सेबी-हिंडनबर्ग मामला: आरोप नियामक के खिलाफ हों, तो जांच कौन करेगा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अदाणी मामले में सेबी के खिलाफ लगाए गए हिंडनबर्ग के आरोप, भारत की बाजार नियामक व्यवस्था के लिए चिंता का विषय हैं. जानिए जांच की जरूरत के बारे में क्या कहते हैं जानकार.अमेरिकी शॉर्ट-सेलिंग कंपनी हिंडनबर्ग के भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) पर लगाए आरोपों के गंभीर मायने हैं. सवाल उठ रहे हैं कि पहले तो एक कंपनी पर शेयर बाजार में धोखाधड़ी के आरोप लग रहे थे, लेकिन जब बाजार के नियामक पर ही आरोप लगने लगें तो फिर क्या होगा?

हिंडनबर्ग का आरोप है कि सेबी की अध्यक्ष माधवी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की ऐसी कंपनियों में हिस्सेदारी थी, जिनका अदाणी समूह से संबंध था और जिनके जरिए बाजार में धोखाधड़ी की गई. बुच दंपति ने इन आरोपों से इंकार किया है, लेकिन मांग उठ रही है कि इल्जामों की गंभीरता को देखते हुए इनकी जांच की जानी चाहिए.

सेबी की अहमियत

सेबी, भारतीय शेयर बाजारों और अन्य प्रतिभूति बाजारों का नियामक है. उसका काम है इन बाजारों की निगरानी करना और इनपर नियंत्रण रखना. इस वजह से भारत की पूरी वित्तीय प्रणाली में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है.

शेयर बाजार में सिर्फ वही लोग निवेश नहीं करते हैं, जिनकी उसमें रूचि है. अपनी पूरी जिंदगी की भविष्य निधि या प्रोविडेंट फंड (पीएफ) में मेहनत की कमाई का एक हिस्सा डालने वाले नौकरीपेशा लोगों के पैसे भी शेयर बाजार में लगे हुए हैं.

पहले भी उठा था सेबी पर सवाल

ऐसे ही भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) जैसी सरकारी कंपनियों के जरिए बीमा की छोटी-छोटी योजनाओं में निवेश करने वाले लोगों के पैसे भी शेयर बाजार में लगे हुए हैं. ऐसे में अगर शेयर बाजार में धोखेबाजी होती है, तो सिर्फ कंपनियों को ही नहीं बल्कि करोड़ों छोटे निवेशकों को भी नुकसान होगा.

इसलिए सेबी का अपनी भूमिका और साख में कड़ाई व अतिरिक्त सतर्कता बरतना और सेबी अध्यक्ष का किसी भी तरह की धोखेबाजी के संदेह से परे होना बेहद जरूरी है. कई जानकार सवाल उठा रहे हैं कि क्या हिंडनबर्ग मामले में सेबी अध्यक्ष संदेह से परे हैं.

क्या हैं आरोप

हिंडनबर्ग ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा कि ब्रिटेन के फाइनेंशियल टाइम्स अखबार और खोजी पत्रकारिता करने वाली संस्था ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) की पुरानी रिपोर्टों ने यह पहले ही सामने आ चुका है कि बरमूडा और मॉरिशस में ऐसी ऑफशोर कंपनियां हैं, जिनका संबंध अदाणी समूह से है.

इसी रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने दावा किया कि अब यह भी सामने आया है कि बुच दंपति ने इन्हीं कंपनियों में 2015 में निवेश किया. हिंडनबर्ग के मुताबिक, सेबी ने अभी तक अदाणी समूह के खिलाफ जांच अच्छी तरह से इसलिए नहीं की थी कि सेबी अध्यक्ष खुद इन कंपनियों से जुड़ी हुई थीं.

बुच दंपति ने इन कंपनियों में निवेश से इंकार नहीं किया, लेकिन यह स्पष्टीकरण दिया है कि माधवी सेबी से 2017 में जुड़ी थीं. वहीं, संबंधित निवेश 2015 में किया गया था, जब वह और उनके पति आम नागरिक थे और सिंगापुर में रह रहे थे.

