जयंती विशेष: जानिए कौन हैं पंडित दीनदयाल उपाध्याय जिनके व्यक्तित्व के पुजारी हैं पीएम मोदी
पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Photo Credit: Wikipedia)

साल 2014 में जब से बीजेपी सत्ता में आई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में एक नाम खूब गूंजा. यह नाम है पंडित दीनदयाल उपाध्याय. महान विचारक, दार्शनिक और राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय के व्यक्तिव का प्रभाव पीएम मोदी की बातों में खासा नजर आता है. भारतीय जनसंघ से ही 1980 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का उदय हुआ है. आरएसएस विचारक और भारतीय जनसंघ के सह-संस्‍थापक पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय की 25 सितंबर को जयंती है. इस जयंती के अवसर पर बीजेपी भोपाल से मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का शंखनाद कर रही है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने दीनदयाल उपाध्‍याय को श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, 'पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी की जन्‍म-जयंती पर उन्‍हें कोटि-कोटि नमन.'

पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय बीजेपी और आरएसएस के स्तंभ कहे जाते हैं. हालांकि उनका नाम लोगों के जुबान पर पीएम मोदी के भाषणों को सुनने के बाद ही चढ़ा. पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय पीएम मोदी के राजनैतिक आदर्शों के प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत हैं.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा में हुआ था. पंडित दीनदयाल उपाध्याय को बीजेपी के दिग्गज नेता महामानव भी कहते हैं. पंडित दीनदयाल उपाध्याय जब अपनी स्नातक स्तर की शिक्षा हासिल कर रहे थे, उसी वक्त वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए और वह आरएसएस के प्रचारक बन गए. हालांकि प्रचारक बनने से पहले उन्होंने 1939 और 1942 में संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण लिया था और इस प्रशिक्षण के बाद ही उन्हें प्रचारक बनाया गया था. पंडित दीनदयाल ने ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ की नींव रखी थी.

हालांकि साल 1951-52 से लेकर उनके अध्यक्ष बनने तक वे पार्टी के महासचिव तो थे, लेकिन वे पार्टी का चेहरा नहीं थे. उस वक्त पार्टी में अन्य कई लोकप्रिय चेहरे थे, जिनमें जगन्नाथ राव जोशी,अटल बिहारी वाजपेयी आदि मुख्य थे.

उपध्याय अपने बौद्धिक ज्ञान, नेतृत्व और संगठन की क्षमता के दम पर आगे आए. पार्टी और पार्टी के बाहर उनके विचारों से उन्हें लोग मानाने लगे. पार्टी के लिए यह गौरव की बात थी. हालांकि उनकी हत्या होने के कारण उनका जो योगदान देश को मिल सकता था, उससे देश वंचित रह गया. केंद्र सरकार अभी तक उनकी हत्या की गुत्थी सुलझाने का प्रयास कर रही है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय को देश ने पहली बार एक अच्छे विचारक और राष्ट्रीय नेता के रूप में 1968 में तब पहचाना, जब वे जनसंघ के अध्यक्ष बने. जनसंघ के अधिवेशन के बाद उनका भाषण हुआ, जिसे उस समय के अखबारों ने प्रमुखता से छापा. देश की जनता को और जनसंघ को उनमें अपना भविष्य दिखने लगा था.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बारे में जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि “यदि मुझे दो या तीन और दीनदयाल मिल जाएं तो में भारत का राजनीतिक नक्शा बदल दूंगा.’’

दीनदयाल जी की मृत्यु पर हाल ही में दिवंगत भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने उनके बारे में कहा था कि “एक दीपक बुझ गया है, चारो ओर अंधकार है, श्री उपाध्याय दूर दृष्टि वाले और संपूर्ण देश का विचार करने वाले राजपुरुष थे, वे भौतिक विचारक, कुशल संगठनकर्ता और सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते थे. जनसंघ बनाने का श्रेय भी उन्हें है.

दीनदयाल उपाध्याय के व्यक्तित्व की श्रेष्ठता को इस बात से ही समझा जा सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जो की जनसंघ की घोर विरोधी थी उन्होंने भी कहा था ‘‘उपाध्याय देश के राजनीतिक जीवन में एक प्रमुख भूमिका अदा कर रहे थे, कांग्रेस और उनके बीच मतभेद चाहे जो हों श्री उपाध्याय सार्वजनिक तौर पर सम्मानपात्र नेता थे और उन्होंने अपना जीवन देश की एकता एवं संस्कृति को समर्पित कर दिया था.’’

गैर-कांग्रेसवाद की नींव

यह बात बहुत कम ही लोग जानते हैं कि देश में गैर-कांग्रेसवाद की जो नींव पड़ी, उसके दो ही निर्माता हैं- एक हैं डॉ राम मनोहर लोहिया और दूसरे हैं पंडित दीनदयाल उपाध्याय.