पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को यहां कहा कि महात्मा गांधी अपने पूरे सार्वजनिक जीवन में हर क्षण देश की एकता के लिए लड़ते रहे और उन्होंने इस बात को कभी नहीं स्वीकारा कि देश धर्म के आधार पर विभाजित हो जाए. प्रणब ने यहां वरिष्ठ पत्रकार एम.जे. अकबर की नई किताब 'गांधीज हिंदुइज्म - द स्ट्रगल अगेंस्ट जिन्नाज इस्लाम' के विमोचन के अवसर पर कहा, "गांधीजी का पूरा जीवन हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए समर्पित था. गांधीजी सिर्फ हमारे राष्ट्रपिता ही नहीं थे, बल्कि हमारे राष्ट्र निर्माता भी थे. वह हमारे कार्यो के नैतिक मार्गदर्शक थे, जिनके कारण हमें जाना जाता है." इस किताब में उस घटनाक्रम का चित्रण है, जिसके कारण 1947 में इस उपमहाद्वीप का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का जन्म हुआ.
मुखर्जी ने कहा कि सांप्रदायिक एकता और सद्भाव भारत की शक्ति के बुनियाद हैं और इसके गौरवपूर्ण भविष्य के मुख्य तत्व हैं. उन्होंने कहा कि गांधी हिदुत्व की आत्मसात, मूल्यांकन और अनुकूलन की आंतरिक शक्ति में विश्वास करते थे, क्योंकि यह समग्र था और सभी धर्म के लोगों के लिए स्पेस प्रदान करता था. प्रणब ने कहा, "गांधीजी ने घोषणा की थी कि भारत में किसी भी धर्म को खतरा नहीं हो सकता क्योंकि भारत हमेशा सभी धर्मो की धरती रही है."
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पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि इस लिहाज से यह किताब इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि गांधीजी अपने सार्वजनिक जीवन में हर क्षण भारत की एकता के लिए लड़ते रहे, और उन्होंने उस सोच को खारिज कर दिया था कि विभाजन (अंग्रेजों द्वारा खड़ी की गई) सांप्रदायिक समस्या का एक समाधान होगा. उन्होंने विभाजन के एक माह पहले एक प्रार्थना सभा में कहा था कि इससे भारत और पाकिस्तान के बीच एक लड़ाई पैदा होगी.
मुखर्जी ने कहा, "वह मानते थे कि पाकिस्तान मुसलमानों को फायदा के बदले नुकसान पहुंचाएगा. वह मानते थे कि (मुहम्मद अली) जिन्ना जब यह सोचते थे कि भारत के अप्राकृतिक विभाजन से पाकिस्तान में खुशहाली या समृद्धि आएगी, तो यह उनका एक भ्रम था." मुखर्जी ने किताब से उद्धरण देते हुए कहा, "यह बात आजादी के आंदोलन के एक योद्धा मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने कही थी. उन्होंने एक बयान जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह 'इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पाकिस्तान न सिर्फ भारत के लिए नुकसानदायक है, बल्कि मुसलमानों के लिए खास तौर से नुकसानदायक है'."