'BJP का कमल चुनाव चिन्ह रद्द हो', मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर, याचिकाकर्ता बोला- ये राष्ट्रीय अखंडता का अपमान
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भारतीय जनता पार्टी के कमल चुनाव चिह्न (BJP Election Symbol Lotus) के आवंटन को रद्द करने की मांग को लेकर मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) में एक याचिका दायर की गई है. याचिकाकर्ता टी रमेश ने पहले चुनाव आयोग में इसकी शिकायत की थी. कार्रवाई न होने के बाद उन्होंने अदालत का रुख किया.

अपनी याचिका में रमेश ने कहा कि राष्ट्रीय फूल होने के नाते कमल पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है और इस प्रकार एक राजनीतिक दल को कमल का प्रतीक आवंटित करना अन्यायपूर्ण है. उन्होंने  कहा कि किसी विशेष पार्टी को कमल का चिह्न आवंटित करना राष्ट्रीय अखंडता का अपमान है. 'PM मोदी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए', जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने जताई आपत्ति

रमेश ने कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव समानता पर आधारित है और इस प्रकार यदि एक पार्टी दूसरी पार्टी के साथ भेदभाव करती है तो यह घोर अन्याय होगा और संविधान के अनुच्छेद 14 के भी खिलाफ होगा. पीठ से याचिकाकर्ता ने मामले पर तत्काल आधार पर विचार करने का अनुरोध किया था, लेकिन अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया.

स्वतंत्रता सेनानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी. जो आगे चलकर बीजेपी पार्टी में तब्दील हो गई. पहले भारतीय जनसंघ का चुनाव चिन्ह 'दीपक' हुआ करता था. 1977 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल खत्म करने की घोषणा की इसके साथ देश में फिर से आम चुनाव की प्रक्रिया भी शुरू हो गई. जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. उस समय 'दीपक' का चिन्ह बदलकर 'हलधर किसान' हो गया.

उस दौरान जनता पार्टी का मकसद इंदिरा गांधी को परास्त करना था. जिसके बाद चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. इस चुनाव में जनसंघ से आए नेताओं को अच्छी कामयाबी मिली. फिर 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के नाम से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की गई और अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने. जिसके बाद पार्टी का चुनाव चिह्न कमल बनाया गया.

कमल के फूल को हिन्दू परंपरा से जोड़कर भी देखा जाता है. बीजेपी के संस्थापकों ने 'कमल' को चुनाव चिन्ह इसलिए बनाया था क्योंकि इस चिन्ह को पहले भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था.