इस्राएल पर हमास का आतंकी हमला और नतीजतन गाजा में शुरू हुए युद्ध ने सऊदी अरब, कब्जे वाले वेस्ट बैंक, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और मिस्र में बदलावों की एक शृंखला शुरू की. देखिए, कैसा बीता यह एक साल.पिछले साल 7 अक्टूबर को हुए हमले के बाद सऊदी अरब ने इस्राएल के साथ संबंध सामान्य करने में दिशा में हो रही बातचीत रोक दी. उसके बाद से यह संभावित समझौता इस्राएल-हमास के बीच संघर्षविराम की वार्ता के लिए एक मददगार पक्ष बन गया है. जर्मन थिंक टैंक सीएआरपीओ में सीनियर रिसर्चर सेबास्टियन सन्स ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस बीच 7 अक्टूबर ने सामाजिक स्तर पर फलस्तीन-समर्थक एकजुटता को भी फिर से मजबूती दी है.
सन्स यह भी कहते हैं कि इसके बावजूद, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर इस्राएल-हमास युद्ध को सऊदी अरब के सोशियो-इकॉनमिक सुधारों की महत्वाकांक्षा के लिए सीधे खतरे के तौर पर देखा जा रहा है. वह बताते हैं, "नतीजतन, पिछले एक साल के दौरान सऊदी राजनीति कूटनीतिक स्तर पर संतुलन बनाने पर ध्यान दे रही है."
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लेबनान में कैसा रहा यह एक साल
इस्राएल पर हमास के हमले के बाद जल्द ही लेबनान का हथियारबंद संगठन हिज्बुल्लाह ने इस्राएल के उत्तर में हमला करना शुरू कर दिया. यूरोपीय संघ हिज्बुल्लाह को आतंकवादी समूह मानता है. कैली पेटिलो, यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में मध्यपूर्व क्षेत्र की रिसर्चर हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "शुरुआत में हिज्बुल्लाह की इस बात के लिए आलोचना हो रही थी कि उसने इस्राएल के साथ युद्ध शुरू करने का फैसला किया और लेबनान को इसमें घसीटा." वह आगे कहती हैं, "इसके बावजूद 7 अक्टूबर के बाद लेबनान की जनता के बीच हिज्बुल्लाह के लिए समर्थन बढ़ा है."
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पेटिलो का मानना है कि गाजा में इस्राएल की गतिविधियां और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रयासों के किसी परिणाम पर ना पहुंचने की कमी ने लेबनान में कई लोगों को नाराज किया. वह कहती हैं, "वे हिज्बुल्लाह को फलस्तीनियों के साथ एकजुटता के एकमात्र गारंटर के तौर पर देखने लगे." हालांकि, विश्लेषकों द्वारा "नियंत्रित लड़ाई" कहे जाने वाले बीते एक साल के घटनाक्रम के बाद इस्राएल के कई हिज्बुल्लाह कमांडरों को मारने के कारण सितंबर में संघर्ष बढ़ गया और अक्टूबर की शुरुआत में इस्राएल ने दक्षिणी लेबनान में जमीनी हमला कर दिया.
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जॉर्डन में कैसा रहा यह एक साल
पड़ोसी देश जॉर्डन ने साल 1994 में इस्राएल के साथ एक शांति समझौते पर दस्तखत किया था. बीते एक साल में वह राजनीतिक तौर पर बहुत चुस्त स्थिति में है. कैली पेटिलो डीडब्ल्यू को बताती हैं, "7 अक्टूबर के बाद से जॉर्डन ने ज्यादातर फलस्तीनी मुद्दे पर अपने यहां मौजूद मजबूत घरेलू समर्थन और इस्राएल के साथ अपने रिश्तों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है."
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जॉर्डन के राजा अब्दुल्लाह द्वितीय और उनकी पत्नी रानी रानिया, जो कि खुद भी फलस्तीनी मूल की हैं, ने कई बार कहा है कि वे फलस्तीन के और शरणार्थियों को अपने यहां लेने के लिए तैयार नहीं हैं. पेटिलो कहती हैं कि यह सामान्य तौर पर फलस्तीन के सवाल को कमजोर करेगा और शांति समझौते का सीधा उल्लंघन भी माना जाएगा.
वह इसकी समीक्षा करते हुए बताती हैं, "हालांकि अब, ना केवल लेबनान में, बल्कि वेस्ट बैंक में भी नए संभावित मोर्चे खुलने से जॉर्डन खुद को काफी अप्रिय स्थिति में पा रहा है." पेटिलो आगे कहती हैं, "यह स्थिति 7 अक्टूबर के बाद महसूस की जा रही उन शुरुआती आशंकाओं को हवा दे रही है, जिनमें कहा जा रहा था संघर्ष का विस्तार हो सकता है और इसके कारण फलस्तीन के और भी लोग जॉर्डन आ सकते हैं."
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कब्जे वाले वेस्ट बैंक में कैसा रहा यह एक साल
पेटर लिंटल, जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्यॉरिटी अफेयर्स में अफ्रीका और मध्यपूर्व विभाग में विशेषज्ञ हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया, "7 अक्टूबर के पहले ही वेस्ट बैंक में हालात बहुत तनावपूर्ण थे." लिंटल इसकी व्याख्या करते हुए बताते हैं कि फलस्तीनी अथॉरिटी कई साल से कमजोर थी, यहूदी सेटलर फलस्तीन के लोगों पर हमले कर रहे थे और इस्राएल की मौजूदा दक्षिणपंथी सरकार ने अपने गठबंधन कार्यक्रम में यह कहकर तनाव को और बढ़ाया कि वेस्ट बैंक (जिसे वे जूडेया और समारिया कहते हैं) केवल यहूदियों का है. लिंटल जोड़ते हैं, "7 अक्टूबर के बाद यह सब और प्रचंड हुआ है."
