भारत में प्रेस स्वतंत्रता पर हमले बढ़े, 2018 में 3 पत्रकार मारे गए : रपट
इस वर्ष जारी विश्व प्रेस सूचकांक के अनुसार 180 देशों में भारत 138वें स्थान पर था. 2017 में भारत 136वें और 2016 में 133वें स्थान पर था.
नई दिल्ली। भारत में 2018 के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता में कमी आई है और इस दौरान प्रथम चार महीनों में तीन पत्रकारों की हत्या हुई है. मीडिया वॉचडाग 'द हूट' ने अपनी रपट में यह जानकारी दी है. द हूट ने कहा है कि 'पत्रकारों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है.'
द हूट की रपट के अनुसार, "प्रथमदृष्ट्या जांच के आधर पर, पत्रकारों को उनकी रिपोर्टिग के संबंध में मारा जा रहा है."
इस वर्ष जारी विश्व प्रेस सूचकांक के अनुसार 180 देशों में भारत 138वें स्थान पर था. 2017 में भारत 136वें और 2016 में 133वें स्थान पर था.
रपट के अनुसार, इस दौरान पूरे देश में पत्रकारों और मीडिया कर्मियों पर हुए हमलों की संख्या 13 है, जिसमें से तीन पश्चिम बंगाल में हुआ. वर्ष 2017 में, 46 लोगों पर हमले किए गए थे.
द हूट ने कहा है, "इसके अलावा, एक पत्रकार पर मानहानि का मामला भी दर्ज किया गया. वहीं एक पत्रकार पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया गया। यह स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि राज्य, केंद्र और न्यायपालिका नियामक नीतियों व न्यायिक आदेशों से बोलने की आजादी को कुचल रहे हैं."
द हूट ने कहा है, "2018 के प्रथम चार महीनों के दौरान भारत में मीडिया की स्वतंत्रता में कमी आई. इस दौरान 50 बार सेंसरशिप और 20 बार इंटरनेट स्थगित करने के प्रयास किए गए। यहां तक कि कई बार ऑनलाइन कंटेंट को भी हटाया गया."
तीनों पत्रकार जनवरी से अप्रैल महीने के दौरान वाहनों से कुचल कर मारे गए.
दैनिक भास्कर के दो पत्रकार नवीन निश्चल और विजय सिंह के बाइक को 26 मार्च को बिहार के भोजपूर में एक एसयूवी ने टक्कर मारी, जिससे दोनों की मौत हो गई.
पुलिस ने कहा कि वाहन गांव का एक नेता चला रहा था और एक न्यूज रिपोर्ट को लेकर दोनों के बीच तीखी बहस हो गई, जिसके बाद इस घटना को अंजाम दिया गया.
द हूट की रपट के अनुसार, "घटना के एक दिन बाद, एक टीवी संवाददाता संदीप शर्मा को मध्यप्रदेश के भिंड में एक ट्रक ने कुचल दिया. संदीप ने भिंड में रेत माफिया के खिलाफ एक स्टिंग ऑपरेशन किया था और उसने पुलिस को बताया था कि उसे जान से मारने के धमकी भरे कॉल मिल रहे हैं ."
हूट की रपट से खुलासा हुआ है कि राजनीतिज्ञ, व्यापारी, हिंदू दक्षिणपंथी समूह, पुलिस, अर्धसैनिक बल, सरकारी एजेंसियां जैसे फिल्म प्रमाणन बोर्ड, सूचना व प्रसारण मंत्रालय, राज्य सरकार, वकील और यहां तक कि मीडिया समूह भी अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगाने के प्रयास कर रहे हैं.
द हूट की रपट में कहा गया है, "अभिव्यक्ति की आजादी पर कई तरह के हमले के बावजूद मौजूदा संघर्ष ने इन अवरोधों के खिलाफ लड़कर अच्छे परिणाम दिए हैं."