बिहार वह राज्य है जो देश की सियासत की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाता है. दिल्ली चुनावों के बाद पूरे देश में बिहार विधानसभा चुनावों की गहमा-गहमी चल रही है. सभी सियासी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है. रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ तेजस्वी यादव और चिराग पासवान मिशन बिहार पर निकल चुके हैं. कोई भी सियासी दल बिहार की रेस में पीछे नहीं रहना चाहता. इस समय बिहार के तीनों युवा सूबे को आगे ले जानें का दावा करते हुए मैदान में उतर गए हैं, मगर इन तीनों युवाओं को एक सियासी धुरंदर कड़ी टक्कर दे रहा है. इस धुरंदर का नाम है नीतीश कुमार.
15 साल से बिहार की सियासत पर राज करने वाले नीतीश कुमार ने चुनावी साल में कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं जिससे विपक्ष समेत सहयोगी दल भी बैक-फूट पर जाने को मजबूर हो गए हैं. आइए जानते हैं नीतीश के वो फैसले जिससे उन्होंने साबित किया कि वो ही हैं बिहार के असली बॉस.
जाति आधारित जनगणना:
बिहार की विधानसभा ने पिछले सप्ताह जाति आधारित जनगणना कराने के लिए प्रस्ताव पारित किया. इस प्रस्ताव में मोदी सरकार से मांग की गयी कि 2021 की जनगणना जाति आधारित हो. 1931 के बाद देश में ऐसी कोई जनगणना नहीं हुई. यदि जाति आधारित जनगणना होती है तो इससे पता चलता है कि कौनसी जाती के कितने लोग हैं. इससे फिर उन जातियों के विकास के लिए नीति बनाने में मदद होती है.
NRC और NPR पर प्रस्ताव पास:
बिहार की विधानसभा में सीएम नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) पर अपने मनमुताबिक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कराकर विपक्ष के साथ सहयोगी बीजेपी को भी चेक-मेट कर दिया. बता दें कि NPR-NRC के विरोध में बिहार में विपक्ष आक्रामक हो रहा था, मगर नीतीश ने विधानसभा में प्रस्ताव पास कर विपक्ष के सबसे बड़े मुद्दे की हवा निकाल दी. साथ ही बीजेपी को भी झटका दिया.
बीजेपी ने लोकसभा चुनावों से पहले देशभर में NRC कराने की बात कही थी. सत्ता में आते ही दुसरे संसदीय सत्र में NDA ने CAB को संसद के दोनों सदनों से पास करा लिया. मगर, बिहार में NRC के खिलाफ बिल पास कराकर नीतीश कुमार ने ये साबित कर दिया कि वे फ्रंट फूट पर खेलेंगे. उन्होंने बीजेपी को यह संदेश दे दिया कि जद (यू) किसी की पिछलग्गू नहीं, बल्कि अपनी नीतियों के साथ राजनीति करती है. इसे चुनावी साल में नीतीश का मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा है.
जल जीवन हरियाली यात्रा:
बिहार चुनावों के पहले सीएम नीतीश कुमार ने सूबे में 'जल जीवन हरियाली यात्रा' निकली. इस यात्रा के जरिए उन्होंने पटना के बाहर बिहार की जनता से संवाद किया. उन्होंने लोगों को सरकार के कामकाज के बारे में बताया. इस यात्रा के दौरान नीतीश लगभग हर जिले में गए और लोगों की समस्याओं को समझने की कोशिश की.
बहरहाल, यह तो चुनावों के नतीजे आने के बाद ही स्पष्ट होगा कि प्रदेश की जनता को नीतीश का काम पसंद आया या नहीं. मगर एक बात तो तय है कि उन्होंने सूबे की सियासत में सहयोगी दलों और विपक्ष दोनों को बैक-फूट पर धकेल दिया है.