नई दिल्ली: देश की शीर्ष कोर्ट ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि आरक्षण (Reservation) मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं है. तमिलनाडु (Tamil Nadu) में नीट (NEET) रिजर्वेशन मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि आरक्षण कोई बुनियादी अधिकार नहीं होता है. कोर्ट ने साथ ही इस संबंध में किसी याचिका को स्वीकार करने से मना कर दिया.
जस्टिस एल नागेश्वर राव (L Nageswara Rao), जस्टिस कृष्ण मुरारी (Krishna Murari) और जस्टिस रवींद्र भट (Ravindra Bhat) की बेंच ने याचिकाओं पर विचार करने के लिए असंतोष जाहिर किया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने इसे वापस लेने का फैसला किया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस मामले को हाईकोर्ट में ले जाने की स्वतंत्रता दी है. National Test Abhyas App: छात्रों के बीच हिट हुआ ‘नेशनल टेस्ट अभ्यास ऐप’, 10 लाख ने दिया JEE, NEET प्रैक्टिस टेस्ट
बेंच ने कहा "हम अपने सामने आने वाले राजनीतिक दलों की सराहना करते हैं, लेकिन हम इस पर सुनवाई करने के लिए इच्छुक नहीं हैं". कोर्ट ने टिप्पणी कि की किसके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है? अनुच्छेद-32 केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए है. हम मानते हैं कि आप सभी तमिलनाडु के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में रुचि रखते हैं. लेकिन आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है.
जून के पहले हफ्ते में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की तमिलनाडु इकाई ने वर्ष 2020-21 में मेडिकल और डेन्टल पाठ्यक्रमों के लिये अखिल भारतीय कोटे में राज्य द्वारा छोड़ी गई सीटों में ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये क्रमश: 50, 18 और एक प्रतिशत आरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
याचिका में स्वास्थ्य मंत्रालय सहित कई मंत्रालयों के साथ ही भारतीय चिकित्सा परिषद और नेशनल बोर्ड आफ एग्जामिनेशंस को पक्षकार बनाया. इससे पहले, द्रमुक ने भी मेडिकल के पाठ्यक्रमों में प्रवेश के मामले में छात्रों को इसी तरह की राहत का अनुरोध करते हुये याचिका दायर की.