महाराष्ट्र में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा माना जाता था. उन्हें मोदी सरकार में ग्रामीण विकास और पंचायती राज का मंत्रालय सौंपा गया था. इसके साथ ही उन्हें महाराष्ट्र में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री का सबसे बड़ा चेहरा माना जा रहा था. वे 40 साल से बीजेपी से जुड़े थे और 34 साल से चुनकर आ रहे थे.
अनिल माधव दवे (6 जुलाई 1956 - 18 मई 2017)
अनिल माधव दवे (Anil Madhav Dave) का 18 मई 2017 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ. केंद्रीय मंत्री अनिल माधव दवे को मुख्य तौर पर पर्यावरण के लिए किए गए उनके कामों को लेकर जाना जाता है. दवे एक पर्यावरणविद, नदी संरक्षक, लेखक, सांसद और गैर पेशेवर पायलट थे. नर्मदा नदी के लिए किए गए उनके कामों को लेकर उन्हें जाना जाता है. दवे ने इसके लिए 'नर्मदा समग्र' संस्था बनाकर काम किया था. नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए उनका प्रयास था. उन्होंने जागरूकता के लिए 18 घंटो तक नर्मदा के तटों पर खुद हवाई जहाज उड़ाया था. साथ ही 13 सौ 12 किलोमीटर की पदयात्रा भी की थी.
मोदी सरकार में उन्हें पर्यावरण राज्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. अंतिम सांस लेने से पहले रात तक वे प्रधानमंत्री के साथ मिलकर नीतिगत चर्चा में लगे थे. उन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए कई किताबें भी लिखी हैं.