
महाकुंभ नगर, 18 जनवरी : प्रयागराज महाकुंभ का श्रृंगार हैं, यहां सेक्टर 20 में मौजूद सनातन धर्म के ध्वज वाहक 13 अखाड़े. महाकुंभ नगर में जन आस्था के केंद्र इन अखाड़ों के नागा संन्यासियों की फौज में नई भर्ती का सिलसिला शुरू हो गया है.
गंगा के तट पर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों को नागा दीक्षा की प्रक्रिया शुरू हो गई. संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा है, जिसमें निरंतर नागाओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जिसके विस्तार की प्रक्रिया शनिवार से शुरू हो गई. यह भी पढ़ें : Mahakumbh Viral Girl Video: महाकुंभ में माला बेचने वाली खूबसूरत लड़की हुई वायरल, आंखो की सुंदरता ने इंटरनेट पर मचाया तहलका
नागा संन्यासियों की फौज ने ली दीक्षा :
महाकुंभ प्रयागराज में नागा साधुओं की दीक्षा प्रक्रिया प्रारंभ हो गई हैं !
श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े की पवित्र परंपरा, जहां 6 से 12 वर्षों के साधना और प्रतीक्षा के बाद साधुओं को योद्धा सन्यासी के रूप में दीक्षित किया जाता है। pic.twitter.com/hyxxex1s8N— MahaKumbh 2025 (@MahaaKumbh) January 18, 2025
सनातन के रक्षक नागा साधुओं की दीक्षा #महाकुंभ #सनातन #mahakumbh2025prayagraj pic.twitter.com/CkAzsdTASo— Meenakshi Joshi (@IMinakshiJoshi) January 18, 2025
भगवान शिव के दिगंबर भक्त नागा संन्यासी महाकुंभ में सबका ध्यान अपनी ओर खींचते हैं और यही वजह है शायद कि महाकुंभ में सबसे अधिक जन आस्था का सैलाब जूना अखाड़े के शिविर में दिखता है. अखाड़ों की छावनी की जगह सेक्टर-20 में गंगा का तट इन नागा संन्यासियों की उस परंपरा का साक्षी बना, जिसका इंतजार हर 12 साल में अखाड़ों के अवधूत करते हैं.
श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत हो गई है. पहले चरण में 1,500 से अधिक अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही है. नागा संन्यासियों की संख्या में जूना अखाड़ा सबसे आगे है, जिसमें अभी 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं.
नागा सन्यासी केवल कुंभ में बनते हैं. वहीं, उनकी दीक्षा होती है. सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना पड़ता है. उसे तीन साल गुरुओं की सेवा करने और धर्म-कर्म एवं अखाड़ों के नियमों को समझना होता है. इसी अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है. अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है. यह प्रक्रिया महाकुंभ में होती है, जहां उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है.
महाकुंभ में गंगा किनारे उनका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार नदी में डुबकी लगवाई जाती है. अंतिम प्रक्रिया में उनका स्वयं का पिंडदान तथा दंडी संस्कार आदि शामिल होता है. अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उसे नागा दीक्षा देते हैं.
प्रयागराज के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी और नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है. इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है.