
ट्रंप प्रशासन के नए अभियान के तहत हाल ही में 100 से ज्यादा भारतीय लोगों को अमेरिकी सैन्य विमान में भारत भेजा गया. डीडब्ल्यू ने दो लोगों से बात की जो अमेरिका तो पहुंच गए थे लेकिन वहां से बेड़ियों में वापस भेजे गए हैं.हरविंदर सिंह के पास इस हफ्ते 40 घंटे की यात्रा के दौरान सोच विचार करने का समय था, जब अमेरिकी सैन्य विमान ने उन्हें टेक्सस से अमृतसर लाकर छोड़ दिया.
यह सफर उनके मुश्किलों की आखिरी कड़ी थी जो जून 2024 में शुरू हुई. तब सिंह ने अमेरिका जाने के लिए एक एजेंट को 40 लाख रुपये दिए थे. 41 साल के सिंह पंजाब के रहने वाले हैं और उन्हें एजेंट ने भरोसा दिलाया था कि वे दो हफ्ते में कानूनी तरीके से अमेरिका पहुंच जाएंगे. सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया, "हालांकि उसकी बजाय, मैं कतर, ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, पनामा, निकारागुआ और मेक्सिको गया. कई बार बहुत खतरनाक परिस्थितियों से हम गुजरते रहे, इस उम्मीद में कि अवसरों के देश अमेरिका पहुंचेंगे."
सिंह के एजेंट ने उनकी यात्रा के लिए कथित "डंकी रूट" को चुना था. इस टर्म का इस्तेमाल भारत में अवैध और जोखिम भरे आप्रवासन के रास्ते के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल प्रवासी अमेरिका या दूसरे पश्चिमी देशों में बिना उचित दस्तावेजों के घुसने के लिए करते हैं. इसमें खासतौर से उन्हें कई देशों में रुकते हुए जाना पड़ता है.
सिंह का कहना है कि उन्हें और दूसरे प्रवासियों को मामूली खाना मिलता था और खतरनाक रास्तों को उन्हें मुश्किल मौसमी हालात में पैदल पार करना पड़ा. एक बार तो उनके प्रवासी समूह को एक छोटी सी नाव में बिठा कर मेक्सिको की तरफ सागर में छोड़ दिया गया. इस दौरान एक यात्री पानी में गिर गया. उसके पास लाइफ जैकेट भी नहीं थी और उसे बचाया नहीं जा सका. सिंह ने बताया, "मैंने एक शख्स को पनामा के जंगल में मरते देखा."
"मैंने सबकुछ दांव पर लगा दिया."
सिंह को जनवरी के आखिर में अमेरिका में घुसने से ठीक पहले मेक्सिको में पकड़ लिया गया. पकड़े जाने के बाद उन्हें यूएस बॉर्डर कंट्रोल के हवाले कर दिया गया और फिर एक हिरासत केंद्र में रखा गया.
बाद में उनके हाथ में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां डाल कर सैन्य विमान में बिठा दिया गया. इसके बाद 100 और दूसरे अवैध प्रवासियों के साथ उन्हें भारत भेज दिया गया. इन लोगों में पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के लोग हैं.
विमान में सवार हुए लोगों में 19 महिलाएं और 13 बच्चे थे. इनमें एक चार साल का लड़का और पांच और सात साल की दो लड़कियां भी थीं. दो बच्चों के पिता सिंह का कहना है, "मैं तबाह हो गया. मैंने पैसा, सुरक्षा और यहां तक कि अपनी इज्जत भी दांव पर लगा दी थी कि अपने परिवार को विदेश में अच्छा भविष्य दे सकूं."
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अमेरिका में बिना दस्तावेज के कितने भारतीय हैं?
अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर ने 2022 के आंकड़ों का हवाला दे कर अनुमान लगाया है कि अमेरिका में करीब 725,000 अनाधिकृत प्रवासी भारतीय रहते हैं. इस संख्या के आधार पर अवैध प्रवासियों के मामले में मेक्सिको और अल सल्वाडोर के बाद तीसरे नंबर पर भारत आता है.
हालांकि माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टिट्यूट का अनुमान है कि 2022 में अमेरिका में 375,000 अवैध प्रवासी भारतीय थे. इस हिसाब से भारत इस मामले में पांचवें नंबर पर है.
भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण को लेकर बीते कई सालों से बातचीत चल रही है. ब्लूमबर्ग की एक खास रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल वापस भेजने के लिए 18,000 भारतीय अवैध प्रवासियों की पहचान अमेरिका ने की थी.
भारतीय नागरिकों के प्रत्यर्पण ने उन चुनौतियों की तरफ भी लोगों का ध्यान खींचा है जिनका सामना उन्हें लौटने के बाद करना होगा. इनमें से बहुत से लोगों ने अपनी सारी जमा पूंजी अमेरिका पहुंचने की कोशिश में खर्च कर दी है.
