नई दिल्ली, 20 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर (Alt News Co-founder Mohammad Zubair) को अंतरिम जमानत (Bail) देते हुए कठोर जमानत की शर्तें लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें यह भी शामिल था कि उन्हें ट्वीट नहीं करना चाहिए.
दरअसल उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि जुबैर को अदालत द्वारा उन्हें अंतरिम जमानत देने के बाद ट्वीट नहीं करना चाहिए. इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, "यह एक वकील से यह कहने जैसा है कि आपको बहस नहीं करनी चाहिए. हम एक पत्रकार को कैसे कह सकते हैं कि वह नहीं लिखेगा?" Amritsar Encounter: अटारी एनकाउंटर में सिद्धू मूसे वाला के 2 संदिग्ध हत्यारें ढेर, AK-47 बरामद
प्रसाद ने कहा कि जुबैर पत्रकार नहीं हैं. उन्होंने सीतापुर प्राथमिकी में जुबैर को अंतरिम जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया, जिसने जमानत देने के साथ ही एक शर्त लगाई थी कि वह ट्वीट पोस्ट नहीं करेंगे.
जवाब में, बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ए. एस. बोपन्ना भी शामिल थे, ने कहा, "हम उन्हें ट्वीट करने से नहीं रोक सकते. हम उनके स्वतंत्र तरीके से अपनी बात रखने के अधिकार का प्रयोग करने से रोक नहीं सकते हैं. वह कानून के अनुसार जवाबदेह होंगे."
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "अगर कानून के खिलाफ कोई ट्वीट होगा, तो वह जवाबदेह होंगे. हम कोई अग्रिम आदेश कैसे पारित कर सकते हैं कि कोई नहीं बोलेगा?" जैसे ही प्रसाद ने तर्क दिया कि एक शर्त होनी चाहिए कि जुबैर सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे, उन्होंने जवाब दिया, "सभी सबूत सार्वजनिक डोमेन में हैं."
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने दोहराया: "हम यह नहीं कह सकते कि वह फिर से ट्वीट नहीं करेंगे."शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, "जमानत बांड.. को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा. जमानत बांड की प्रस्तुति के तुरंत बाद, तिहाड़ जेल में अधीक्षक इसे स्वीकार करेंगे. यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं जाएं कि याचिकाकर्ता को आज (बुधवार) शाम 6 बजे तक न्यायिक हिरासत से रिहा कर दिया जाए."
शीर्ष अदालत ने जुबैर के खिलाफ यूपी में दर्ज की गई 6 प्राथमिकी को दिल्ली पुलिस की प्राथमिकी के साथ जोड़ दिया. पीठ ने कहा कि दिल्ली पुलिस की जांच व्यापक है और ट्वीट्स के दायरे से परे है और जुबैर को 15 जुलाई को दिल्ली पुलिस की प्राथमिकी में नियमित जमानत दी गई थी, लेकिन जुबैर यूपी के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में लगातार प्राथमिकी में उलझे हुए हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने जुबैर की काफी निरंतर जांच की है. इसके साथ ही अदालत ने जुबैर को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज छह प्राथमिकी के मामले में अंतरिम जमानत दे दी.
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, "याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता से वंचित करने का कोई कारण नहीं है.. प्रत्येक एफआईआर (यूपी पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी) के संबंध में अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी किया जाता है.. गिरफ्तारी की शक्ति का संयम से उपयोग किया जाना चाहिए."
पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यूपी में दर्ज एफआईआर की जांच के लिए गठित एसआईटी को बेमानी बना दिया गया है.
उत्तर प्रदेश में दर्ज 6 प्राथमिकी को कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को ट्रांसफर किया और इस मामले में जांच के लिए गठित यूपी की एसआईटी को भी भंग कर दिया गया. अदालत के फैसले में कहा गया है कि जुबैर प्राथमिकी रद्द करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं.
इससे पहले सुनवाई के दौरान, यूपी सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने तर्क दिया था कि जुबैर को ट्वीट के लिए भुगतान किया जाता रहा है और ट्वीट जितना दुर्भावनापूर्ण होता था, उन्हें उतना ही अधिक भुगतान मिलता था. वकील ने कहा कि जुबैर को करीब 2 करोड़ रुपये मिले थे और वह पत्रकार नहीं है. जुबैर की वकील वकील वृंदा ग्रोवर ने मामलों को असहमति को दबाने के लिए एक सुनियोजित साजिश करार दिया.
शीर्ष अदालत ने कहा, "उन्हें निरंतर हिरासत में रखने और उन्हें अंतहीन दौर की हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है." इसके साथ ही अदालत ने जुबैर के खिलाफ सभी एफआईआर को भी एक साथ जोड़ दिया और सभी मामलों को उत्तर प्रदेश से दिल्ली पुलिस को स्थानांतरित कर दिया.
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि जुबैर ट्वीट्स के संबंध में भविष्य में होने वाली प्राथमिकी में जमानत के हकदार होंगे, जिनकी पहले से ही जांच चल रही है. पीठ ने उन्हें सभी प्राथमिकी रद्द करने की मांग के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता भी दी.
जुबैर ने हाथरस, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, लखीमपुर खीरी और सीतापुर में यूपी पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज छह प्राथमिकी को रद्द करने का निर्देश देने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था.