Road Accident: सड़क हादसों में हर 45 मिनट में हो जाती है 1 बच्चे की मौत- रिपोर्ट
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: ANI)

मुंबई: देश में हर साल 18 साल से कम उम्र के 11,168 बच्चों की सड़क हादसों (Road accident) में मौत हो जाती है, यानी हर 45 मिनट में एक या रोजाना 31 बच्चों की मौत हो जाती है, जो कुल मौतों का 7.40 फीसदी है. सिनर्जी (Synergy) की ओर से किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में यह दावा किया गया है. गुरुवार को यहां 'बच्चों के लिए सुरक्षित सड़कें' विषय पर आयोजित एक कार्यशाला में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ, जिसमें सिनर्जी एंड ग्लोबल रोड सेफ्टी पार्टनरशिप (GRSP), शीर्ष अधिकारियों और प्रमुख विशेषज्ञों ने भाग लिया. UP Road Accident: सड़क हादसे में कॉन्स्टेबल समेत दो की मौत, दो अन्य गम्भीर रूप से घायल

सिनर्जी के सह-संस्थापक सौरभ वर्मा द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अतिरिक्त निष्कर्षों से पता चला है कि केवल 22 प्रतिशत बच्चे सीट बेल्ट बांधते हैं, जबकि 53 प्रतिशत बच्चों का कहना है कि उनके माता-पिता को परवाह नहीं है कि वे यातायात नियमों का पालन करते हैं या फिर उल्लंघन करते हैं.

महाराष्ट्र के परिवहन आयुक्त अविनाश ढकने ने कहा कि देश में सड़क अनुशासन गायब है और यह माता-पिता हैं, जो अपने बच्चों को सड़क सुरक्षा पहलुओं पर शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

अविनाश ने आग्रह करते हुए कहा, "स्कूल छात्रों को सड़क सुरक्षा की मूल बातें सिखाते हैं, लेकिन लोग अभी भी नियमों का उल्लंघन करते हैं. हमें सड़कों पर होने वाली मौतों को कम करने और वयस्कों और बच्चों के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने की जरूरत है."

केंद्र में सड़क सुरक्षा पर एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति के सदस्य दत्तात्रेय सास्ते ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा सभी हितधारकों की सामूहिक जिम्मेदारी है. सास्ते ने कहा, "आने वाले दिनों में सड़क सुरक्षा, मोटर वाहन और सड़क नेटवर्क के क्षेत्र में सुरक्षा के मुद्दों से निपटने के लिए विभिन्न उपकरण विकसित किए जाएंगे, खासकर बच्चों से संबंधित."

वर्मा ने बाल सड़क सुरक्षा पहलुओं से निपटने के लिए शिक्षा, प्रवर्तन, इंजीनियरिंग और पर्यावरण एवं आपातकालीन देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया.

मुंबई ट्रैफिक पुलिस के सलाहकार, शंकर विश्वनाथ ने कहा कि भारतीय शहरों और गांवों में स्कूलों, कॉलेजों या खेल के मैदानों में लंबी दूरी तक चलने या यात्रा करने वाले बच्चों की बढ़ती संख्या के साथ, अब समय आ गया है कि उनकी सुरक्षा के लिए 'चाइल्ड सेफ्टी' पर ध्यान देना शुरू किया जाए और देश का भविष्य सुनिश्चित किया जाए.