हरविंदर सिंह की पत्नी कुलजिंदर कौर ने डीडब्ल्यू से कहा, "बहुत मुश्किल होने वाली है. मैं आगे का नहीं सोच पा रही हूं. शुक्र है कि मेरा पति वापस आ गया लेकिन हम कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं. अब हमें अकेला रहने दीजिए...हम साथ मिल कर इससे उबरेंगे. सब कुछ चला गया."
"सबकुछ खत्म हो गया"
अमृतसर उतरे अमेरिकी सैन्य विमान में आकाशदीप सिंह भी थे. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि अमेरिका में रहने के लिए उन्होंने अपना पैसा और परिवार के प्यार को भी दांव पर लगा दिया.
23 साल के आकाशदीप सिंह अमृतसर के पास एक गांव के हैं. उन्होंने बड़ी मात्रा में अपनी जमीन बेच कर और कर्ज ले कर 60 लाख रुपये जुटाए ताकि अमेरिका जा सकें.
अमृतसर वापस भेजे जाने से 8 महीने पहले आकाशदीप ट्रक ड्राइवर के रूप में काम करने के लिए दुबई गए. हालांकि वो नौकरी जाती रही और तब उन्होंने एक एजेंट के जरिए अमेरिका जाने का फैसला किया, जिसने उन्हें मंझधार में छोड़ दिया.
आकाशदीप सिंह ने बताया, "मुझे जनवरी में गिरफ्तार किया गया. वह बहुत भयानक था और मैं उसका ब्यौरा नहीं बताना चाहता, लेकिन जो शर्मिंदगी मुझे मिली वह मेरे साथ ही रहेगी, मैं उसे कभी नहीं भूल पाऊंगा." उन्होंने कहा, "मुझसे मत पूछिए कि मैंने यह जोखिमभरा फैसला क्यों किया."
प्रवासियों पर ट्रंप का कहर
इस हफ्ते हुए अमेरिका से भारत के लिए प्रत्यर्पण अनियमित आप्रवासन के खिलाफ व्यापक कार्रवाई का हिस्सा है जो अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने शुरू की है. ट्रंप ने प्रत्यर्पण को राजनीतिक प्राथमिकता में शामिल करा दिया है.
नियमित कारोबारी उड़ानों की बजाय पहली बार अमेरिकी सैन्य विमान का 104 भारतीयों के प्रत्यर्पण में इस्तेमाल मजबूत प्रतीकात्मक और राजनीतिक संदेश है.
यह विमान अगले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतीक्षित यात्रा के ठीक पहले भारत आया है. इसकी वजह से विपक्षी दलों को सरकार पर उंगली उठाने का मौका मिल गया है. वो इसके समय और अमेरिकी अधिकारियों के हाथों प्रवासियों के साथ दुर्व्यवहार दोनों पर सवाल उठा रहे हैं.
संसद के दोनों सदनों में दिए एक बयान में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ध्यान दिलाया है कि प्रत्यर्पण उड़ानों के दौरान "बेड़ियों का इस्तेमाल" अमेरिका की मानक प्रक्रिया का हिस्सा है और इस दौरान भारत अमेरिका से बात कर रहा था कि उनके साथ दुर्व्यवहार ना हो.
जयशंकर ने विपक्षी दलों के हथकड़ियों और बेड़ियों पर उठाए सवाल के जवाब में कहा, "विमान से प्रत्यर्पण के लिए मानक प्रक्रिया का इस्तेमाल इमिग्रेशन एंड कस्टम्स इनफोर्समेंट करता है जो 2012 से ही लागू है... इसमें बेड़ियों का इस्तेमाल होता है."
आर्थिक मुश्किलें और सामाजिक वर्जनाएं
आकाशदीप सिंह के पिता स्वर्ण सिंह 55 साल के हैं. अमृतसर एयरपोर्ट पर इंतजार करते हुए उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि भले ही पैसों का भारी बोझ पड़ गया है लेकिन शुक्र है कि बेटा सुरक्षित घर आ गया. स्वर्ण सिंह ने कहा, "एजेंट ने मुझसे वादा किया था कि यह सुरक्षित यात्रा होगी. मैंने उस पर भरोसा किया और अब सबकुछ खत्म हो गया. कम से कम मेरा बेटा वापस आ गया और यह ज्यादा जरूरी है. हमारे सामने अनिश्चिता और चिंताजनक भविष्य है क्योंकि भारी कर्ज चुकाना है."
स्वर्ण सिंह ने यह भी कहा, "कड़वी सच्चाई यह है कि पंजाब या देश के दूसरे इलाकों के कई परिवारों की तरह हमें इस हाल में वापस आने पर आर्थिक संकट और सामाजिक वर्जना झेलनी पड़ेंगी."