नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च न्यायालय ने रेल यात्रियों के हक़ में बड़ा फैसला सुनाया है. न्यायालय ने कहा है कि ट्रेन से उतरते-चढ़ते समय किसी यात्री की मौत या घायल होने की स्थिति में यात्री को मुआवज़ा देना रेलवे की जिम्मेदारी है.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि रेलवे, यात्री की लापरवाही बताकर, ऐसे दावों को मानने से इंकार नहीं कर सकता. गौरतलब है की कई बार रेलवे की लापरवाही की वजह से यात्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. जिसके बाद रेलवे अधिकारी किसी भी तरह से यात्री की गलती निकालकर अपनी जिम्मेदारी मानने से कन्नी काटने लगते है. परिणामस्वरूप यात्री को मुआवज़ा नहीं मिल पाता.
केन्द्र सरकार की याचिका खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि टिकट नहीं होने की स्थिति में मुआवजे का दावा खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन दावेदार को जरूरी दस्तावेज़ उपलब्ध कराकर अपने दावे को सिद्ध करना होगा.
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नरिमन ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़ित व्यक्ति को लापरवाही के नाम पर मुआवज़े से वंचित नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने यह व्यवस्था पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर केन्द्र सरकार की अपील पर दी. 2002 में 20 अगस्त को एक रेल यात्री की ट्रेन से गिर जाने के कारण मौके पर ही मौत हो गई थी और पटना उच्च न्यायालय ने मृतक की पत्नी को चार लाख रुपये मुआवज़ा देने का आदेश दिया था.
गौरतलब है कि रेलवे ऐक्ट 1989 के सेक्शन 124ए के तहत, अगर कोई यात्री रेल में आत्महत्या करता है या आत्महत्या की कोशिश करता है या फिर खुद को जान-बूझकर चोट पहुंचाने की कोशिश करता है तो इसे यात्री का अपराध माना जाएगा.