नई दिल्ली : इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने सोमवार को कहा कि सरकार को अगस्त के पहले सप्ताह में ही अगले साल के लिए चीनी निर्यात नीति की घोषणा कर देनी चाहिए ताकि उद्योग को चीनी निर्यात की रणनीति बनाने में मदद मिले. इस्मा महानिदेशक ने कहा कि अगले सीजन में भारत को 60-70 लाख टन चीनी निर्यात करने की जरूरत है. ऐसे में हर महीने निर्यात की रणनीति बनानी पड़ेगी.
अविनाश वर्मा ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, "चीनी का उत्पादन खपत के मुकाबले काफी अधिक है और मौजूदा हालात में निर्यात नहीं हो पा रहा है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमत भारतीय बाजार के मुकाबले काफी कम है जिससे मिलों को प्रति टन 6,000-7,000 रुपये का घाटा हो रहा है."
इस्मा महानिदेशक के अनुसार, मिलों को यह घाटा 55 रुपये प्रति टन के हिसाब से गन्नों के दाम में मिलों को राहत मिलने के बाद हो रहा है. सरकार ने चालू चीनी उत्पादन व विपणन सत्र 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में गन्नों के लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी में 55 रुपये प्रति टन की दर से सीधे भुगतान के जरिए किसानों के खाते में ट्रांसफर करने की घोषणा की है.
वर्मा ने कहा, "सरकार अगर अगले महीने के पहले सप्ताह में चीनी वर्ष 2018-19 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए चीनी निर्यात नीति की घोषणा करती है तो उद्योग संगठन को निर्यात की रणनीति बनाने में मदद मिलेगी क्योंकि अगले साल हर महीने पांच से छह लाख टन चीनी निर्यात करने की आवश्यकता है."
उन्होंने बताया कि चालू सीजन में अब तक महज 3.5 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे हुए हैं.
मौसमी पैटर्न में आए बदलाव और उन्नत किस्म के गन्ने की पैदावार के कारण चीनी वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में भारत में चीनी का उत्पादन रिकॉर्ड 322.5 लाख टन होने का अनुमान है. भारत ब्राजील के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक है, लेकिन खपत के मामले में अव्वल स्थान पर है. यहां चीनी की सालाना खपत 250-255 लाख टन है.
इंडियन शुगर एग्जिम कॉरपोरेशन (आईजेक) के सीईओ अधीर झा ने भी आईएएनएस से बातचीत में कहा कि अगले सीजन के लिए चीनी निर्यात नीति की घोषणा जल्द हो जाने से सीजन के शुरुआती दौर में चीनी निर्यात करना आसान होगा. उन्होंन कहा,"चीनी निर्यात में इस समय कोई खास प्रगति नहीं है, लेकिन नवंबर से फरवरी के दौरान विदेशी बाजार में हम चीनी बेच सकते हैं क्योंकि उस समय ब्राजील और थाइलैंड के नए सीजन की चीनी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नहीं आती है."
ब्राजील में चीनी के नए सीजन की शुरुआत अप्रैल में होती है जबकि थाइलैंड में नवंबर में होती है. लेकिन भारत में नए पेराई सत्र का आरंभ अक्टूबर में ही हो जाता है.
झा ने कहा, "अगर, सरकार अगले सीजन के लिए निर्यात पॉलिसी की घोषणा जल्द करती है तो भारत की चीनी आसानी से विदेशी बाजार में बिक सकती है."
सरकार ने चालू विपणन वर्ष 2017-18 के लिए न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) के तहत 20 लाख टन चीनी निर्यात का लक्ष्य रखा है. मगर, उद्योग संगठन का कहना है कि इस लक्ष्य को पूरा करना मुश्किल है.
इस्मा महानिदेशक ने कहा कि चीनी आपूर्ति की मासिक सीमा तय होने से घरेलू बाजार में चीनी के दाम में उतार-चढ़ाव का सिलसिला लगातार जारी है. ऐसे में निर्यात की परिकल्पना नहीं की जा सकती है. घरेलू कीमतों में तेजी आने पर निर्यात घटना स्वाभाविक है.
जुलाई में सरकार ने चीनी की आपूर्ति की सीमा 16.50 लाख टन तय की है, जबकि मासिक खपत तकरीबन 20 लाख टन है. ऐसे में मांग के मुकाबले आपूर्ति कम होने से पिछले कुछ दिनों से चीनी के दाम में तेजी आई है.
देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में सोमवार को मिल डिलीवरी भाव 3,325-3,525 रुपये प्रति क्विं टल था. बाजार सूत्रों के अनुसार चीनी के भाव में पिछले दो सप्ताह में 60-70 रुपये की तेजी आई है. वहीं, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सफेद चीनी का भाव 326.60 डॉलर प्रति टन था.
इस्मा ने अगले सीजन में चीनी का उत्पादन 350-355 लाख टन होने का अनुमान लगाया है, जबकि सालाना घरेलू खपत महज 255 लाख टन है. चालू सत्र में चीनी का उत्पादन 322.50 लाख टन होने का अनुमान है. पिछले साल का बकाया स्टॉक 40 लाख टन था. इस प्रकार कुल आपूर्ति 362.50 लाख टन है।
इस्मा के अनुसार 30 जून तक मिलों के पास किसानों का बकाया जून के अंत में 18,000 करोड़ रुपये था. इस्मा ने कहा कि पहली बार गन्नो काया राशि इतनी अधिक हो गई है जोकि अब तक की सबसे ज्यादा राशि है.
इस्मा के अनुसार, गन्नों के लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी 20 रुपये की बढ़ोतरी के साथ 275 रुपये प्रति क्विं टल करने के सरकार के फैसले के बाद अगले सीजन में मिलों को तकरीबन 97,000 करोड़ रुपये गन्नों के दाम का भुगतान करना होगा.