Live-in Relationship: कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को नहीं दी जमानत, कहा- अतीत में सहमति से सेक्स का मतलब भविष्य के लिए भी अनुमति नहीं है

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने रेप केस (Rape Case) के आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि पूर्व यौन कृत्यों की सहमति भविष्य के लिए भी सहमति (यौन संबंध के लिए) नहीं मानी जा सकती है, चाहे वह किसी भी कारण से हो.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo: Pixabay)

चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने रेप केस (Rape Case) के आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि पूर्व यौन कृत्यों की सहमति भविष्य के लिए भी सहमति (यौन संबंध के लिए) नहीं मानी जा सकती है, चाहे वह किसी भी कारण से हो. गुजरात पोक्सो कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म मामले में 29 दिनों में सजा सुनाई

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, याचिकाकर्ता ही इस मामले में बलात्कार का आरोपी है. जबकि शिकायतकर्ता एक 35 वर्षीय तलाकशुदा है. याचिकाकर्ता यानि आरोपी पर गुरुग्राम में बलात्कार, अतिचार और आपराधिक धमकी के तहत केस दर्ज कराई गई है. आरोपी ने कोर्ट में अपने वकील के माध्यम से तर्क दिया है कि एफआईआर दर्ज करने में 48 दिनों की देरी हुई. याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि वह और शिकायतकर्ता दोनों बालिग हैं, उनके बीच संबंध सहमति से थे और वे लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) में थे, जो रिकॉर्ड में रखी गई तस्वीरों से भी साबित होता है.

जमानत याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जबरन संभोग (Sexual Intercourse) के गंभीर आरोप लगाए गए हैं, याचिकाकर्ता को केवल दो महीने और नौ दिन की हिरासत में लिया गया है, चालान पेश किया गया है, लेकिन अब तक अभियोजक का बयान तक दर्ज नहीं हुआ है. इसलिए यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा कि दोनों के बीच सहमति से संबंध थे.

न्यायमूर्ति विवेक पुरी (Vivek Puri) की पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने में 48 दिन की देरी होने के आधार पर अभियोजन पक्ष के बयान पर अविश्वास करना उचित नहीं होगा. प्राथमिकी में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि शिकायतकर्ता डरी हुई थी, मानसिक तनाव में थी और याचिकाकर्ता को भी अपने कृत्य के लिए खेद था. ऐसे में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि यह एक झूठा मामला है.

याचिकाकर्ता के इस तर्क पर कि यह सहमति से संबंध का मामला है और वे लिव-इन रिलेशनशिप में थे, न्यायमूर्ति पुरी ने कहा, "यह सच हो सकता है कि कानून लिव-इन रिलेशनशिप को स्वीकार करता है, लेकिन साथ ही, यह भी ध्यान में रखना होगा कि कानून एक महिला के यौन संबंध रखने के अधिकार को भी स्वीकार करता है. रेप के अपराध में सहमति के बिना या किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध यौन कार्य करना शामिल है. इस धारणा पर भी कि यदि दो व्यक्तियों के बीच पहले किसी भी कारण से सहमति से यौन संबंध थे, तो पूर्व यौन कृत्यों की सहमति भविष्य के अवसरों तक विस्तारित नहीं होगी. यह निष्कर्ष निकालने के लिए एक परिस्थिति के रूप में नहीं माना जा सकता है कि अभियुक्त को अभियोक्ता का लगातार शोषण करने का अधिकार मिलता है.”

पीठ ने कहा कि तस्वीरें यह संकेत दे सकती हैं कि अभियोक्ता याचिकाकर्ता को जानती थी, लेकिन इससे प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि अभियोक्ता ने सहमति दी थी. न्यायमूर्ति पुरी ने जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह आवश्यक है कि अभियोक्ता को अदालत में पेश होने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष माहौल दिया जाए.

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