सपा-बसपा का गढ़ मानी जाने वाली आजमगढ़ (Azamgarh) लोकसभा सीट से उम्मीदवार अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की स्थिति को जातीय समीकरण के मद्देनजर बेहद मजबूती मिल रही है, हालांकि भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव (Dinesh Lal Yadav) ‘निरहुआ’ सपा मुखिया को राष्ट्रवाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और बतौर अभिनेता अपनी लोकप्रियता के चलते कड़ी चुनौती दे रहे हैं. जानकारों की मानें तो आजमगढ़ के जातीय गणित को ध्यान में रखकर ही भाजपा ने भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार ‘निरहुआ’ को अखिलेश के खिलाफ उतारा है. बहरहाल, ‘निरहुआ’ तब ही बड़ा उलट-फेर कर सकते हैं जब वह इस सीट पर निर्णायक यादव मतों में अच्छी-खासी सेंधमारी करेंगे. ‘निरहुआ’ का दावा है कि उन्हें आजमगढ़ में इस बार यादव सहित सभी वर्गों का समर्थन मिलेगा और उनकी उम्मीदवारी ने यहां अखिलेश यादव के सभी समीकरणों पर पानी फेर दिया है.
उन्होंने ''पीटीआई-भाषा'' से कहा, ''मेरे आने से अखिलेश जी के सारे समीकरण बिगड़ गए हैं. मेरे साथ समाज का हर वर्ग है. मैं यहां वंशवाद और जतिवाद की राजनीति खत्म करने आया हूं. अब आजमगढ़ में विकास की राजनीति होगी.'' दूसरी तरफ, सपा का कहना है कि आजमगढ़ में ‘निरहुआ’ को जनता गंभीरता से नहीं ले रही और भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार घोषित कर, यहां समर्पण कर दिया. आजमगढ़ जिले की अतरौलिया विधानसभा सीट से विधायक और सपा नेता संग्राम यादव ने कहा, ''आजमगढ़ के लोग भाजपा उम्मीदवार को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सभी वर्गों के लोग अखिलेश के साथ हैं.''
उन्होंने दावा किया, ''भाजपा यहां पहले ही समर्पण कर चुकी है. 12 तारीख को लोग सिर्फ यह तय करेंगे कि अखिलेश की जीत का अंतर कितना होगा.'' आजमगढ़ का जातीय समीकरण ही सपा के इस किले को मजबूत बनाता है और इस बार बसपा भी उसके साथ है. स्थानीय सियासी जानकारों के मुताबिक, इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाताओं में से साढ़े तीन लाख से अधिक यादव, तीन लाख से ज्यादा मुसलमान और करीब तीन लाख दलित हैं. यही जातीय गणित अखिलेश की राह को आसान और ‘निरहुआ’ के लिए मुश्किल बना सकता है.
भाजपा को उम्मीद है कि ‘निरहुआ’ सपा के कोर वोटर यानी यादवों में सेंध लगाएंगे तथा गैर यादव ओबोसी, गैर जाटव दलित और सवर्ण तबका भी भाजपा के साथ खड़ा होगा जिससे यहां बाजी पलट सकती है. स्थानीय पत्रकार प्रवीण टिबड़ेवाल कहते हैं, ''‘निरहुआ’ के पक्ष में कोई सकारात्मक परिणाम तभी आ सकता है जब वह सपा के कोर वोटरों में सेंध लगाएं. हालांकि यह बहुत ही मुश्किल है. वैसे, मोदी फैक्टर का उनको कुछ हद तक लाभ जरूर मिल सकता है.'' चुनाव के लिए आजमगढ़ में विकास की कमी, बेरोजगारी, जिले में किसी विश्वविद्यालय का नहीं होना और राष्ट्रवाद आदि प्रमुख मुद्दे हैं. यह भी पढ़ें- लोकसभा चुनाव 2019: अखिलेश यादव ने आजमगढ़ सीट से किया नामांकन
यहां व्यापारियों के लिए जीएसटी के सरलीकरण की मांग और ''अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न'' भी मुद्दा है. ''आजमगढ़ व्यापार मंडल'' के अध्यक्ष पद्माकर लाल वर्मा का दावा है, ''यहां के व्यापारी प्रशासन द्वारा उत्पीड़न किए जाने से परेशान हैं. व्यापारी ईमानदारी से कर का भुगतान और कारोबार करते हैं लेकिन उनके यहां छापेमारी होती है." आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें से आजमगढ़ सदर, गोपालपुर और मेहनगर पर सपा का कब्जा है तो सगड़ी और मुबारकपुर बसपा के पास हैं.