Age of Consent: POCSO कानून के तहत सहमति से संबंध बनाने की उम्र 18 से 16 करना सही नहीं, लॉ कमिशन ने बताई ये वजह

लॉ कमिशन (Law Commission) यानी विधि आयोग पॉक्सो एक्ट के तहत सहमति की उम्र में बदलाव के लिए साफ इंकार कर चुका है. आयोग का मानना है कि POCSO कानून के तहत सहमति की मौजूदा उम्र के साथ छेड़छाड़ करना उचित नहीं है.

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नई दिल्ली: लॉ कमिशन (Law Commission) यानी विधि आयोग पॉक्सो एक्ट के तहत सहमति की उम्र में बदलाव के लिए साफ इंकार कर चुका है. आयोग का मानना है कि POCSO कानून के तहत सहमति की मौजूदा उम्र के साथ छेड़छाड़ करना उचित नहीं है. पॉक्सो (POCSO) कानून के तहत सहमति की उम्र 18 से 16 साल करने के मामले में लॉ कमीशन ने कानून मंत्रालय को अपनी सिफारिश सौंप दी है. लॉ कमीशन ने सहमति की मौजूदा उम्र कम न करने की सिफारिश की है. लॉ कमीशन ने अपने सुझाव में कहा है कि सहमति की उम्र कम करने से बाल विवाह और तस्करी के खिलाफ लड़ाई पर सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

विधि आयोग ने सरकार को सलाह दी है कि पॉक्सो एक्ट यानी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत यौन संबंधों के लिए सहमति की मौजूदा उम्र में बदलाव नहीं किया जाए और 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों की मौन स्वीकृति से संबंधित पॉक्सो मामलों में सजा के विषय में निर्देशित न्यायिक विवेक लागू करने का सुझाव दिया.

लॉ कमिशन ने बताई ये वजह

विधि आयोग ने पॉक्सो कानून के तहत यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र पर अपनी रिपोर्ट कानून मंत्रालय को सौंपी है, जिसमें इसने सुझाव दिया है कि 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों की ओर से मौन स्वीकृति से जुड़े मामलों में स्थिति को सुधारने के लिए संशोधनों की आवश्यकता है.

देश में, सहमति की उम्र अभी 18 वर्ष है. आयोग ने कहा कि सहमति की उम्र घटाने का सीधा और नकारात्मक असर बाल विवाह एवं बाल तस्करी के खिलाफ लड़ाई पर पड़ेगा. आयोग ने कहा कि कड़े अधिनियम में कुछ संशोधन लाने की आवश्यकता है, विशेष रूप से उन मामलों से निपटने के लिए, जहां 16 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे द्वारा मौन स्वीकृति तो है लेकिन कानूनी सहमति नहीं है. ऐसे मामलों के लिए विधि आयोग ने यह जजों के विवेक पर छोड़ दिया जाए.

निर्देशित न्यायिक विवेक का सुझाव दिया. इसने अदालतों को उन मामलों में भी सावधानी बरतने की सलाह दी जहां यह देखा गया है कि किशोर प्रेम यानी एडोलसेंट लव को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है और आपराधिक इरादा गायब हो सकता है, इसलिए यह जजों के विवेक पर छोड़ दिया जाए.

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