नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ के 49वें संस्करण के तहत देश को संबोधित किया. पीएम मोदी ने इस दौरान लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को नमन किया. उन्होंने देशवासियों के सामने गरीबी, एकता और स्वास्थ्य से जुड़े कई मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किए. उन्होंने देशवासियों से 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर रन फॉर यूनिटी में शामिल होने की अपील की. मन की बात में पीएम मोदी ने देशवासियों को एक साथ आने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि सभी के अंदर मैं नहीं हम की भावना होनी चाहिए. इस दौरान उन्होंने पर्यावरण और खेलों का भी जिक्र किया.
पीएम मोदी ने कहा “जब कभी भी विश्व शान्ति की बात होती है तो इसको लेकर भारत का नाम और योगदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित दिखेगा. भारत के लिए इस वर्ष 11 नवम्बर का विशेष महत्व है क्योंकि 11 नवम्बर को आज से 100 वर्ष पूर्व प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ, उस समाप्ति को 100 साल पूरे हो रहे हैं यानी उस दौरान हुए भारी विनाश और जनहानि की समाप्ति की भी एक सदी पूरी हो जाएगी. भारत के लिए प्रथम विश्व युद्ध एक महत्वपूर्ण घटना थी.
“सही मायने में कहा जाए तो हमारा उस युद्ध से सीधा कोई लेना-देना नहीं था. इसके बावजूद भी हमारे सैनिक बहादुरी से लड़े और बहुत बड़ी भूमिका निभाई, सर्वोच्य बलिदान दिया. भारतीय सैनिकों ने दुनिया को दिखाया कि जब युद्ध की बात आती है तो वह किसी से पीछे नहीं हैं. हमारे सैनिकों ने दुर्गम क्षेत्रों में, विषम परिस्थितियों में भी अपना शौर्य दिखाया है. इन सबके पीछे एक ही उद्देश्य रहा - शान्ति की पुन: स्थापना. इससे पूरे विश्व ने शान्ति का महत्व क्या होता है - इसको समझा.
उन्होंने आगे कहा “पिछले 100 वर्षों में शान्ति की परिभाषा बदल गई है। आज शान्ति और सौहार्द का मतलब सिर्फ युद्ध का न होना नहीं है. आतंकवाद से लेकर जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विकास से लेकर सामाजिक न्याय, इन सबके लिए वैश्विक सहयोग और समन्वय के साथ काम करने की आवश्यकता है. गरीब से ग़रीब व्यक्ति का विकास ही शांति का सच्चा प्रतीक है.
आदिवासी समुदाय की बढाई करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि यह समुदाय बहुत शांतिपूर्ण और आपस में मेलजोल के साथ रहने में विश्वास रखता है, पर जब कोई उनके प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान कर रहा हो तो वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने से डरते भी नहीं हैं. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे सबसे पहले स्वतंत्र सेनानियों में आदिवासी समुदाय के लोग ही थे.
“भगवान बिरसा मुंडा को कौन भूल सकता है जिन्होंने अपनी वन्य भूमि की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ कड़ा संघर्ष किया. मैंने जो भी बातें कहीं हैं उनकी सूची काफ़ी लम्बी है आदिवासी समुदाय के ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो हमें सिखाते हैं कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर कैसे रहा जाता है और आज हमारे पास जो जंगलों की सम्पदा बची है, इसके लिए देश हमारे आदिवासियों का ऋणी है. आइये ! हम उनके प्रति आदर भाव व्यक्त करें.