One Nation-One Election: ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ भाजपा के फायदे का सौदा, यहां समझिए सियासी गणित

भाजपा के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा को आगे बढ़ाने का कदम फायदे का सौदा साबित हो सकता है क्योंकि इससे चुनाव के पारंपरिक गुणा-भाग से इतर उसे अपने हित में एक राष्ट्रीय विमर्श खड़ा करने में सहूलियत होगी और ‘मोदी फैक्टर’ का लाभ उसे उन राज्यों में भी मिलने के आसार रहेंगे, जहां वह अब तक पारंपरिक रूप से कमजोर रही है.

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नयी दिल्ली, 1 सितंबर: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा को आगे बढ़ाने का कदम फायदे का सौदा साबित हो सकता है क्योंकि इससे चुनाव के पारंपरिक गुणा-भाग से इतर उसे अपने हित में एक राष्ट्रीय विमर्श खड़ा करने में सहूलियत होगी और ‘मोदी फैक्टर’ का लाभ उसे उन राज्यों में भी मिलने के आसार रहेंगे, जहां वह अब तक पारंपरिक रूप से कमजोर रही है.

उल्लेखनीय है कि एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का फैसला किया है. पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और उसके बाद लोकसभा चुनाव से पहले यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है और कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को पीछे छोड़ आम विमर्श के केंद्र में आ गया है. One Nation-One Election! एक देश-एक चुनाव से देश को कितना फायदा-कितना नुकसान, जानिए इसके पक्ष में क्यों हैं PM मोदी

सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का ‘विशेष सत्र’ बुलाने की घोषणा के एक दिन बाद इस घटनाक्रम ने समय-पूर्व लोकसभा चुनाव की संभावनाओं को भी हवा दे दी है. हालांकि सत्र की इस विशेष बैठक के लिए अब तक कोई आधिकारिक एजेंडा सामने नहीं आया है. इस बारे में अनिश्चितता के बावजूद कि यह मुद्दा कैसे आगे बढ़ेगा और क्या सरकार सत्र के दौरान इसे उठाएगी, अधिकांश भाजपा नेता पार्टी के लिए इसके निहितार्थ को लेकर आश्वस्त दिखे.

लोकसभा चुनाव की तुलना में राज्यों के चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन अक्सर कमतर रहने के कारण पार्टी नेताओं का मानना है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से राष्ट्रीय मुद्दे उभरेंगे और ‘मोदी फैक्टर’ बड़ी भूमिका निभाएगा.

आम तौर पर देखा गया है कि कांग्रेस की अपेक्षा क्षेत्रीय दल भाजपा के खिलाफ लड़ाई में आगे रहे हैं और वे सफल भी साबित हुए हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव साथ-साथ कराए जाते हैं तो क्षेत्रीय दलों का नुकसान हो सकता है क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दों का गहरा प्रभाव पड़ना तय है. हालांकि ओडिशा के मतदाताओं ने इस संभावना को कई दफा खारिज किया है.

वर्ष 2019 में राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनाव इस पूर्वी राज्य में एक साथ हुए थे लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए मतदाताओं का समर्थन लोकसभा चुनाव की तुलना में छह प्रतिशत कम था.

मोदी से पहले भी वाजपेयी-आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने एक साथ चुनाव कराने पर जोर दिया था. जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, आडवाणी ने इसकी वकालत की थी, लेकिन यह मुद्दा कमजोर पड़ गया क्योंकि अन्य दल इस प्रस्ताव पर चुप रहे. पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में भी इसी तर्ज पर वादा किया था.

उसने कहा था, ‘‘भाजपा अन्य दलों के साथ विचार-विमर्श के जरिए विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने का तरीका विकसित करने की कोशिश करेगी. राजनीतिक दलों और सरकार दोनों के लिए चुनाव खर्च को कम करने के अलावा, यह राज्य सरकारों के लिए कुछ स्थिरता सुनिश्चित करेगा.’’

लोकसभा में भाजपा को पहली बार बहुमत दिलाने के बाद मोदी ने 2016 में दिवाली के दौरान एक साथ चुनाव कराने की पहली बार सार्वजनिक वकालत की थी और एक ऐसी प्रक्रिया को गति दी थी जिस पर मिलेजुले विचार सामने आए थे. हालांकि यह आगे नहीं बढ़ सका था.

मोदी ने लोकसभा, राज्य और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराने की पुरजोर वकालत तब की थी जब उन्होंने उसी साल मार्च में सर्वदलीय बैठक में अनौपचारिक रूप से इस विषय को उठाया था. उन्होंने तब व्यापक बहस की जरूरत पर बल देते हुए कहा था कि विपक्ष के कई नेताओं ने व्यक्तिगत रूप से इस विचार का समर्थन किया है लेकिन राजनीतिक कारणों से सार्वजनिक रूप से ऐसा करने से वह बच रहे हैं.

पार्टी मंचों और सार्वजनिक रूप से, प्रधानमंत्री ने अक्सर यह तर्क दिया है कि अनवरत चुनावी चक्र से बड़े पैमाने पर सार्वजनिक व्यय होता है और विकास कार्य प्रभावित होते हैं. उन्होंने तर्क दिया था कि चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता किसी भी नयी विकास पहल की घोषणा पर रोक लगाती है और देश के विभिन्न हिस्सों में चुनाव कराने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की तैनाती भी जारी कार्यों के क्रियान्वयन के लिए एक बाधा है.

वर्ष 2019 में सत्ता में लौटने के बाद, मोदी ने इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, लेकिन कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित कुछ प्रमुख विपक्षी दलों ने इस विचार को लोकतंत्र विरोधी और संघवाद के खिलाफ बताते हुए इसकी आलोचना की थी. विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलांयस’ (इंडिया) के घटक दल एक साथ चुनाव कराने के विचार का विरोध कर रहे हैं. , एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी और इस प्रकार संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी.

भाजपा लोकसभा में आवश्यक संख्या जुटा सकती है, लेकिन राज्यसभा में उसके पास साधारण बहुमत भी नहीं है और उसे आवश्यक संख्या बल जुटाने के लिए समर्थन की आवश्यकता होगी.

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