Ram Mandir Bhumi Pujan: जानें अयोध्‍या नगरी के साधुओं के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्‍य
साधु अखाड़े, (Photo Credit: Wikimedia Commons)

भागवद् गीता (Bhagavad Gita)  के सातवें अध्‍याय में भगवान कहते हैं, "हे भरतवंशियो में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्मवाले अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी – ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझे भजते हैं.उनमें भी नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित हुआ, अनन्य प्रेम-भक्तिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है, क्योंकि मुझे तत्त्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यंत प्रिय है. " अर्थात व्यक्ति चाहे किसी भी जाति या धर्म का हो, ईश्‍वर को वही भक्त सर्वाधिक प्रिय होता है, जो ज्ञानी होता है.

सरयु नदी (Sarayu River) के किनारे बसे अयोध्‍या में भागवद् गीता का यह अध्‍याय चरितार्थ होता दिखता है, जहां पूजा-पाठ करने वाले साधु केवल ब्राह्मण नहीं हैं. दरअसल यहां करीब 48 प्रतिशत साधु ही ब्राह्मण हैं. बाकी के 52 प्रतिशत साधुओं में क्षत्रिय, वैश्‍य, शूद्र, व अन्य जातियों के हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां पर साधुओं को उनकी जाति के आधार पर नहीं बल्कि उनके ज्ञान के आधार पर दीक्षा दी जाती है. यह भी पढ़े: Ram Mandir Bhumi Pujan: राम मंदिर के भूमिपूजन कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए बाबा रामदेव पहुंचे अयोध्या, कहा- शिलान्यास में शामिल होना मेरा सौभाग्य है

राम मंदिर का भूमी पूजन 5 अगस्त को होने वाला है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल चांदी की ईट रखेंगे. उस दौरान वहां संत-महात्मा मंत्रोच्चारण करेंगे. आम तौर पर लोग मानते हैं कि हिन्दू धर्म में होने वाले पूजा-पाठ का काम केवल ब्राह्मण ही करवा सकते हैं. राजा राम की नगरी में ऐसा नहीं है. यहां पर पूजा-पाठ कराने का अधिकार उनको है, जिन्हें सनातन धर्म का ज्ञान हो, जिन्हें पूजा-पाठ की विधि का ज्ञान हो. जो मंत्रोच्चारण में ज़रा भी नहीं अटके.

दरअसल यह बात हम फैजाबाद स्थित डा. राम मनोहर लोहिया विश्‍वविद्यालय में वर्ष 2014 में हुए एक शोध के आधार पर कह रहे हैं. यहां के समाजशास्त्र विभाग में प्रो. सुधीर कुमार राय के दिश-निर्देश में रिसर्च स्कॉलर डॉ. अरुण बहादुर सिंह ने अयोध्‍या के साधुओं पर शोध किया.शोध का विषय था, "अयोध्‍या के साधु- एक समाजशास्त्रीय अध्‍ययन." इस शोध में पहले अलग-अलग वर्ग के साधुओं का चयन किया गया और फिर उनके साक्षात्कार किए गए। समाजशास्त्र के विभिन्न आयामों के आधार पर किए गए डाटा कलेक्शन के बाद शोध पत्र तैयार किया गया.

साधु की वर्ण संरचना

परम्परागत हिन्दू सामाजिक संगठन केवल द्विज वर्ण के लोगों को साधु-जीवन ग्रहण करने की अनुमति देता है। द्विज में भी ब्राह्मणों को वरीयता दी गई है. वृहदारण्यकोनिषद एवं मुण्डकोपनिषद ने तो केवल ब्राह्मणों को संन्यास योग्य माना है.  किन्तु वर्तमान में परिस्थितियाँ बदली हैं.वर्ण आधारित नियंत्रण कमजोर होने लगा हैं. कई सुधारवादी संतों एवं विचारकों रामनन्द, कबीर, दद्दू, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती एवं गाँधी जी ने शूद्रों के ऊपर थोपी गई निर्योग्ताओं के विरूद्ध आवाज उठाई.  रामानन्द के पूर्व शूद्रों के लिए संन्यास लगभग बन्द था.