क्या हैं बड़े सवाल

माधवी बुच सेबी की ऐसी पहली अध्यक्ष हैं, जो निजी क्षेत्र से आई हैं. ऐसे में सेबी से जुड़ने से पहले वह कहीं भी निवेश करने के लिए स्वतंत्र थीं. सवाल यह है कि क्या सेबी से जुड़ने के बाद उन्होंने इस बारे में पूरी जानकारी दी कि उनका निवेश इन कंपनियों में भी था.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सेबी अदाणी समूह की जांच भी कर चुका है. ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या बुच ने खुद को इस जांच से दूर रखा था या उनके खिलाफ 'कन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट' के आरोपों की जांच की जानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट से अदाणी समूह को राहत

कई जानकारों का मानना है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जिनकी उच्च-स्तरीय जांच जरूरी है. वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता लंबे समय से अदाणी समूह के खिलाफ कई आरोपों के बारे में लिखते रहे हैं. अदाणी समूह ने उनके खिलाफ मानहानि के मुकदमे भी दायर किए हुए हैं, जो अलग-अलग अदालतों में चल रहे हैं. हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट में भी ठाकुरता के खिलाफ चल रहे इन मुकदमों का जिक्र किया गया था.

क्यों है जांच जरूरी

ठाकुरता ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "एक बात साफ है कि हिंडनबर्ग के ताजा आरोपों की एक स्वतंत्र और उच्च-स्तरीय जांच की जरूरत है. भारत और विदेशों में भी करोड़ों निवेशकों की नजरों में बतौर नियामक सेबी की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचने से बचाने की जरूरत है. यह पता चलना चाहिए कि कोई कन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट था या नहीं और क्या माधवी पुरी बुच ने अदाणी समूह के खिलाफ जांच में देर की या पर्याप्त जांच ही नहीं की."

सवाल शेयर बाजार की सुरक्षा का भी है. अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया कि खुद हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में जांच की मांग की है और इस मांग के जायज होने के कई संकेत हैं.

कुमार कहते हैं, "इस बात के संकेत हैं कि अदाणी समूह के शेयरों के दामों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है. यह जरूरी था कि सेबी इसकी जांच करे क्योंकि अगर यह सही है, तो इसकी वजह से पूरा शेयर बाजार अस्थिर हो सकता है. लेकिन अगर सेबी ने पूरी जांच नहीं की, तो यह सवाल तो उठेगा कि आखिर क्यों नहीं की. हिंडनबर्ग की ताजा रिपोर्ट इसी सवाल के एक जवाब की तरफ इशारा कर रही है और सेबी को संदेह से परे रखने के लिए इन आरोपों की जांच जरूरी है."

विपक्ष ने की जेपीसी गठित करने की मांग

केंद्र सरकार ने इन आरोपों की जांच कराने से इनकार कर दिया है. विपक्ष मांग कर रहा है कि इस मामले की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) गठित की जाए, जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष के सांसद हों और जिसे सभी उच्च अधिकारियों, एजेंसियों और निजी कंपनियों से पूछताछ करने की शक्ति हो.

इस विषय पर अरुण कुमार स्वतंत्र जांच को जरूरी बताते हैं. उन्होंने बताया, "अदाणी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने जो समिति बनाई थी, उसमें सभी बड़ी निजी कंपनियों के लोग थे, जिनसे अदाणी समूह या सरकार के खिलाफ कुछ बोलने की उम्मीद नहीं की जा सकती. इसीलिए इस समिति ने एक कमजोर रिपोर्ट बनाई थी."

अदाणी परिवार पर अपनी कंपनियों के शेयर खरीदने के आरोप

कई लोग यह अंदेशा भी जता रहे हैं कि जेपीसी में सत्ताधारी पार्टी के सांसदों की संख्या ज्यादा होगी और ऐसे में विपक्ष सच को बाहर लाने में कैसे सफल हो पाएगा. इन आशंकाओं पर अरुण कुमार का कहना है कि जेपीसी का फायदा यह होगा कि सारे सवाल और जानकारी जनता भी जान जाएगी.

ठाकुरता का इस विषय में मानना है कि यह जांच जेपीसी के भी सुपुर्द की जा सकती है या सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई है किसी उच्च स्तरीय एसआईटी को भी सौंपी जा सकती है. जरूरी है कि जांच करने वाले लोग ऐसे हों, जिनकी लोगों की नजरों में विश्वसनीयता हो.