नई दिल्ली: 22 अप्रैल को कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम की वादियों में जो खूनखराबा हुआ, उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. 26 लोगों की जान लेने वाला यह हमला सिर्फ एक आतंकवादी घटना नहीं थी, बल्कि एक गहरी और सुनियोजित साजिश थी. अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच में कई नए और चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं. NIA सूत्रों के अनुसार, पहलगाम हमले में शामिल आतंकी अभी दक्षिण कश्मीर के जंगलों में सक्रिय और छिपे हो सकते हैं. इनके खिलाफ लगातार सर्च ऑपरेशन चल रहा है, लेकिन इन आतंकियों ने खुद को बचाने के लिए बेहद सुनियोजित ढंग से तैयारी कर रखी है.
बताया जा रहा है कि ये आतंकी खुद पर निर्भर (Self-reliant) हैं. वे अपने साथ खाने-पीने का सामान और जरूरी सामान लेकर चलते हैं, जिससे उन्हें बाहर से मदद की जरूरत नहीं पड़ती और वे लंबे समय तक छिपे रह सकते हैं.
हमले की रणनीति थी बेहद खौफनाक
गवाहों के अनुसार, हमले के दौरान आतंकियों ने बहुत सोच-समझकर प्लानिंग की थी. चार आतंकियों ने हमले को अंजाम दिया. दो मुख्य गेट से अंदर घुसे, एक एग्ज़िट गेट पर तैनात था, और चौथा पास के जंगल में बैकअप के लिए मौजूद था. हमले के वक्त वहां कई पर्यटक पिकनिक मना रहे थे, घोड़े की सवारी कर रहे थे या खाने के स्टॉल पर खा रहे थे.
पहली गोली एग्जिट गेट के पास चली, जिससे भगदड़ मच गई. जब लोग भागकर एंट्री गेट की ओर गए, वहां पहले से मौजूद दो आतंकियों ने उन्हें घेर लिया और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी.
वर्दी और फिरन में छिपे थे कातिल
सूत्रों के मुताबिक, दो आतंकी सेना जैसी वर्दी में थे, जबकि एक ने पारंपरिक कश्मीरी फिरन पहन रखा था. यह छलावा उनके इरादों को छुपाने में कारगर साबित हुआ. हमले में पहला शिकार बने भारतीय नौसेना के अफसर, लेफ्टिनेंट विनय नरवाल, जो एंट्री गेट से बस अंदर ही आए थे.
धार्मिक आधार पर की गई पहचान, फिर गोलीबारी
गवाहों ने बताया कि आतंकी भीड़ में से महिलाओं को पुरुषों से अलग करने की कोशिश कर रहे थे और लोगों से उनका धर्म पूछ रहे थे. उन्होंने कई लोगों से कलमा पढ़ने को कहा. जो नहीं पढ़ पाए या जिन्होंने खुद को हिंदू बताया, उन्हें निशाना बनाकर गोली मारी गई.
हमले के बाद दीवार कूदकर फरार हुए आतंकी
हमले के बाद आतंकी बाईं ओर की एक दीवार कूदकर फरार हो गए. वहीं, सबसे ज्यादा मौतें टी-स्टॉल और भेलपुरी स्टॉल के पास हुईं, जहां पर्यटक सबसे ज्यादा इकट्ठा थे.
हाई-टेक कम्युनिकेशन ने बढ़ाई सुरक्षा एजेंसियों की मुश्किल
जांच में यह भी सामने आया है कि आतंकी ऐसी संचार तकनीक (Communication Tech) का इस्तेमाल कर रहे थे, जिसमें सिम कार्ड की जरूरत नहीं होती. ये तकनीक छोटी दूरी में एनक्रिप्टेड मैसेजिंग की सुविधा देती है, जिससे सुरक्षा एजेंसियों के लिए रियल टाइम ट्रैकिंग बेहद मुश्किल हो जाती है.
हमले से एक सप्ताह पहले हुई थी रेकी
NIA को मिले सुरागों के अनुसार, आतंकियों ने 15 अप्रैल को इलाके की रेकी की थी. एक आतंकी ने स्थानीय एम्यूजमेंट पार्क की भी जांच की थी लेकिन वहां भारी सुरक्षा के चलते हमला टाल दिया गया.













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