सम्भवतः रामानन्द पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शूद्रों को शिष्य के रूप में दीक्षित किया। सुधारवादी सम्प्रदायों ने रामानन्द का अनुसरण करते हुए अपने सम्प्रदाय पंथ में शूद्रों को दीक्षित करना प्रारम्भ किया। वर्तमान अध्ययन में साधु के वर्ण-संरचना की जानकारी प्राप्त की गई.

शोध में पाया गया कि 60 प्रतिशत साधु द्विज वर्ण के हैं। तमाम सामाजिक सुधारों के बाद भी संन्यास में द्विज वर्ण के सदस्यों की अधिकता है.कुल साधुओं का लगभग आधा 48 प्रतिशत साधु ब्राह्मण वर्ण के हैं। क्षत्रिय एवं वैश्य साधु क्रमशः 8 प्रतिशत तथा 4 प्रतिशत हैं. वहीं 28 प्रतिशत साधु ऐसे थे जो शूद्र एवं अस्पृश्यों वर्ग से आते हैं.

अयोध्या में ब्राह्मण वर्ण के साधु की अधिकता के कई कारक है. परम्परागत रूप से ब्राह्मण ही संन्यास ग्रहण करते थे. बदली परिस्थितियों में वे अपने परिजनों को दीक्षित कर शिष्य बना लेते हैं. भारतीय समाज में ब्राह्मण पुरोहितों का कार्य करते हैं। इसके लिए कर्मकाण्डों की शिक्षा जरूरी है. अयोध्या में कई संस्कृत विद्यालय है जहाँ धर्मदर्शन एवं कर्मकाण्डों की शिक्षा दी जाती है.ऐसे में बहुत से ब्राह्मण विद्यार्थी संस्कृत शिक्षा के लिए अयोध्या आते हैं. अयोध्या में साधु-जनो के सम्पर्क से प्रभावित हो कई विद्यार्थी संन्यास ग्रहण कर लेते हैं.

साधु की पारिवारिक पृष्ठिभूमि

अध्ययन में यह जानने का प्रयास किया है कि साधु किस तरह के पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं. उसमें पाया गया कि 56 प्रतिशत साधु संयुक्त पारिवारिक व्यवस्था से जुड़े हुए हैं. 32 प्रतिशत साधु नाभिकीय परिवार से आये हैं. 12 प्रतिशत साधु के परिवार में कोई व्यक्ति शेष नहीं था। ऐसे सदस्य जिनके परिवार में सभी सदस्यों की मृत्यु हो गयी हो और कोई शेष नहीं है वे जीवन में काफी एकाकी हो जाते हैं, एकाकीपन से मुक्ति एवं स्वयं को सान्त्वना देने के लिए ऐसे लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हैं.

साधु की वैवाहिक स्थिति

व्यक्ति अपने परिवार तथा जीवन साथी का त्याग कर संन्यास ग्रहण करता है. संन्यास सांसारिक जीवन के त्याग को महत्त्व देता है. भारतीय धार्मिक चिन्तन में स्त्रियों को मोक्ष मार्ग में बाधक स्वीकार किया गया है। शोध के अनुसार अयोध्‍या 72 प्रतिशत साधु अविवाहित थे. इस स्थिति में यह कहा जा सकता है कि अविवाहित व्यक्तियों में उत्तरदायित्व का अभाव एवं जीवन-साथी के अभाव से उत्पन्न तनाव व्यक्ति को संन्यास की तरफ ढकेलता है। जीवन-साथी की मृत्यु भी ऐसी स्थिति उत्पन्न करती है.वहीं 16 प्रतिशत साधु जीवन-साथी के मृत्यु के बाद संन्यास ग्रहण किया है.

