झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम 2019: डबल इंजन वाली सरकार चलाने के बाद भी क्यों पिछड़ गई बीजेपी? ये हैं 5 कारण

झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजों के लिए मतगणना जारी है. वोटों की गिनती सुबह आठ बजे शुरू हुई. मतगणना शुरू होने के बाद आए शुरुआती रुझानों में ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का गठबंधन बीजेपी से आगे चल रहा है.

पीएम मोदी, रघुवर दास, अमित शाह (Photo Credits: PTI)

Jharkhand Assembly Election Results 2019: झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजों के लिए मतगणना जारी है. वोटों की गिनती सुबह आठ बजे शुरू हुई. मतगणना शुरू होने के बाद आए शुरुआती रुझानों में ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का गठबंधन बीजेपी से आगे चल रहा है. झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 41 है. अगर रुझानों में जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन यूं ही आगे चलता रहा और ये नतीजों में तब्दील हुए तो मुख्यमंत्री रघुवर दास (Raghubar Das) के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार की विदाई पक्की है.

अब सवाल उठता है कि झारखंड में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले मुख्यमंत्री रघुवर दास के हाथ से सत्ता क्यों जाती नजर आ रही है. जबकि, वे हमेशा केंद्र व राज्य में बीजेपी की डबल इंजन वाली सरकार के विकास कार्यों का ढोल पीटते रहे. आइए जानते हैं उन कारणों के बारे में जिसकी वजह से बीजेपी झारखंड की सत्ता से बेदखल होते नजर आ रही है. यह भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम 2019 Live Updates: रुझानों में JMM को बहुमत, हेमंत सोरेन बन सकते हैं सूबे के अगले सीएम.

चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय मुद्दों की अनदेखी- झारखंड अभी भी मूलभूत सुविधाओं की बांट जो रहा है. इस राज्य में भुखमरी और गरीबी अभी भी एक बड़ी समस्या है. ऐसी स्थिति में बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज कर पूरी तरह राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा. चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत बीजेपी के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने राम मंदिर, अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी.

रघुवर सरकार से नाराजगी- रघुवर दास भले ही पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले झारखंड के पहले मुख्यमंत्री हो लेकिन उनकी सरकार के प्रति लोगों में नाराजगी देखी गई. व्यक्तिगत तौर पर रघुवर दास का व्यवहार ही लोगों को पसंद नहीं आया. कई मौकों पर रघुवर दास सार्वजनिक कार्यक्रमों और बैठकों में अधिकारियों और जनता पर भड़कते नजर आए हैं.

सरयू राय की बगावत- झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी से टिकट न मिलने से नाराज सरयू राय बागी हो गए और जमशेदपुर पूर्वी सीट से रघुवर दास के खिलाफ मैदान में उतर गए. सरयू राय रघुवर सरकार में मंत्री रह चुके हैं. ऐसे वरिष्ठ नेता का पार्टी से बगावत कर सीएम रघुवर दास के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरना बीजेपी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ क्योंकि इससे जनता के बीच पार्टी के खिलाफ संदेश गया.

गैर आदिवासी मुख्यमंत्री होने का नुकसान- साल 2014 में रघुवर दास झारखंड के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने. हालांकि, इस बार उनके सामने जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जो आदिवासी समुदाय से आते हैं. दरअसल, रघुवर दास के कार्यकाल के दौरान आदिवासी समुदाय में सरकार के प्रति असंतोष देखा गया. इस बार के एग्जिट पोल में भी हेमंत सोरेन झारखंड में मुख्यमंत्री पद के सबसे लोकप्रिय उम्मीदवार थे.

आजसू से गठबंधन टूटना- झारखंड में बीजेपी ने आजसू के साथ मिलकर पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. हालांकि 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे पर बात न बन पाने के कारण आजसू ने बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ा. इसके अलावा केंद्र और बिहार में बीजेपी की सहयोगी पार्टियां जेडीयू और एलजेपी ने भी झारखंड विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे जिसका सीधे तौर पर नुकसान बीजेपी को हुआ.

गौरतलब है कि झारखंड विधानसभा की 81 सीटों के लिए पांच चरणों में मतदान 30 नवंबर से 20 दिसंबर तक हुआ था. झारखंड में पहले चरण के लिए 30 नवंबर, दूसरे चरण के लिए सात दिसंबर, तीसरे चरण के लिए 12 दिसंबर, चौथे चरण के लिए 16 दिसंबर और पांचवें चरण के लिए 20 दिसंबर को मतदान हुए थे.

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