Rajendranath Lahiri Jayanti 2021: जाने कैसे भयभीत ब्रिटिश हुकूमत ने इस युवा क्रांतिकारी को गैरकानूनी ढंग से फांसी पर चढ़ाया?
भारत को ब्रिटिश हुकूमत की बेड़ियों से आजादी दिलाने में युवाओं की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. राष्ट्र-प्रेम की शय में क्रांतिकारियों ने अपने जीवन की शहादत देने में कोई कोताही नहीं बरती. अंग्रेज सरकार भी इनसे इस कदर भयाक्रांत रहती थी कि उन्हें मृत्यु-दण्ड की सजा सुनाते समय सारे नियम कानून ताक पर रख देते थे. ऐसे ही क्रांतिकारी थे वाराणसी के राजेंद्र नाथ लाहिड़ी.
स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) के खूनी इतिहास के पन्नों में बनारस (Banaras) के बंगाली बाबू राजेंद्र नाथ लाहिड़ी (Bengali Babu Rajendra Nath Lahiri) की 27 साल की उम्र में हुई शहादत (Martyrdom) को कभी भुलाया नहीं जा सकता. 9 अगस्त 1925 को पं. राम प्रसाद बिस्मिल (Pt Ram Prasad Bismil) के नेतृत्व में काकोरी में सरकारी खजाने की लूट में शामिल होने के कारण ब्रिटिश (British) हुकूमत ने राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को मृत्यु-दण्ड की सजा सुनाई. आइये जानें इस महान युवा क्रांतिकारी (Revolutionary) की शहादत की गौरव गाथा... Bankim Chandra Chatterjee Jayanti: वन्देमातरम् गीत के रचयिता बंकिमचंद्र चटर्जी की जयंती आज
भारत को ब्रिटिश हुकूमत की बेड़ियों से आजादी दिलाने में युवाओं की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. राष्ट्र-प्रेम की शय में क्रांतिकारियों ने अपने जीवन की शहादत देने में कोई कोताही नहीं बरती. अंग्रेज सरकार भी इनसे इस कदर भयाक्रांत रहती थी कि उन्हें मृत्यु-दण्ड की सजा सुनाते समय सारे नियम कानून ताक पर रख देते थे. ऐसे ही क्रांतिकारी थे वाराणसी के राजेंद्र नाथ लाहिड़ी.
गर्भ में सीखा देश-प्रेम का पाठ!
राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का जन्म पबना जिले (अब बांगला देश में) के मड़ैया गांव में 29 जून 1901 में हुआ था. कहते हैं कि राजेंद्र नाथ ने जब माँ बसंत कुमारी की कोख से जन्म लिया था, उनके पिता क्रांतिकारी क्षिति मोहन लाहिड़ी अपने बड़े भाई के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न होने के कारण जेल में बंद थे. इस तरह देश-प्रेम एवं निडरता का पाठ उन्होंने मां की कोख में ही पढ़ लिया था. राजेंद्र बाबू जब 9 साल के थे, उन्हें शिक्षा-दीक्षा के लिए उनके मामा के घर वाराणसी भेज दिया गया था. यहां बीएचयू में ही राजेंद्र बाबू ने स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई की.
शिक्षा के साथ क्रांतिकारी गतिविधियां
बनारस (वाराणसी) में दशाश्वमेध रोड पर राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का निवास स्थान था. कहते हैं भगवान शिव की प्यारी काशी नगरी स्थित काशी विश्वविद्यालय उन दिनों क्रांतिकारियों का अघोषित केंद्र बन चुका था. यहां पर भी क्रांतिकारियों की गुप्त मीटिंग होती थी. शिक्षा के दरम्यान यहीं पर राजेंद्र नाथ उन दिनों के लोकप्रिय क्रान्तिकारी शचींद्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आये. देशप्रेमी राजेन्द्र नाथ के भीतर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ धधकती ज्वाला को शचीन दा ने भी महसूस किया. शचिन दा ने उन्हें बनारस से प्रकाशित पत्रिका ‘बंगवाणी’ का ना केवल सम्पादन का दायित्व सौंपा बल्कि अनुशीलन समिति की वाराणसी शाखा के सशस्त्र विभाग का प्रभारी भी बना दिया. उनकी जीवटता. जुनून और कार्य कुशलता को समझते हुए उन्हें हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन की गुप्त बैठकों में बुलाया जाने लगा.
काकोरी में 8 डाउन ट्रेन में लूट!
उन दिनों क्रांतिकारी आंदोलनों के लिए अस्त्र-शस्त्र खरीदने एवं अन्य गतिविधियों के लिए धन की आवश्यकता थी. शाहजहां पुर में एक अति गोपनीय मिटिंग हुई और फैसला लिया गया कि काकोरी स्टेशन से गुजरने वाली उस ट्रेन को लूटा जाये, जिसमें सरकारी खजाना जा रहा था. कहते हैं कि योजनाबद्ध तरीके से 9 अगस्त 1925 को 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन ज्यों ही काकोरी स्टेशन (लखनऊ के निकट) से निकली, पहले से ही घात लगाये बैठे 19 क्रांतिकारियों के एक जत्थे जिसमें रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्लाह, ठाकुर रोशनसिंह के साथ राजेंद्र नाथ इत्यादि शामिल थे, ने ट्रेन की चेन खींचकर सरकारी खजाने को लूट लिया. बताया जाता है कि उस समय राजेंद्र नाथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास से एम.ए. (प्रथम वर्ष) की पढ़ाई कर रहे थे.
तीन क्रांतिकारियों को मिली फांसी की सजा
काकोरी काँड से बौखलाई अंग्रेजी हुकूमत कुत्ते की तरह इस लूट में शामिल क्रांतिकारियों के पीछे पड़ गई. अंततः काफी क्रांतिकारी पकड़े गये. अंग्रेजी हुकूमत ने इन क्रांतिकारियों की पार्टी 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन' के 40 क्रान्तिकारियों पर सरकार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और यात्रियों की हत्या का मुकदमा चलाया. लखनऊ की विशेष अदालत ने 6 अप्रैल 1927 को जो फैसला सुनाया उसके अनुसार राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी (26 वर्ष), राम प्रसाद बिस्मिल (30 वर्ष) एवं अशफाक उल्लाह खान (27 वर्ष), ठाकुर रोशन सिंह (35 वर्ष) को फांसी की सजा सुनाई गई.
ऐसे उड़ाई थी अंग्रेज सरकार ने कानून की धज्जियां!
काकोरी कांड की यह विशेष अदालत जिस स्थान पर लगाई गई थी, आज वहां मुख्य डाकघर स्थापित है. कहते हैं कि इस विशेष अदालत ने 19 दिसंबर 1927 को चारों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने का हुक्म दिया था. लेकिन राजेंद्र नाथ लाहिड़ी की देश भर में लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेज सरकार मान रही थी कि अगर तय तारीख एवं समय पर राजेंद्र नाथ लाहिड़ी फांसी पर चढ़ाया गया तो पूरे देश में कानून व्यवस्था पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो जायेगा. लिहाजा ब्रिटिश पुलिस ने राजेंद्र नाथ को दो दिन पहले यानी 17 दिसंबर को ही चुपचाप गोंडा में फांसी पर लटका दिया.