कर्नाटक विधानसभा चुनाव: जानें दक्षिण भारत में होने वाले इस अहम चुनाव की महत्त्वपूर्ण बातें
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर के आसार, जेडीएस बन सकती है किंगमेकर

बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में महज कुछ दिन बचे है. पूरे राज्य में चुनावी सरगर्मी अपने चरम पर है. छोटी से लेकर बड़ी हर पार्टी ताल ठोककर अपने जीत का दावा कर रही है. उलट हकीकत इससे कोसों दूर है और हर नेता जानता है की वह और उसकी पार्टी कितने पानी में है. सभी सियासी पार्टियां वोटरों को लुभानें में रत्ती भर भी कसर नहीं छोड़ना चाहती यही वजह है की पार्टियां देश के शीर्ष नेताओ से लेकर क्षेत्रीय नेताओ की भारी भरकम टीम बनाकर कर्नाटक चुनाव के रण में उतरी है.

इस हाई वोल्टेज चुनाव अभियानों के बीच हाल ही में हुए कुछ चुनावी सर्वे सभी तिकड़मों की सच्चाई उधेड़ दें रहे है. अधिकतर चुनावी सर्वे कर्नाटक में किसी भी पार्टी को बहुमत के आकड़ों के साथ नहीं दिखा रहे है. आपको बता दें कि कर्नाटक विधानसभा में 224 सीटें हैं और किसी भी पार्टी को बहुमत के साथ सरकार बनाने के लिए कुल 113 सीटों की जरुरत पड़ेगी. जनता का फैसला क्या होगा इसके लिए सभी को 15 मई का इंतजार करना होगा.

ताबड़तोड़ रैलियों के बीच सबसे ताजा हुए सर्वे न्यूज एक्स सीएनएक्स पोल के मुताबिक कांग्रेस को 90, बीजेपी को 87, जेडीएस को 39 और अन्य को 7 सीटें मिल सकती है. वहीं लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, कर्नाटक में सत्‍तारूढ़ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी. कांग्रेस पार्टी को 97 सीटें, बीजेपी को 84, जेडीएस को 37 और अन्‍य को 4 सीटें मिलने के आसार है. इससे उलट दक्षिण भारत के बड़े टीवी चैनल 'टीवी 5' के मुताबिक कर्नाटक बीजेपी 110 से 120 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी. तो कांग्रेस 65 से 75 और बीएसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही जेडीएस को 38 से 48 सीट पर सिमट जाएगी.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 12 मई को होने हैं. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपनी सरकार बचाए रखने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. इसी कड़ी में उन्होंने इस चुनाव का सबसे बड़ा दाव खेलते हुए राज्य के 17% लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा देने की पेशकश कर दी. भले ही कुछ मठों ने इस कदम की खुलकर वकालत की हो लेकिन कर्नाटक चुनाव को जमीनी स्तर समझने वाले विश्लेषको की मानें तो इसका सिद्धारमैया सरकार को कोई खासा फायदा नहीं होगा. इसके बावजूद अपने बेहतर एजेंडा की बदौलत सिद्धारमैया राज्य में अपनी पकड़ मजबूती से बनाए हुए है.

कर्नाटक चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की साख दांव पर लगी है. वोटरों को अपनी तरफ मोड़ने के लिए राहुल कर्नाटक में बार-बार दौरे कर मंदिर मस्जिद के चक्कर काट रहे है. पहले से खुद को बेहतर बनाकर रण में उतरे राहुल केंद्र की सत्ता में काबिज बीजेपी और मोदी सरकार पर हमलें का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं.

यही वजह है की बेटे के नेतृत्व को अधिक मजबूत और कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए दो साल बाद इलाज कर लौटी सोनिया गांधी को सीधे चुनावी मैदान में  उतरना पड़ा. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने कर्नाटक के बीजापुर और विजयपुरा में चुनावी रैली कर लंबी छुट्टी के बाद राजनीति से दोबारा नाता जोड़ा. सोनिया गांधी ने पिछली बार 2 अगस्त 2016 को वाराणसी में रोड शो किया था.

कर्नाटक में बीजेपी को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से कड़ी चुनौती मिल रही है. बीजेपी अपने स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम बड़े नेताओं के साथ पूरे दमखम के साथ कर्नाटक में भी कमल खिलाने का भरसक प्रयास कर रही है. सिद्धारमैया के लिंगायत कार्ड का जवाब बीजेपी के सीएम उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा को माना जा रहा है जो खुद लिंगायत समुदाय से आते हैं. इसलिए कांग्रेस के शीर्ष नेता भी दावा कर रहे हैं कि उन्होंने बीजेपी से लिंगायत वोटों के बड़े पैमाने पर छिटकने की उम्मीद कभी भी नहीं की थी.

कर्नाटक में लिंगायतों के करीब 400 छोटे-बड़े मठ हैं. अगर कर्नाटक का इतिहास देखे तो अब तक हुए 13 विधानसभा चुनावों में ज्यादातर मुख्यमंत्री लिंगायत संप्रदाय से आए. लेकिन साल 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिंगायत संप्रदाय से आने वाले सीएम वीरेंद्र पाटिल को गद्दी से उतारकर लिंगायतों को नाराज कर दिया. परिणामस्वरुप पूरा लिंगायत वोट बैंक कांग्रेस से नाराज हो उठा.

वहीं 25 सालों से कर्नाटक में जमीन तलास रही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने राज्य की क्षेत्रीय पार्टी जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) से हाथ मिलाया है. इस गठजोड़ की असली वजह साल 2013 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस को 14 सीटों पर महज 500 वोटों के करीबी अंतर से हुई हार को माना जा रहा है. हालाँकि पोलिटिकल पंडित भी इस जोड़ी का कर्नाटक चुनाव में अहम किरदार मान रहें है और इसे किंग मेकर के तौर पर देख रहे है.