साधुओं की शैक्षिक स्थिति

यहां के 24 प्रतिशत साधु स्नातक/स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त किए हैं. इसका कारण यह है कि अयोध्या में कई संस्कृत महाविद्यालय है जहाँ साधु/विद्यार्थी आसानी से संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करते हैं. कई साधुओं ने आचार्य की उपाधि भी प्राप्त की है। शोध में पाया गया कि 72 प्रतिशत साधु इण्टमीडिएट या उससे कम शिक्षित हैं मात्र 2 प्रतिशत साधु ही इण्टरमीडिएट या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण की हैं। 20 प्रतिशत साधु हाईस्कूल तक शिक्षा ग्रहण किए हैं। 36 प्रतिशत साधु केवल प्राथमिक शिक्षा प्राप्त किए हैं। वहीं 12 प्रतिशत साधु अशिक्षित हैं.

साधु जीवन के पहले क्या करते थे?

52 प्रतिशत साधु विद्यार्थी जीवन से साधु जीवन में आये हैं। इसका कारण रामानन्दी सम्प्रदाय में कम उम्र के बच्चों को संन्यास में दीक्षित करने की प्रथा है.  कोई भी बच्चा जो किन्हीं कारणों से घर छोड़ कर साधु के सम्पर्क में आता है वे उन्हें आश्रय देकर दीक्षित कर लेते हैं. दूसरा कारण संस्कृत शिक्षा के लिए अयोध्या आने वाले विद्यार्थियों को साधुजनों द्वारा साधु बनने के लिए मना लेना है। शोध में पाया गया कि 16 प्रतिशत साधु पहले बेरोजगार थे, जबकि 4 प्रतिशत साधु पहले नौकरी करते थे.

साधुओं से जुड़े रोचक तथ्‍य जो शोध में सामने आये:

> ऐसे साधु जो मठ में किसी सेवा कार्य में लगे होते हैं, उनकी जरूरतों की पूर्ति मठ से होती है। ऐसे साधु जो दान, भिक्षा आदि पर निर्भर हैं.

> साधुओं के मुख्य खर्चों में भोजन, वस्त्र, पूजा, भण्डारा, यात्रा, वाहन एवं भूमि की खरीद, मन्दिर एवं मठ का निर्माण है। साधु धर्माथ चिकित्सालय के संचालन, गोशाला, विद्यालय निर्माण, विद्यार्थियों को भोजन आदि पर भी खर्च करते हैं।

> 80 प्रतिशत साधु 1 से 30 वर्ष की अवस्था में साधु बने. वहीं 20 प्रतिशत साधु ऐसे हैं, जिन्‍होंने 30 वर्ष से अधिक की उम्र में संन्यास ग्रहण किया.

> 48 प्रतिशत साधुओं की पसंदीदा पार्टी भारतीय जनता पार्टी है. वहीं जब यह शोध्‍या किया गया तब 36 प्रतिशत साधु किसी विशेष राजनीतिक दल के पक्ष में नहीं थे.

> शोध में जब अंतरजातीय विवाह पर सवाल किया गया तो 28 प्रतिशत साधुओं ने इसका समर्थन किया जबकि 68 प्रतिशत साधुओं ने इसका विरोध किया.

> विधवा विवाह के सवाल पर 80 प्रतिशत साधुओं ने विधवा विवाह का समर्थन किया। जबकि 16 प्रतिशत साधु ही इसके विरोध में दिखे.

> अयोध्‍या के 40 प्रतिशत साधु जाति व्यवस्था का विरोध करते हैं। वहीं 32 प्रतिशत कुछ संशेधनों के साथ जाति व्‍यवस्था को मान सकते हैं, लेकिन 28 प्रतिशत लोग जाति व्‍यवस्था को सही मानते हैं।

> शोध के अनुसार अयोध्‍या के 100 प्रतिशत साधु शुद्ध शाकाहारी होते हैं. जिनमें 80 प्रतिशत लहसुन-प्याज तक नहीं खाते हैं। वहीं बाकी के साधु सामान्य शाकाहारी हैं.

> शोध के अनुसार 28 प्रतिशत साधु आम जनता के संपर्क में नहीं आते हैं। वे अपना पूरे जीवन में केवल साधुओं से संबंध रखते हैं.