यूपी सरकार की सोशल मीडिया पॉलिसी: कंटेंट के आधार पर इनाम और सजा का प्रावधान
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने अपनी न्यू डिजिटल मीडिया पॉलिसी को मंजूरी दे दी है.
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने अपनी न्यू डिजिटल मीडिया पॉलिसी को मंजूरी दे दी है. इस नीति के तहत सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर इन्फ्लुएंसर्स के प्रोत्साहन के कई प्रावधान हैं.उत्तर प्रदेश सरकार की नई सोशल मीडिया पॉलिसी कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही चर्चा में आ गई. चर्चा में आने के दो कारण हैं. एक तो उन सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स को खुले तौर पर सरकार की ओर से लाखों रुपये देने का प्रावधान किया गया है जो सरकार के पक्ष में पोस्ट डालेंगे. साथ ही अभद्र, आपत्तिजनक और राष्ट्र-विरोधी कंटेंट पोस्ट करने वालों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है. यह दंड छोटा-मोटा नहीं बल्कि उम्र कैद की सजा तक हो सकती है.
यूपी के सूचना विभाग के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है, "किसी भी स्थिति में सामग्री अभद्र, अश्लील या राष्ट्र–विरोधी नहीं होनी चाहिए.”
इसमें कहा गया है, "प्रदेश में विकास की विभिन्न विकासपरक, जन कल्याणकारी/ लाभकारी योजनाओं/ उपलब्धियों की जानकारी एवं उससे होने वाले लाभ को प्रदेश की जनता तक डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म्स एवं इसी प्रकार के अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स के माध्यम से पहुंचाए जाने हेतु उत्तर प्रदेश डिजिटल मीडिया नीति, 2024 तैयार की गई है.”
कंटेंट बनाने वालों को सरकार कैसे देगी प्रोत्साहन
राज्य मंत्रिमंडल ने 27 अगस्त को इस न्यू डिजिटल मीडिया पॉलिसी, 2024 को मंजूरी दे दी है. इसके तहत अब डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म और इन्फ्लुएंसर्स सरकार के विकास कार्यों और योजनाओं की ‘उपलब्धियों' का प्रचार करने वाले वीडियो या अन्य कंटेंट बनाकर हर महीने आठ लाख रुपये तक कमा सकते हैं.
प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, "डिजिटल माध्यम जैसे एक्स (पूर्व में ट्विटर), फेसबुक, इंस्टाग्राम एवं यूट्यूब पर भी प्रदेश सरकार की योजनाओं/ उपलब्धियों पर आधारित कंटेंट/ वीडियो/ ट्वीट/ पोस्ट/ रील्स को प्रदर्शित किए जाने के लिए इनसे संबंधित एजेंसी/ फर्म को सूचीबद्ध कर विज्ञापन निर्गत किए जाने हेतु प्रोत्साहन दिया जायेगा.”
सरकार का मानना है कि इस नीति से देश के विभिन्न भागों या विदेशों में रहने वाले राज्य के निवासियों को बड़ी संख्या में रोजगार मिलने की संभावना बढ़ेगी. किसे कितने पैसे मिलेंगे, यह तय करने के लिए सरकार ने एक्स (पूर्व में ट्विटर), फेसबुक, इंस्टाग्राम एवं यूट्यूब में से प्रत्येक को सब्सक्राइबर/ फॉलोअर्स के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है और उसी के अनुसार भुगतान की राशि तय की गई है.
किसे माना जाएगा 'इंफ्लुएंसर'
डिजिटल इंफ्लुएंसर उन लोगों को कहा जाता है जिनके सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में फॉलोअर होते हैं या जिनके यूट्यूब चैनल के काफी ज्यादा सब्सक्राइबर होते हैं. ये लोग अपनी पहुंच का इस्तेमाल तमाम तरह के उत्पादों, विचारों और राजनीतिक मान्यताओं को समर्थन देने या उनसे पैसा कमाने के लिए करते हैं. इस नीति के जरिए अब यूपी सरकार भी इनकी पहुंच का फायदा लेने और उन्हें उपकृत करने की योजना पर काम करने जा रही है.
लेकिन इस नीति को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं वो ये कि सरकार के कामकाज को प्रोत्साहित करने के एवज में सरकार भले ही पैसा दे लेकिन जिस तरह के कंटेंट को लेकर सजा के प्रावधान किए गए हैं, वो क्या उचित हैं?
हालांकि सोशल मीडिया में अनुचित कंटेंट या आपत्तिजनक कंटेंट की स्थिति में अभी भी आईटी एक्ट की धारा 66 (ई) और 66 (एफ) के तहत कार्रवाई की जाती है लेकिन अब राज्य सरकार पहली बार ऐसे मामलों पर नियंत्रण के लिए नीति ला रही है जिसके तहत दोषी पाए जाने पर तीन साल से लेकर उम्र कैद (राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में) तक की सजा का प्रावधान है.