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चरमपंथी यहूदी सेटलर्स, फलस्तीन के आम लोगों को प्रताड़ित करते रहे हैं. वहीं, सितंबर महीने में कब्जे वाले वेस्ट बैंक में इस्राएली डिफेंस फोर्सेज और फलस्तीनी मिलिटेंट गुटों के बीच तनाव एक नए चरम पर पहुंच गया. इस बारे में लिंटल कहते हैं, "वेस्ट बैंक ऐसा बारूद का ढेर है, जो कभी भी फट सकता है. मृतकों की काफी बड़ी संख्या के कारण वहां पहले से ही हालात बर्दाश्त के बाहर थे, गाजा में युद्ध और 7 अक्टूबर इस बात पर हावी हो गया है."
सीरिया में कैसा रहा यह एक साल
लोरैंजो ट्रोमबेट्टा, संयुक्त राष्ट्र एसेंजीय में मध्यपूर्व के विश्लेषक और सलाहकार हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "7 अक्टूबर को जो युद्ध शुरू हुआ, उसने सीरिया और 13 साल से ज्यादा समय से वहां चल रहे संघर्ष से मीडिया का ध्यान और हटा दिया." वह कहते हैं कि सीरिया के गृह युद्ध में रूस, ईरान, तुर्की, इस्राएल और अमेरिका जैसी विदेशी शक्तियां हावी हैं.
ट्रोमबेट्टा कहते हैं, "सभी पक्ष आतंकवाद से लड़ने का दावा करते हैं और स्थिरता व सुरक्षा को अपना लक्ष्य बताते हैं." वहीं, सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद जो कि सीरियाई जनता पर कार्रवाई के कारण शुरुआत में बड़े स्तर पर अलग-थलग कर दिए गए थे, उन्बें अरब और यूरोपीय ब्लॉक में वापस स्वीकार किया जाने लगा.
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ट्रोमबेट्टा कहते हैं, "आंतरिक स्तर पर, असद की सत्ता पर पकड़ अब कोई शंका नहीं लगती." वह यह भी कहते हैं कि पिछले एक साल के दौरान हुई घटनाओं और 7 अक्टूबर के बाद के घटनाक्रम पर असद चुप रहे हैं. ट्रोमबेट्टा के मुताबिक, "उनका दृष्टिकोण मीडिया के फोकस से दूर चुपचाप कूटनीति करने और घरेलू मोर्चे पर दीर्घकालीन लक्ष्य हासिल करने पर लक्षित है."
मिस्र में कैसा रहा यह एक साल
टिमोथी ई. कैलडास, वॉशिंगटन स्थित 'तहरीर इंस्टिट्यूट फॉर मिडिल-ईस्ट पॉलिसी' के सहायक निदेशक हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं कि समूचे क्षेत्रीय देशों में केवल मिस्र ही है, जिसने 7 अक्टूबर के बाद के पैदा हुए संकट का लाभ उठाकर अपने भूराजनीतिक प्रभाव को और मजबूत बनाने का रास्ता खोजा.
कैलडास बताते हैं कि मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी, गाजा में सामान भेजे जाने की अनुमति और घेराबंदी को बनाए रखने में मदद देने के मुद्दों पर इस्राएल के साथ सहयोग करते रहे हैं. साथ ही, संघर्षविराम के लिए बातचीत में मिस्र की केंद्रीय भूमिका ने उसकी कथित अहमियत को फिर से स्थापित किया है. कैलडास कहते हैं, "बदले में, काहिरा को वॉशिंगटन से काफी सारा अतिरिक्त समर्थन मिला है."
अमेरिका ने इस साल सैन्य सहायता के रूप में 1.3 बिलियन डॉलर का फंड दिया है. कैलडास कहते हैं, "यह पहली बार है जब बाइडेन प्रशासन ने समूची रकम जारी की है." कैलडास कहते हैं कि अतीत में वॉशिंगटन कम-से-कम मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों पर आधारित फंड का कुछ हिस्सा रोक लेता था.
कैलडास ने बताया, "जबकि असलियत में इस मोर्चे पर मिस्र का प्रदर्शन और बदतर है." इसके अलावा 7 अक्टूबर से पहले मिस्र के लोगों का ध्यान देश की बदहाल अर्थव्यवस्था पर काफी केंद्रित था. कैलडास बताते हैं, "लेकिन गाजा में रह रहे फलस्तीनी नागरिकों के विरुद्ध इस्राएल के खौफनाक युद्ध अपराधों ने उनका ध्यान बांट दिया है."
कैलडास मानते हैं कि जनता की राय आगे और बदलेगी क्योंकि मिस्र में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है, जो अपनी सरकार को भी समस्या का हिस्सा मान रहे हैं. वह निष्कर्ष देते हुए कहते हैं, "मिस्र के नेतृत्व के लिए भविष्य में यह काफी महीन संतुलन बिठाने की बात होगी क्योंकि वे पश्चिमी समर्थन भी बनाए रखने की कोशिश करेंगे."