Lata Mangeskar’s 92nd Birth Anniversary 2021: लता मंगेशकर के जीवन का वह अनसुलझा रहस्य! आखिर किसने उऩकी जान लेने की कोशिश की थी?
सफलता की राह आसान नहीं होती, तमाम संघर्ष, कड़ी मेहनत-मशक्कत के बाद ही कोई सफलता सर कर पाता है. इसकी जीती जागती मिसाल हैं स्वर-कोकिला, भारत रत्न, पद्म भूषण, दादा साहब फालके जैसे पुरस्कारों से सम्मानित लता मंगेशकर.
सफलता की राह आसान नहीं होती, तमाम संघर्ष, कड़ी मेहनत-मशक्कत के बाद ही कोई सफलता सर कर पाता है. इसकी जीती जागती मिसाल हैं स्वर-कोकिला, भारत रत्न, पद्म भूषण, दादा साहब फालके जैसे पुरस्कारों से सम्मानित लता मंगेशकर. 28 सितंबर 1929 को इंदौर (मप्र) में मंगेशकर (पिता दीनानाथ मंगेशकर और माँ शेवंती मंगेशकर) परिवार में जन्मीं लता मंगेशकर के शुरुआती दिनों में उनकी बारीक आवाज पर अकसर लोग कटाक्ष या फब्तियां कसते थे कि लता मंगेशकर कभी सिंगर नहीं बन सकतीं. लेकिन आज लताजी मंगेशकर संगीत की पहचान बन चुकी हैं. कहते हैं जहां सफलता होती है, ईर्ष्या भी उसके इर्द-गिर्द होती है, शायद यही वजह थी कि साल 1962 में किसी ने षड़यंत्र रचकर उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की थी, लेकिन माँ सरस्वती की लताजी पर विशेष कृपा थी, लिहाजा वे बच गईं. आखिर क्या था सारा माजरा, किसने उन्हें जहर देने की कोशिश की आइये जानते हैं.
क्या था माजरा?
बात 1962 की है. लताजी त़ब यही कोई 33 वर्ष की होंगी. कुछ समय पूर्व उन्होंने एक इंटरव्यू में अपने साथ घटी एक घटना का जिक्र किया था, एक दिन सुबह-सवेरे लताजी के पेट में तेज दर्द शुरु हुआ. दर्द के साथ दिन भर में हरे रंग के तरल रूप में उल्टी भी हुई. इतनी उल्टियों के बाद वे इतनी कमजोर हो गयी थीं कि एक करवट से दूसरी करवट नहीं ले पा रही थीं. दर्द और उल्टियां जब रुकी नहीं तो परिजनों ने मंगेशकर परिवार के फैमिली डॉ. आर पी कपूर को बुलवाया. लताजी की जांच करने के बाद पेट-दर्द कम करने के लिए उन्हें एक इंजेक्शन दिया गया. इसके बाद वे गहरी नींद में सो गईं. तेजी से सफलता की सीढ़ियां तय करती लताजी की हालत देख घर-परिवार पर मौत का सन्नाटा-सा छा गया था. डॉ कपूर निरंतर लताजी की सेहत पर नजर रखे हुए थे, उन्होंने सभी को आश्वासन दिया था कि वे लता दीदी को कुछ नहीं होने देंगे.
डॉक्टर का चौंकानेवाला खुलासा
दसवें दिन डॉक्टर ने लताजी की दुबारा जांच के बाद बताया कि अब लता दीदी सुरक्षित हैं, मगर कम से कम तीन माह तक उन्हें आराम की सख्त जरूरत है. लेकिन जब उन्होंने बताया कि किसी ने लता दीदी को स्लो प्वाइजन देने की कोशिश की थी, पूरा परिवार सकते में आ गया. आखिर लताजी जैसी सौम्य महिला को कौन जहर दे सकता है? तभी लोगों का ध्यान मंगेशकर परिवार के घर खाना बनानेवाले कुक पर गया, जो बिना किसी को सूचित किये गायब हो गया था. हैरानी की बात यह थी कि उसने अपनी तनख्वाह भी नहीं ली थी. बाद में पता चला कि यहां से पहले वह कुक सिनेमा जगत की दूसरी हस्तियों के घर पर भी काम कर चुका था. लताजी के शरीर से जहर तो निकाल दिया गया था, मगर जहर के कारण उनके आंतों में निरंतर दर्द बना हुआ था. डॉक्टर ने उन्हें बर्फ के टुकड़े पड़े ठंडा सूप लेने की सलाह दिया था. यह भी पढ़ें : Bhagat Singh 114th Jayanti 2021: भगत सिंह के 114वीं वर्षगांठ की शुभकामनाएं, शेयर करें वीर सपूत के ये WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIFs और वॉलपेपर्स
मजरूर का मरहम
यूं तो फिल्म जगत में लताजी के बहुत से मित्र थे. लेकिन संकट की इस घड़ी में सुविख्यात गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी नियमित रूप से लताजी को देखने उनके घर आते और उन्हें ढाढ़स बंधाते, कि वे शीघ्र ठीक होकर रिकॉर्डिंग में व्यस्त होंगी. कहते हैं कि लताजी को जो भी खाने की वस्तुएं दी जाती थीं, उसे पहले स्वयं मजरूह सुल्तानपुरी टेस्ट करते थे. वे लताजी को मानसिक रूप से सशक्त बनाने के लिए अकसर उन्हें शेर-ओ-शायरी अथवा कविताएं सुनाते थे. मजरूह की दोस्ती के मरहम ने लता जी भीतर जीने की एक नये विश्वास को जन्म दिया. तीन माह बाद लता जी उठने योग्य हुईं. इसके बाद उनका जो पहला गाना रिकॉर्ड हुआ वह फिल्म बीस साल बाद (1962) का कहीं दीप जले कहीं दिल था. इस गाने के गीतकार शकील बदायुंनी और संगीत हेमंत कुमार थे. इस गाने को उस वर्ष का सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला.