कोलकाता: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Elections 2021) में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की शानदार जीत के बाद बीजेपी (BJP) के खेमे में उदासी है. ममता बनर्जी पांच मई को तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगी. उन्हें सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुना गया है. भले ही बीजेपी को पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है, लेकिन बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराकर 'बड़ा उलटफेर करने वाले’ के रूप में उभरे हैं. नंदीग्राम के निर्वाचन अधिकारी को जीवन का खतरा था, इसलिए पुनर्मतगणना नहीं करवायी: ममता
पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो नंदीग्राम सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का चुनाव लड़ना एक सोची समझी रणनीति थी. माना जाता है कि शुभेंदु अधिकारी का नंदीग्राम के अगल बगल की 20 से ज्यादा सीटों पर मजबूत पकड़ थी. लेकिन नंदीग्राम में ममता के उतरने पर शुभेंदु अधिकारी का सबसे ज्यादा ध्यान नंदीग्राम सीट तक सिमित रह गया. जिसका खामियाजा अन्य सीटों पर बीजेपी को हार के साथ चुकाना पड़ा.
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) छोड़ बीजेपी में आए अधिकारी की जीत को भगवा पार्टी के लिये केवल मनोबल बढ़ाने वाली जीत के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी ने 292 सीटों पर हुए चुनाव में से 213 पर विजय प्राप्त की है. शुभेंदु अधिकारी ने मतगणना के अंतिम दौर तक चली खींचतान के बाद बनर्जी को 1,900 से अधिक मतों के अंतर से हार का स्वाद चखा दिया.
अधिकारी के लिये नंदीग्राम उस समय महज राजनीतिक अखाड़े से अस्तित्व की जंग के मैदान में बदल गया था जब बनर्जी ने अधिकारी और उनके परिवार को मजा चखाने की चुनौती दे डाली थी, जिनका दशकों से इस क्षेत्र पर दबदबा रहा है. इस जीत के साथ ही अधिकारी बंगाल में बीजेपी की पहली पंक्ति के नेताओं में शामिल हो गए हैं और कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां सौंप सकती है।
पूर्वी मेदिनीपुर जिले का नंदीग्राम इलाका 2007 में रसायन हब के लिये जमीन के बलपूर्वक अधिग्रहण के खिलाफ टीएमसी के नेतृत्व में हुए किसानों के आंदोलन का गवाह रहा है. बनर्जी ने जब भवानीपुर सीट के बजाय इस बार नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो सबकी निगाहें इस सीट पर टिक गईं.
बीजेपी ने अधिकारी का गढ़ बचाने और 'दीदी' को घेरने के लिये केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सुपरस्टार मिथुन चक्रवर्ती को प्रचार मैदान में उतारा. अधिकारी ने खुद को नयी पार्टी की विचारधारा और भविष्य की भूमिकाओं में खुद को ढालने के लिये अपनी छवि को भूमि अधिग्रहण आंदोलन के समावेशी नेता से हिंदुत्व ब्रिगेड के सिरमौर के रूप में स्थापित करने की कोशिश की.
वहीँ, एआईएमआईएम और अब्बास सिद्दीकी की आईएसएफ जैसी पार्टियां जिन्हें टीएमसी के अल्पसंख्यक जनाधार को नुकसान पहुंचाने में सक्षम माना जा रहा था, वे पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अपना असर छोड़ने में नाकाम रहीं जहां अल्पसंख्यकों ने बीजेपी के खिलाफ इस लड़ाई को जीतने के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा चुकी ममता बनर्जी के साथ जाना चुना. इस वजह से ममता बनर्जी की प्रचंड जीत सुनिश्चित हुई.