लोकसभा चुनाव 2019 VIP सीट: जानिए क्यों है गोरखपुर लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल, पढ़ें पूरा इतिहास
गोरखपुर के जातीय गणित को यदि देखा जाए तो यहां इन्हीं दोनों जाति के वोटरों का दबदबा है. ऐसे में वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए बीजेपी, कांग्रेस समेत अन्य पार्टियां इस आधार पर अपने कैंडीडेट को मैदान में उतार सकते हैं.
लोकसभा चुनाव की तारीख अब करीब है. ऐसे में जीत के लिए सभी पार्टियां पुरजोर कोशिश में जुट गई है. बड़े नेताओं ने अपने गढ़ की मजबूती की कवायद और भी तेज कर दी गई है. इसी में से एक सीट है गोरखपुर जिसे भारतीय जनता का पार्टी का गढ़ माना जाता है. गोरखपुर में बीजेपी का झंडा 1989 से लहरा रहा है मगर पिछले साल हुए उपचुनाव में प्रवीण कुमार निषाद ने इस सीट से समाजवादी का परचम लहराया था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस सीट से पांच बार सांसद रह चुके हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
वहीं उत्तर प्रदेश में सपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती के गठबंधन से इस बार का सियासी समीकरण बदल गया है. वहीं योगी आदित्यनाथ के लिए गोरखपुर अब प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. अगर यहां पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा तो यह सबसे करारी शिकस्त मानी जाएगी. यही कारण हैं कि योगी और मजबूत पकड़ करने की जुगत में लग गए हैं.
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बीजेपी का रहा एकछत्र राज
पिछले साल हुए उपचुनावों को छोड़े तो गोरखपुर में लंबे समय से बीजेपी का कब्जा रहा है. यहां से सबसे पहले हिंदू महासभा की टिकट पर साल 1989 में पीठ के महंत ब्रह्मलीन अवैद्यनाथ ने चुनाव लड़ा था, उन्होंने जनता दल के उम्मीदवार रामपाल सिंह को हराया था. उसके बाद यहां की सीट पर अवैद्यनाथ ने 1991 और 1996 के चुनाव में बीजेपी से टिकट लेकर जीत दर्ज की. उसके बाद यहां से योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी का परचम लहराने का जिम्मेदारी ली. साल 1998, 1999 में दोनों दलों में कांटे की लड़ाई थी लेकिन साल 2004 में बीजेपी ने एक तरफा परचम लहरा के अपनी ताकत का एहसास करा दिया था.
जानें इतिहास:
1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ जहां सिंहासन सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जीत हासिल की. उसके बाद 1957-62 में सिंहासन सिंह दूसरी बार सांसद और वहीं दूसरी सीट कांग्रेस के महादेव प्रसाद ने जीती. लेकिन 1967 में दिग्विजय नाथ निर्दलीय चुनाव लड़ें और कांग्रेस हरा दिया. लेकिन साल 1969 में उनका निधन हो गया और फिर उपचुनाव कराया गया. उत्तराधिकारी होने के नाते महंत ब्रह्मलीन अवैद्यनाथ मैदान में उतरे पर परचम लहरया. लेकिन एक बार यहां कांग्रेस ने इंट्री मारी और 1971 में जीत को हासिल की. उसके बाद इमरजेंसी के बाद 1977 में भारतीय लोकदल के हरिकेश बहादुर चुनाव जीते. वहीं हरिकेश बहादुर कांग्रेस चले गए और 1980 के चुनाव जीत संसद बने.
1984 के लोकसभा चुनाव से कांग्रेस ने मदन पांडेय को चुनाव लड़ाया और उन्होंने जीत हासिल की. लेकिन गोरखनाथ मंदिर के मंहत अवैद्यनाथ एक बार फिर राम मंदिर के मुद्दे को लेकर मैदान में उतरे और 1989 में सांसद बने. फिर उसके बाद योगी आदित्यनाथ की इंट्री हुई.
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ब्राह्मण या फिर निषाद जाति का दबदबा
गोरखपुर के जातीय गणित को यदि देखा जाए तो यहां निषाद और ब्राह्मण दोनों जाति के वोटरों का दबदबा है. ऐसे में वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए बीजेपी, कांग्रेस समेत अन्य पार्टियां इस आधार पर अपने कैंडीडेट को मैदान में उतार सकते हैं.
उत्तर प्रदेश से तय होता है दिल्ली का सफर
लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर का असर था कि 71 सीटों पर बंपर जीत मिली और दो सीटें अपना दल की थी. जिसके बाद बीजेपी 73 सीटों पर जीत की और बीजेपी की राह दिल्ली तक आसान हो गई. वहीं कांग्रेस, सपा, बसपा को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था. लेकिन इस बार बीजेपी को यहां कड़ी मशक्कत करनी होगी. क्योंकि कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी मैदान में हैं. तो दूजी तरफ मायावती-अखिलेश यादव एक साथ बीजेपी को हराने के लिए मैदान में उतर गए हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार का लोकसभा चुनाव बेहद रोमांच होगा.