श्रीनगर: कश्मीर में 30 वर्षों में 5 हजार से ज्यादा हुईं राजनीतिक हत्याएं, 2020 में BJP कार्यकर्ताओं समेत राजनीतिक दलों के कुल 10 कार्यकर्ताओं की हुई हत्या

भारतीय जनता पार्टी के आठ नेता और कार्यकर्ताओं समेत विभिन्न मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के कुल 10 कार्यकर्ताओं की कश्मीर में वर्ष 2020 के अंतिम पांच महीनों में 'अज्ञात बंदूकधारियों' द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई. यह माना जाता है कि यह राजनीतिक हत्याएं पाकिस्तान समर्थक आतंकवादियों द्वारा की गई हैं.

बीजेपी (Photo Credits: Facebook)

नई दिल्ली, 5 नवंबर: भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के आठ नेता और कार्यकर्ताओं समेत विभिन्न मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के कुल 10 कार्यकर्ताओं की कश्मीर में वर्ष 2020 के अंतिम पांच महीनों में 'अज्ञात बंदूकधारियों' द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई. यह माना जाता है कि यह राजनीतिक हत्याएं पाकिस्तान समर्थक आतंकवादियों द्वारा की गई हैं. ऐसे हत्यारों की पहचान का जब तक पता नहीं चलता, तब तक तो मीडियाकर्मी और राजनेता इन्हें 'अज्ञात बंदूकधारी' ही कहते हैं. यह बड़ी विडंबना है कि अगर कश्मीर में किसी सुरक्षा बल या पुलिस के हाथों आतंकी गतिविधि में लिप्त किसी व्यक्ति की मौत होती है तो घाटी में विरोध प्रदर्शन आयोजित होते हैं और आतंकी गतिविधियों के समर्थक या अलगाववादियों की ओर से बंद का आन किया जाता है.

इसके अलावा मीडियाकर्मियों, राजनेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को पीड़ित के घर जाते देखा जाता है और व्यापक तौर पर इसकी निंदा की जाती है. मगर इसके विपरीत अगर आतंकवादियों की ओर से कोई आम नागरिक या किसी पार्टी के कार्यकर्ता की हत्या कर दी जाती है तो घाटी मूकदर्शक बनी रहती है. उस परिस्थिति में कोई सार्वजनिक निंदा नहीं होती और स्थानीय अखबारों के पहले पन्ने पर इस तरह की घटनाएं सुर्खियां नहीं बनती. फरवरी 2019 में पुलवामा आत्मघाती हमले में 40 अर्धसैनिक बल के जवानों के शहीद हो जाने के बाद केंद्र में भाजपा सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कसी है, जिसके बाद से स्थिति कुछ बदली जरूर है. विशेष रूप से अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 (Article 370) को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद से इस तरह की हत्या पर थोड़ी बहुत प्रतिक्रिया सामने आने लगी हैं.

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कुछ आतंकी संगठन 1989-90 की शुरुआत में कश्मीर में कुछ राजनीतिक हत्याओं की जिम्मेदारी लेते थे, मगर इसके बाद किसी ने भी किसी भी हत्या का दावा नहीं किया है. इससे लोगों में भी नाराजगी पैदा हुई है. 1990 में मीरवाइज फारूक और 1994 में काजी निसार अहमद जैसे कुछ हाई-प्रोफाइल राजनीतिक हत्याओं के बाद काफी विवाद हुआ था. इन घटनाओं के बाद गंभीर सार्वजनिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई थीं. सरकार और अलगाववादी आतंकवादी एक-दूसरे पर दोष मढ रहे थे. तीस साल बाद भी कश्मीर बहुत ज्यादा नहीं बदला है, क्योंकि हर कोई बंदूकधारियों से पंगा नहीं लेना चाहता और डर के मारे लोग चुप्पी साधे रहते हैं.

वरिष्ठ कश्मीरी पत्रकार, जो फिलहाल नई दिल्ली में हैं, उन्होंने कहा, "कई राजनीतिक हत्याएं हुई हैं, जिनमें गुरिल्ला संगठन के स्पष्ट पदचिन्हों का पता चला है. फिर भी उक्त संगठन ने निंदा के बयान जारी किए और मामले से खुद का पल्ला झाड़ लिया, क्योंकि सीसीटीवी फुटेज जैसे कोई ठोस सबूत तो वैसै भी पीछे नहीं छोड़े गए थे. लगभग सभी हत्यारों ने फेसमास्क का इस्तेमाल किया है. वे अपनी पहचान छिपाकर वार करते हैं." 1989 के बाद से कश्मीर में इस तरह के हमलों में 5,000 से अधिक भारतीय समर्थक राजनीतिक कार्यकर्ता मारे गए हैं. कुछ अनुमानों में यह संख्या 7,000 भी बताई जाती है.

पहली राजनैतिक हत्या 21 अगस्त, 1989 को श्रीनगर में नेशनल कॉन्फ्रेंस (National Conference) के कार्यकर्ता मोहम्मद यूसुफ हलवाई की हुई थी. उन्होंने कथित तौर पर 15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता दिवस (Indian Independence Day) पर अपने घर की लाइट बंद करने से इनकार कर दिया था, जब नेकां के फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे और जेकेएलएफ ने 'ब्लैक आउट' का आह्वान किया था. इसके बाद से आए दिन राजनैतिक हत्याएं होती रही हैं.

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