मुंबई: देश की राजनीति में स्पीकर की भूमिका बहुत ही अहम रही है. भारतीय राजनीति का इतिहास उठाकर देखे तो कई बार लोकसभा और विधानसभा के अंदर बहुमत का आंकड़ा स्पीकर के फैसलों की वजह से बदल गया है. यही वजह है की कर्नाटक में वरिष्ठ विधायको को नजरअंदाज कर भाजपा विधायक केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर (कार्यवाहक विधानसभा अध्यक्ष) नियुक्त किए जाने पर कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) की बेचैनी बढ़ गई है.
कांग्रेस की आखिरी उम्मीद भी शनिवार को टूट गई. सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल वजुभाई वाला द्वारा के.जी.बोपैया को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने के फैसले के खिलाफ दायर कांग्रेस और जेडीएस की याचिका को शनिवार को खारिज करते हुए कहा कि वह अंतरिम स्पीकर बने रहेंगे.
बोपैया बीएस येदियुरप्पा के नजदीकी माने जाते हैं. कांग्रेस को आशंका है कि येदियुरप्पा द्वारा शनिवार दोपहर को विधानसभा में पेश किए जाने वाले विश्वास प्रस्ताव को बोपैया ध्वनि मत से पारित करने के बाद बिना मतदान कराए विधानसभा को स्थगित कर देंगे. इस बीच भाजपा को बहुमत जुटाने का पर्याप्त समय मिल जाएगा.
बता दें की ठीक आठ साल पहले भी कर्नाटक विधानसभा का कुछ आज के जैसा ही हाल था. 12 अक्टूबर 2010 में भी ऐसा ही हुआ और तब भी राज्य बीजेपी की सरकार थी. इसके अलावा मुख्यमंत्री भी येदियुरप्पा ही थे और स्पीकर भी बोपैया. तब येदियुरप्पा सरकार को मदद करने के लिए उन्होंने 16 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था.
दरअसल अवैध खनन मामले में साल 2010 में भाजपा के कई विधायक अपनी ही सरकार का विरोध कर रहे थे. इसलिए बतौर स्पीकर बोपैया ने 11 बागी विधायकों और 5 निर्दलीय विधायक को अयोग्य घोषित कर दिया था. हालांकि बोपैया के फैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. कोर्ट ने बोपैया के इस फैसले को गलत ठहराते हुए कहा था कि ‘बोपैया ने पक्षपाती तरीके से काम किया। उन्होंने स्वाभाविक न्याय तक का उल्लंघन किया.’
गौरतलब है कि बीजेपी नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को अपनी सरकार बचाने के लिए 8 विधायक कम पड़ रहे है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी 104 सीटें जीतकर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. जबकि कांग्रेस के खाते में 78 और जेडीए ने 38 सीटों पर कब्जा जमाया है. अब देखना है येदियुरप्पा आज शाम 4 बजे होनेवाले शक्ति परीक्षण में अपना ताज कैसे बचाते है.