इसके अलावा अभद्र और अश्लील सामग्री पोस्ट करने पर आपराधिक मानहानि के मुकदमे का सामना भी करना पड़ सकता है. केंद्र सरकार ने ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए तीन साल पहले इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड जारी किए थे.
विपक्ष को इसमें क्या समस्या दिख रही है
कांग्रेस पार्टी ने इस नई नीति के माध्यम से बीजेपी सरकार पर डिजिटल मीडिया पर ‘कब्जा' करने का आरोप लगाया है. यूपी कांग्रेस ने एक्स (ट्विटर) पर लिखा है, "यूपी सरकार सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स के लिए नई स्कीम लेकर आई है. इसके मुताबिक सरकार के काम का प्रचार–प्रसार करने वाले को महीने के 8 लाख रुपये तक मिल सकते हैं और इनका विरोध करने वालों को सजा भी भुगतना पड़ सकता है. यानी, डिजिटल मीडिया पर सरेआम कब्जा. सरकार अब बिना किसी डर या संकोच के सरेआम मीडिया को गोद लेने पर उतारू हो गई है. यह लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं तो और क्या है?”
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शायराना अंदाज में ट्वीट करते हुए लिखा है, "हम बांट रहे हैं दाने, गाओ हमारे गाने, जेल तुम्हारा घर है, अगर हुए बेगाने!" अखिलेश यादव इसे "तरफदारी के लिए दी जाने वाली भाजपाई घूस" और "जनता के टैक्स के पैसे से आत्मप्रचार को एक नए तरीके का भ्रष्टाचार" बता रही है.
पहले भी सोशल मीडिया पोस्ट के कारण हुई है कार्रवाई
इस नीति पर सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जब सरकारें छोटी-छोटी बातों को ‘आपत्तिजनक', ‘अपमानजनक' मानते हुए पहले ही एफआईआर दर्ज कर रही हैं, लोगों को गिरफ्तार कर ही रही हैं तो फिर यह कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ गई? पिछले कुछ सालों में हजारों ऐसे मामले आए हैं जिनमें सरकारों की आलोचना करने की वजह से लोगों के खिलाफ और यहां तक कि पत्रकारों के खिलाफ भी मामले दर्ज हुए, उन्हें गिरफ्तार किया गया. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अकेले उत्तर प्रदेश में यह संख्या हजार से ऊपर है. ये बात अलग है कि कोर्ट में ऐसे मामलों को अहमियत नहीं मिली.
हालांकि यह स्थिति केवल यूपी में ही या बीजेपी शासित राज्यों में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी है. पहले भी इस तरह के कई उदाहरण देखने में आए हैं. साल 2012 में मुंबई में एक कार्टून बनाने के कारण असीम त्रिवेदी को गिरफ्तार किया गया था और उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह की धाराएं लगाई गई थीं.
सात महीनों बाद जेल से बाहर आएंगे न्यूजक्लिक के संपादक
यूपी सरकार की नई सोशल मीडिया पॉलिसी पर वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह कहते हैं, "यह तो एक तरह से लोगों को धमकी देना है कि यदि सरकार के खिलाफ कुछ लिखा तो खैर नहीं. क्योंकि अभद्र, आपत्तिजनक, राष्ट्रविरोधी जैसी बातें कौन तय करेगा, ये अफसर ही तय करेंगे. और ये सरकार या उनके खिलाफ कुछ लिखने पर, वीडियो बनाने पर, कार्टून बनाने पर ऐसे आरोप लगा सकते हैं, एफआईआर कर सकते हैं, जेल में डाल सकते हैं. उम्र कैद जैसी बात तो सीधे तौर पर डराने के लिए ही है. बिल्कुल वही है जो अठारहवीं सदी में ब्रिटिश लाए थे - वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट. लेकिन उस जमाने में उसका विरोध हुआ, एक्ट वापस लेना पड़ा.”
शीतल पी सिंह कुछ साल पहले मिर्जापुर की घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि स्कूल में मिड डे मील के नाम पर बच्चों को नमक रोटी खिलाने की खबर छापने पर पत्रकार पवन जायसवाल को गिरफ्तार कर लिया गया था. वो कहते हैं, "हाथरस की घटना कवर करने वाले पत्रकार सिद्दीक कप्पन को करीब ढाई साल बात जमानत मिली. किसी घटना को कवर करने आए पत्रकार को किस तरह आतंकवादी बनाने की कोशिश की गई. तो यह नियम सरकार के हाथ में एक और हथियार दे देगा.”
सोशल मीडिया पर कई लोग ऐसे भी हैं जो किसी राजनीतिक विचारधारा से संबंध नहीं रखते लेकिन अकसर सरकारी मशीनरी और प्रशासनिक गड़बड़ियों को उजागर करते हैं. ऐसे लोगों के लिए भी मुसीबत खड़ी हो सकती है. इसके नतीजातन सोशल मीडिया पर सरकार के पक्ष में ही कंटेंट की भरमार हो सकती है. क्योंकि ऐसा करने वालों को फॉलोवर भी मिलेंगे और सरकार से पैसा भी.